SC quashes FIR against MP Imran Pratapgarh

SC quashes FIR against MP Imran Pratapgarh: सुप्रीम कोर्ट ने इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ FIR की रद्द, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बताया मौलिक अधिकार

SC quashes FIR against MP Imran Pratapgarh: 2 जनवरी 2025 को इमरान प्रतापगढ़ी ने जामनगर में एक सामूहिक विवाह समारोह में भाग लेने के बाद अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक वीडियो पोस्ट किया। इस वीडियो में उनकी कविता “ऐ खून के प्यासे बात सुनो” पृष्ठभूमि में सुनाई दे रही थी। 3 जनवरी को जामनगर निवासी किशनभाई नंदा ने इस पोस्ट को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश बताते हुए इमरान के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। एफआईआर में भारतीय दंड संहिता की धाराएं 196 और 197 लगाई गईं, जिनके तहत पांच साल तक की सजा हो सकती है।

गुजरात हाईकोर्ट का निर्णय

इमरान प्रतापगढ़ी ने एफआईआर को रद्द करने के लिए गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हालांकि, 17 जनवरी 2025 को हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि जांच अभी प्रारंभिक चरण में है और एक सांसद होने के नाते इमरान को जिम्मेदारी से कार्य करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया

गुजरात हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ इमरान ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और उज्ज्वल भुयान की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। 10 फरवरी 2025 को हुई सुनवाई में न्यायालय ने कहा कि यह कविता किसी धर्म के खिलाफ नहीं है और अप्रत्यक्ष रूप से अहिंसा का संदेश देती है। न्यायमूर्ति ओका ने राज्य के वकील से कहा, “कृपया कविता देखें। (हाई) कोर्ट ने कविता के अर्थ को नहीं समझा है। यह अंततः एक कविता है।”

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान द्वारा प्रदत्त एक मौलिक अधिकार है और इसके बिना गरिमामय जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। न्यायालय ने कहा कि न्यायाधीशों का कर्तव्य है कि वे इस स्वतंत्रता की रक्षा करें और सुनिश्चित करें कि रचनात्मक अभिव्यक्ति को दबाया न जाए।

एफआईआर का रद्द होना

सुप्रीम कोर्ट ने इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए कहा कि उनके द्वारा साझा की गई कविता राष्ट्रविरोधी नहीं है और पुलिस को इसे पढ़कर समझना चाहिए था। न्यायालय ने यह भी कहा कि रचनात्मकता का सम्मान किया जाना चाहिए और इसे संकीर्ण दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए।

यह निर्णय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि रचनात्मक अभिव्यक्ति, जब तक वह किसी विशेष समुदाय या धर्म के खिलाफ नहीं होती, उसे संरक्षण मिलना चाहिए। यह मामला न्यायपालिका की उस भूमिका को भी रेखांकित करता है, जिसमें वह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है और सुनिश्चित करती है कि कानून का दुरुपयोग न हो।

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