Waqf Amendment Bill 2025

Waqf Amendment Bill 2025: ऐतिहासिक बदलाव, वक्फ संशोधन विधेयक 2025 पर मोदी का ‘साहसी’ कदम

Waqf Amendment Bill 2025: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 के पारित होने को एक “ऐतिहासिक क्षण” बताया है। यह विधेयक संसद के दोनों सदनों से बहस के बाद पारित हुआ—राज्यसभा में 128 मत पक्ष में और 95 विपक्ष में पड़े, वहीं लोकसभा में यह 288 के मुकाबले 232 मतों से पास हुआ। यह विधेयक न केवल कानूनी स्तर पर बड़ा बदलाव लाने वाला है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी बेहद अहम माना जा रहा है।

वक्फ संपत्ति क्या होती है?

वक्फ संपत्तियाँ मुस्लिम समुदाय द्वारा धार्मिक, सामाजिक और परोपकारी उद्देश्यों के लिए दान की गईं संपत्तियाँ होती हैं। इनका संचालन वक्फ बोर्ड द्वारा किया जाता है। यह संपत्तियाँ वर्षों से विवादों, भ्रष्टाचार और अनुचित कब्जों का शिकार रही हैं। ऐसे में सरकार का तर्क है कि इस विधेयक के ज़रिए इन संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाई जा सकेगी।

विधेयक में क्या बदलाव किए गए हैं?

वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 में कई महत्वपूर्ण बदलाव प्रस्तावित किए गए हैं:

  • गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति: अब वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को भी नियुक्त किया जा सकेगा। सरकार का कहना है कि इससे बोर्ड की कार्यप्रणाली में विविधता और संतुलन आएगा।
  • राज्य सरकारों की भूमिका बढ़ेगी: राज्य सरकारों को वक्फ संपत्तियों की निगरानी और हस्तक्षेप का अधिकार मिलेगा। इससे स्थानीय स्तर पर जवाबदेही तय की जा सकेगी।
  • डिजिटलीकरण और पारदर्शिता: सभी वक्फ संपत्तियों का डिजिटल रिकॉर्ड अनिवार्य किया जाएगा ताकि संपत्तियों पर किसी भी प्रकार का अवैध कब्जा रोका जा सके।

सरकार का पक्ष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विधेयक को ‘वंचितों और कमजोर वर्गों के लिए लाभकारी’ बताया है। उनका मानना है कि इससे वक्फ संपत्तियों का सदुपयोग होगा और समाज के उन वर्गों को फायदा पहुंचेगा जिन्हें वाकई मदद की जरूरत है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने भी कहा कि यह कदम मुस्लिम समुदाय के हितों को सुरक्षित रखते हुए उन्हें आधुनिक शासन प्रणाली से जोड़ने का प्रयास है।

विपक्ष और मुस्लिम संगठनों की आशंका

विपक्षी दलों का कहना है कि यह विधेयक संविधान की धर्मनिरपेक्षता की भावना के खिलाफ है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और AIMIM जैसे दलों ने इसे मुस्लिम समुदाय के अधिकारों पर हमला बताया है। उनका मानना है कि सरकार वक्फ संपत्तियों पर नियंत्रण चाहती है और यह एक रणनीतिक हस्तक्षेप है।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत कई धार्मिक संगठनों ने आशंका जताई है कि इस कानून के ज़रिए सरकार वक्फ बोर्डों की स्वायत्तता खत्म करना चाहती है। इसके अलावा, यह भी चिंता है कि गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति से धार्मिक कार्यों में दखलअंदाज़ी बढ़ सकती है।

राजनीतिक असर

इस विधेयक के पारित होने के साथ ही केंद्र सरकार ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वह ‘सुधार बनाम परंपरा’ की बहस में सुधार के पक्ष में खड़ी है। लेकिन साथ ही यह मुद्दा आगामी चुनावों में अल्पसंख्यक वोट बैंक को प्रभावित कर सकता है।

जनता की राय

सामान्य जनता, खासकर मुस्लिम समुदाय, इस विधेयक को लेकर दो धड़ों में बंटी हुई है। एक पक्ष मानता है कि इससे पारदर्शिता आएगी और भ्रष्टाचार घटेगा, जबकि दूसरा पक्ष इसे एक धार्मिक संस्थान में राज्य के हस्तक्षेप के रूप में देखता है।

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को पारित कर सरकार ने एक साहसिक कदम उठाया है। हालांकि इसका असली असर आने वाले महीनों और वर्षों में तब दिखेगा जब इस कानून का ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वयन होगा। सवाल यह नहीं है कि बदलाव ज़रूरी हैं या नहीं, बल्कि यह है कि क्या यह बदलाव सही दिशा में हैं और क्या इससे संबंधित समुदायों को विश्वास में लिया गया है?

अभी यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि यह विधेयक ऐतिहासिक सुधार है या नया विवाद, लेकिन इतना तय है कि इससे देश में धर्म, राजनीति और अधिकारों को लेकर बहस फिर से तेज़ हो गई है।

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