BIMSTEC Summit 2025: थाईलैंड के बैंकॉक में आयोजित छठे BIMSTEC शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के बीच शुक्रवार को पहली बार मुलाकात हुई। यह बैठक ऐसे समय में हुई है जब दोनों देशों के रिश्तों में खासा तनाव है — इसकी बड़ी वजह बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना का भारत में शरण लेना है।
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— IndiaToday (@IndiaToday) April 4, 2025
पृष्ठभूमि: क्यों बढ़ा भारत-बांग्लादेश में तनाव?
2024 के अगस्त महीने में बांग्लादेश में छात्र आंदोलनों के कारण शेख हसीना को सत्ता छोड़नी पड़ी और उन्होंने नई दिल्ली में राजनीतिक शरण ली। इसके बाद बांग्लादेश में अंतरिम सरकार का गठन हुआ, जिसकी कमान नोबेल पुरस्कार विजेता और प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस को सौंपी गई।
बांग्लादेश ने भारत सरकार से औपचारिक रूप से शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की, लेकिन भारत ने इस पर कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया। यही कारण है कि बांग्लादेश के भीतर और बाहर भारत को लेकर असंतोष और अविश्वास बढ़ा है।
द्विपक्षीय वार्ता की मांग और भारत की प्रतिक्रिया
BIMSTEC शिखर सम्मेलन से कुछ हफ्ते पहले ही बांग्लादेश ने भारत से औपचारिक द्विपक्षीय बैठक की मांग की थी। हालांकि शुरुआत में भारत की प्रतिक्रिया उत्साहजनक नहीं थी। भारत सरकार ने शेख हसीना को लेकर बांग्लादेश की आलोचनाओं पर सार्वजनिक रूप से प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन सूत्रों के मुताबिक भारत, बांग्लादेश में कानून-व्यवस्था और अल्पसंख्यकों पर हमलों को लेकर चिंतित है।
बैंकॉक में हुई ऐतिहासिक भेंट
इन तमाम राजनयिक उतार-चढ़ावों के बीच, नरेंद्र मोदी और मुहम्मद यूनुस की यह पहली आमने-सामने की मुलाकात बेहद प्रतीकात्मक मानी जा रही है। इस बैठक में कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई — जैसे सीमा सुरक्षा, गंगा जल बंटवारा, व्यापारिक साझेदारी, ट्रांसपोर्ट कनेक्टिविटी और ऊर्जा सहयोग।
इसके अलावा, भारत ने BIMSTEC को और अधिक प्रभावी बनाने और सदस्य देशों के बीच डिजिटल, आर्थिक और जलवायु सहयोग को मजबूत करने की बात भी रखी। बांग्लादेश की ओर से यह उम्मीद जताई गई कि भारत उनके लोकतांत्रिक संक्रमण में सहयोग देगा और द्विपक्षीय संवाद को जारी रखेगा।
शेख हसीना का मसला: चर्चा हुई या नहीं?
इस मुलाकात में शेख हसीना के मुद्दे पर खुलकर बातचीत नहीं हुई, लेकिन सूत्रों का कहना है कि यह ‘बैकडोर डिप्लोमेसी’ के जरिए हल करने का प्रयास किया जा रहा है। भारत अपने पुराने सहयोगी शेख हसीना को पूरी तरह से नकारने की स्थिति में नहीं है, वहीं यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार से भी संबंध खराब नहीं करना चाहता।
भारत-बांग्लादेश के रिश्तों की रणनीतिक अहमियत
भारत और बांग्लादेश की 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा, सांस्कृतिक-सामाजिक संबंध, और 1971 के मुक्ति संग्राम से उपजी दोस्ती आज भी इन दोनों देशों के रिश्तों की नींव है।
हाल के वर्षों में भारत ने बांग्लादेश को कई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में सहयोग दिया है — जिसमें रेल कनेक्टिविटी, बंदरगाह विकास, और ऊर्जा आयात शामिल हैं। लेकिन शेख हसीना के भारत आगमन और यूनुस सरकार के सत्ता में आने के बाद यह रिश्ता कुछ डगमगाया है।
राजनीतिक विश्लेषण: आगे क्या?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह बैठक बेशक एक ‘शुरुआत’ भर है, लेकिन यह भरोसा जगाती है कि भारत और बांग्लादेश दोबारा संवाद की राह पर हैं।
जहां एक ओर भारत को बांग्लादेश की स्थिरता में रणनीतिक लाभ दिखता है, वहीं यूनुस सरकार के लिए भारत का समर्थन अंतरराष्ट्रीय वैधता और आर्थिक सहयोग के लिए जरूरी है।
नरेंद्र मोदी और मुहम्मद यूनुस की पहली मुलाकात उन तमाम मतभेदों के बावजूद एक सकारात्मक संकेत है। इसने यह दिखाया कि दो पड़ोसी देश भले ही कठिन दौर से गुजर रहे हों, लेकिन बातचीत और सहयोग के रास्ते अब भी खुले हैं।
शेख हसीना की वापसी, प्रत्यर्पण या राजनीतिक भविष्य का सवाल फिलहाल अनसुलझा है, लेकिन दोनों देशों के नेताओं की कूटनीतिक कुशलता और संवाद की इच्छा इस क्षेत्रीय अस्थिरता को स्थायित्व में बदल सकती है।