Kunal Kamra controversy: जनविचार विशेष: कुणाल कामरा का “गद्दार” गाना और शिव सेना का “तोड़फोड़ तमाशा”तो भाइयों और बहनों, एक बार फिर से हमारे देश का लोकतंत्र अपनी पूरी शान से चमक रहा है। इस बार मंच पर हैं मशहूर स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा, जिन्होंने अपने नए शो “नया भारत” में एक गाना गाया और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को “गद्दार” कहकर ऐसा तीर चलाया कि पूरा शिव सेना खेमा तिलमिला गया। नतीजा? स्टूडियो में तोड़फोड़, FIR की बौछार, और बीएमसी का हथौड़ा—सब कुछ इतना ड्रामेटिक कि बॉलीवुड वाले भी शरमा जाएं।
कहानी शुरू होती है मार्च 2025 से, जब कुणाल ने अपने यूट्यूब चैनल पर “नया भारत” अपलोड किया। इसमें उन्होंने 1997 की फिल्म “दिल तो पागल है” के गाने को थोड़ा ट्विस्ट दिया और लाइन डाली—”मेरी नजर से तुम देखो तो गद्दार नजर वो आए।” अब कुणाल ने तो किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन शिव सेना के “कायकर्ताओं” को लगा कि ये उनके “शिंदे साहब” पर तंज है। बस फिर क्या था? गुस्सा ऐसा फूटा कि लगा जैसे कोई सास-बहू सीरियल का क्लाइमेक्स चल रहा हो।
तोड़फोड़ का “शिव सेना स्टाइल” स्वागत
23 मार्च को मुंबई के खार इलाके में “द हेबिटेट स्टूडियो” पर शिव सेना के कार्यकर्ताओं ने धावा बोल दिया। कुर्सियां तोड़ीं, दीवारों पर रंग पोता, और स्टाफ को धमकियां दीं। अगले दिन बीएमसी ने स्टूडियो के कुछ हिस्से को “अवैध निर्माण” बताकर ढहा दिया। अब सवाल ये है कि क्या स्टूडियो रातों-रात अवैध हो गया, या फिर ये “शिव सेना स्टाइल” में कुणाल को सबक सिखाने का तरीका था? खैर, बीएमसी का बुलडोजर तो वैसे भी आजकल हर विवाद का “फाइनल सॉल्यूशन” बन गया है।
शिंदे जी ने कहा, “ये तो सुपारी लेकर किसी को बदनाम करने जैसा है।” अरे भाई, सुपारी की बात छोड़ो, कुणाल ने तो बस एक गाना गाया था। अगर हर गाने पर स्टूडियो तोड़ना शुरू कर दिया तो फिर “आज जाने की जिद न करो” गाने वाले स्टूडियो का क्या होगा? या “तुम ही हो” गाने पर कितने माइक टूटेंगे?
कुणाल का जवाब: “मैं बिस्तर के नीचे नहीं छिपूंगा”
कुणाल ने ट्विटर (या जो अब X कहलाता है) पर लिखा, “मैं भीड़ से नहीं डरता और बिस्तर के नीचे छिपकर इस तूफान के थमने का इंतजार नहीं करूंगा।” वाह कुणाल भाई, ये तो “बाहुबली” वाली वाइब दे रहा है। लेकिन सच कहें तो कुणाल की हिम्मत तारीफ के काबिल है। जिस देश में लोग “सॉरी” बोलने में माहिर हैं, वहां कुणाल ने कहा, “माफी नहीं मांगूंगा।” और तो और, उन्होंने एक और वीडियो डाल दिया—इस बार वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर तंज कसते हुए। लगता है कुणाल ने ठान लिया है कि अगर डूबना है तो पूरा जहाज लेकर डूबेंगे।
अभिव्यक्ति की आजादी या “अति हो गई”?
अब बात करते हैं असली मुद्दे की। भारत का संविधान हमें बोलने की आजादी देता है, लेकिन उसमें एक “लेकिन” भी है—मानहानि और सार्वजनिक व्यवस्था का हवाला देकर इसे सीमित किया जा सकता है। शिव सेना कहती है कि कुणाल ने हद पार कर दी। दूसरी तरफ, कुणाल के समर्थक कहते हैं कि ये तो सत्ता पर सवाल उठाने का हक है। सवाल ये है कि क्या एक मजाक इतना खतरनाक हो सकता है कि स्टूडियो तोड़ना जायज लगे? या फिर हमारा लोकतंत्र इतना नाजुक हो गया है कि एक गाने से उसकी नींव हिल जाए?
उधर, उद्धव ठाकरे की शिव सेना (UBT) ने कुणाल का समर्थन किया। उद्धव जी बोले, “कुणाल ने सच बोला, जनता की भावनाएं जाहिर कीं।” अब ये तो वही बात हुई कि “अपना कुत्ता भी शेर लगता है।” क्योंकि जब कुणाल ने बीजेपी पर तंज कसा था, तब उद्धव खेमा भी नाराज था। लगता है सच्चाई का पैमाना इस बात पर निर्भर करता है कि तीर किसके सीने में लगा।
पुलिस का “ऑडियंस हंट” और कुणाल का ऑफर
मामला तब और मजेदार हो गया जब मुंबई पुलिस ने कुणाल के शो में मौजूद दर्शकों को समन भेजना शुरू कर दिया। एक बैंकर, जो तमिलनाडु-केरल की छुट्टियों पर था, उसे बीच में वापस बुलाया गया। कुणाल ने बड़े दिल से ट्वीट किया, “मेरे शो में आने की वजह से आपको तकलीफ हुई, इसके लिए माफी। मुझे ईमेल करो, मैं आपकी अगली छुट्टी का खर्चा उठाऊंगा।” अब ये तो वाकई “कॉमेडी विद करेक्शन” है। पुलिस को शायद लगा कि दर्शकों से पूछकर पता चलेगा कि कुणाल ने क्या कहा था। अरे भाई, वीडियो यूट्यूब पर है, उसे देख लो ना! या फिर पुलिस को भी कुणाल के जोक्स समझने में दिक्कत हो रही है?
नेताओं का “हास्य दरबार”
अब थोड़ा इतिहास देखें। जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता अपने खिलाफ मजाक को हंसकर टाल देते थे। लेकिन आजकल के नेता इतने “सेंसिटिव” हो गए हैं कि एक जोक से उनकी कुर्सी हिलने का डर सताने लगता है। शिंदे जी, अगर कुणाल का गाना इतना बुरा लगा तो आप भी एक कॉमेडियन हायर कर लो। जवाब में “मेरी नजर से तुम देखो तो हास्यकार नजर वो आए” गवाओ। जनता को हंसी भी आएगी और टेंशन भी कम होगा।
हंसी का हक या हंगामे का बहाना?
तो दोस्तों, कुणाल कामरा का ये प्रकरण हमें सोचने पर मजबूर करता है। क्या हंसी अब सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि एक हथियार बन गई है? या फिर हमारी सहनशक्ति इतनी कम हो गई कि एक गाने से सिस्टम हिल जाता है? कुणाल ने जो किया, वो साहसिक था, लेकिन उसकी कीमत भी चुकानी पड़ रही है। दूसरी तरफ, शिव सेना का गुस्सा समझ आता है, पर तोड़फोड़ और धमकियां क्या सही जवाब हैं?
अंत में बस इतना कहना चाहता हूं—अगर हर मजाक पर स्टूडियो टूटेगा, तो जल्द ही कॉमेडियन्स को स्टेडियम में शो करने पड़ेंगे। और अगर हर गाने पर FIR होगी, तो शायद कुणाल को अगला शो जेल से लाइव करना पड़े। तब तक, हंसते रहो, सोचते रहो, और जनविचार पढ़ते रहो। क्योंकि हम तो बस सच को हंसी के लिबास में परोसते हैं!