G Parameshwara apologises: बेंगलुरु के बीटीएम लेआउट में हाल ही में हुई यौन उत्पीड़न की एक दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे राज्य को झकझोर दिया। यह घटना सीसीटीवी कैमरे में रिकॉर्ड हुई और सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। इसके बाद कर्नाटक के गृह मंत्री जी. परमेश्वर द्वारा दिए गए बयान ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया।
The #Karnataka Home Minister G Parmeshwar says,"We have taken many steps for the safety of women in the state, my statement was misinterpreted and is being presented in different ways…but if my mothers and sisters have been hurt by my statement then I express my regret". pic.twitter.com/OuDJIHK9CO
— Yasir Mushtaq (@path2shah) April 8, 2025
मंत्री के बयान को लोगों ने असंवेदनशील और पीड़िता के प्रति उपेक्षापूर्ण बताया। इसके बाद भारी विरोध और आलोचना को देखते हुए जी. परमेश्वर ने मंगलवार को सार्वजनिक रूप से माफी मांगते हुए कहा, “मेरे बयान को गलत समझा गया है। मेरा उद्देश्य किसी की भावना को आहत करना नहीं था। यदि किसी को मेरे शब्दों से ठेस पहुंची है, तो मैं क्षमा चाहता हूं।”
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर नेताओं की बयानबाज़ी पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह कोई पहली बार नहीं है जब जी. परमेश्वर को अपने बयानों के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा हो।
2017 में नए साल की रात बेंगलुरु में हुई छेड़छाड़ की घटनाओं पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा था कि “कन्नड़िगा इस तरह का व्यवहार नहीं करते।” उस समय भी उन्हें अपने शब्दों के लिए घेरा गया था।
2021 में मैसूरु में हुए एक गैंगरेप मामले में भी गृह मंत्री की टिप्पणी विवाद में आ गई थी, जहां उन्होंने कथित तौर पर पीड़िता की गलती पर सवाल खड़े किए। उस समय भी उन्हें माफी मांगनी पड़ी थी।
2024 में हुबली में एक छात्रा की हत्या के मामले में भी उन्होंने आरोपी और पीड़िता को “प्रेम संबंध” में बताया, जिससे जन आक्रोश भड़का और बाद में उन्हें मृतका के परिजनों से माफी मांगनी पड़ी थी।
इन सभी घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि किसी संवेदनशील विषय पर बोलते समय नेताओं को कितनी सावधानी बरतनी चाहिए। जनभावनाओं का सम्मान करना और पीड़ितों के दर्द को समझना न केवल एक नैतिक जिम्मेदारी है, बल्कि राजनैतिक पद की गरिमा का भी प्रश्न है।
सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों के बयानों का प्रभाव समाज पर गहरा पड़ता है। एक गैर-जिम्मेदाराना बयान न केवल पीड़ित को और अधिक आघात पहुंचा सकता है, बल्कि समाज में असंवेदनशीलता को बढ़ावा भी दे सकता है।
वर्तमान परिदृश्य में जब जनता हर बात पर सजग और प्रतिक्रियाशील है, नेताओं के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वे अपने शब्दों को सोच-समझकर चुनें। माफी माँग लेना एक सकारात्मक कदम हो सकता है, लेकिन यह तभी सार्थक होगा जब भविष्य में ऐसे बयानों से बचा जाए।
इस पूरी घटना से एक सबक यह भी मिलता है कि कानून व्यवस्था से जुड़ी घटनाओं में नेताओं को संवेदनशीलता, सहानुभूति और जवाबदेही के साथ बयान देने की ज़रूरत है। जनता अब केवल बयान नहीं, बल्कि ज़िम्मेदार और संवेदनशील नेतृत्व की उम्मीद करती है।
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