Pope Francis funeral

Pope Francis funeral: 26 अप्रैल 2025 को वेटिकन सिटी के ऐतिहासिक सेंट पीटर्स स्क्वायर में एक बेहद भावुक दृश्य देखने को मिला। लगभग 2,50,000 श्रद्धालु, विश्व नेताओं, कैथोलिक चर्च के अधिकारी और आम नागरिक पोप फ्रांसिस को अंतिम विदाई देने के लिए एकत्र हुए थे। यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि एक ऐसे युग का समापन था जिसने चर्च को अधिक मानवीय, समावेशी और संवेदनशील स्वरूप प्रदान किया।

एक ‘जनता के पोप’ की विरासत

पोप फ्रांसिस का असली नाम जोर्ज मारियो बर्गोलियो था। वे 13 मार्च 2013 को कैथोलिक चर्च के 266वें पोप बने थे और पहले लैटिन अमेरिकी पोप के रूप में इतिहास रच दिया था। अपनी 12 साल की पोपाई के दौरान, उन्होंने चर्च को एक खुले और दयालु संगठन के रूप में पुनर्परिभाषित किया। उन्होंने पारंपरिक सीमाओं को चुनौती दी, वंचितों, प्रवासियों, महिलाओं और LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद की।

पोप फ्रांसिस का संदेश सादगी और करुणा पर आधारित था। वे एक ऐसे नेता थे जो उच्च पद की गरिमा के बावजूद आम लोगों के बीच रहना पसंद करते थे। उन्होंने पॉप मोबाईल से बुलेटप्रूफ ग्लास हटवाकर संदेश दिया कि “चर्च को डर के बजाय विश्वास से काम करना चाहिए।”

अंतिम संस्कार समारोह: सादगी का सजीव उदाहरण

पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार समारोह का स्वरूप पूरी तरह से उनकी इच्छाओं के अनुरूप था — सादा, गरिमापूर्ण और विनम्र। सेंट पीटर्स स्क्वायर के बीचों-बीच एक साधारण लकड़ी के ताबूत में उनका पार्थिव शरीर रखा गया। उस ताबूत पर कोई भव्य शिलालेख या आभूषण नहीं थे, केवल एक साधारण क्रॉस रखा गया था, जो उनके जीवन की विनम्रता और सादगी का प्रतीक था।

समारोह का नेतृत्व कार्डिनल जियोवानी बत्तिस्ता रे ने किया। भजन, प्रार्थनाएं और विविध भाषाओं में पाठ हुए, जिससे पोप फ्रांसिस के चर्च को वैश्विक बनाने के प्रयासों को दर्शाया गया। इस मौके पर वेटिकन के हजारों पादरी, धर्मगुरु और श्रद्धालु एक साथ प्रार्थना में लीन दिखाई दिए।

वैश्विक नेताओं की उपस्थिति: एक श्रद्धांजलि

इस ऐतिहासिक समारोह में विश्व के कई प्रमुख नेताओं ने हिस्सा लिया। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर और प्रिंस विलियम भी श्रद्धांजलि देने पहुंचे। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पोप फ्रांसिस को श्रद्धांजलि अर्पित की और उन्हें ‘मानवता का पथप्रदर्शक’ कहा।

इतनी विविधता से भरी वैश्विक उपस्थिति से यह स्पष्ट हो गया कि पोप फ्रांसिस केवल एक धार्मिक नेता नहीं थे, बल्कि एक ऐसे विश्वनेता थे जिन्होंने राजनीति, धर्म और मानवता के बीच की दूरी को कम किया था।

सैंटा मारिया मैजियोरे में विश्राम

पोप फ्रांसिस को वेटिकन के पारंपरिक पोप समाधि स्थल के बजाय रोम के सैंटा मारिया मैजियोरे बेसिलिका में दफनाया जाएगा। यह स्थान उनके लिए विशेष था। पोप बनने के बाद उन्होंने हर बड़े अवसर पर इस बेसिलिका का दौरा किया था और माता मरियम के समर्पण के प्रतीक के रूप में प्रार्थना की थी।

उनका यह निर्णय भी उनकी सोच को दर्शाता है — चर्च को जनता के और गरीबों के करीब लाना। सैंटा मारिया मैजियोरे में उनका स्वागत करने के लिए गरीबों और प्रवासियों के एक समूह को विशेष आमंत्रण दिया गया था, जो उनके जीवन के मूल्यों का जीवंत प्रमाण है।

जनता की भागीदारी: एक सच्चा जननेता

पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार में केवल राष्ट्राध्यक्ष या बड़े धर्मगुरु ही नहीं आए, बल्कि हजारों साधारण लोग, प्रवासी समुदायों के सदस्य, कैदी, और समाज के सबसे निचले तबके के लोग भी आए। यह वही लोग थे जिनके लिए पोप फ्रांसिस ने हमेशा अपनी आवाज उठाई थी।

बहुत से लोगों ने अपने अनुभव साझा किए कि कैसे पोप ने उन्हें चर्च के भीतर अपनत्व का एहसास दिलाया। एक प्रवासी महिला ने कहा, “पोप फ्रांसिस ने हमें यह बताया कि हम भी चर्च का हिस्सा हैं, चाहे हमारी भाषा, रंग या देश कुछ भी हो।”

एक विचारशील जीवन का अंत

पोप फ्रांसिस ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भी समाज के ज्वलंत मुद्दों पर आवाज उठाई। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में चर्च की भूमिका को मजबूत किया। उन्होंने दुनिया को ‘अखंड मानवता’ के रूप में देखने की प्रेरणा दी, जहाँ सभी धर्म, जाति और सीमाओं से परे इंसानियत सर्वोपरि हो।

उनका आखिरी संदेश भी यही था — “पृथ्वी हमारी साझी विरासत है, और गरीब हमारे सबसे बड़े उत्तरदायित्व।”

एक युग का अंत, एक प्रेरणा की शुरुआत

पोप फ्रांसिस का निधन न केवल कैथोलिक चर्च के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी क्षति है। उनकी विरासत हमें याद दिलाती है कि सच्चे नेतृत्व का आधार सत्ता या रुतबा नहीं, बल्कि करुणा, सादगी और सेवा होती है।

उनका अंतिम संस्कार एक धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं था; वह एक सार्वभौमिक संदेश था — एक ऐसा जीवन जियो जो दूसरों के आंसू पोंछे, जो दूरियों को मिटाए, और जो प्रेम, करुणा और समानता के मूल्यों पर आधारित हो।

पोप फ्रांसिस चले गए, लेकिन उनकी शिक्षाएं और उदाहरण हमेशा मानवता के पथ को प्रकाशित करते रहेंगे।

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