India-Pakistan tensions: भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से चले आ रहे जल विवाद ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है। हाल ही में भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में चिनाब नदी पर बने बगलिहार और सलाल बांधों से पाकिस्तान की ओर बहने वाले पानी का प्रवाह रोक दिया है। यह कदम भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करने के कुछ ही हफ्तों बाद सामने आया है। विशेषज्ञों और कूटनीतिक हलकों में इसे “जल कूटनीति” का एक नया अध्याय माना जा रहा है, जिसकी गूंज न केवल दक्षिण एशिया में बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सुनाई दे सकती है।
#BREAKING: India has stopped water flowing towards Pakistan through Salal Dam on Chenab River in Reasi district in India’s Jammu & Kashmir. Major setback to Pakistan which is already grappling with water crisis and economic slowdown. pic.twitter.com/dlKMCxFKJA
— Aditya Raj Kaul (@AdityaRajKaul) May 5, 2025
जल प्रवाह रोके जाने के पीछे की पृष्ठभूमि
भारत सरकार का कहना है कि वह जम्मू-कश्मीर के बगलिहार और सलाल बांधों में तलछट (सिल्ट) हटाने का कार्य कर रही है, जिससे जलाशयों की क्षमता बनाए रखी जा सके। यह एक तकनीकी कार्य है, जो समय-समय पर किया जाता है, लेकिन पाकिस्तान का आरोप है कि भारत ने इस कार्य से पहले सूचित नहीं किया, जो कि सिंधु जल संधि के नियमों के विरुद्ध है। भारत ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि जब उसने संधि को निलंबित ही कर दिया है, तो अब वह इस तरह की जानकारी साझा करने के लिए बाध्य नहीं है।
विश्लेषकों का मानना है कि भारत का यह कदम न केवल एक तकनीकी कार्य है, बल्कि पाकिस्तान पर कूटनीतिक दबाव बनाने की रणनीति भी है। विशेष रूप से तब जब हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में एक आतंकवादी हमले में 26 निर्दोष तीर्थयात्रियों की हत्या हुई, जिसका आरोप भारत ने पाकिस्तान आधारित आतंकवादी संगठन “द रेजिस्टेंस फ्रंट” पर लगाया है।
सिंधु जल संधि: समझौता जो अब विवाद बनता जा रहा है
सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित एक ऐतिहासिक समझौता है, जो विश्व बैंक की मध्यस्थता से संपन्न हुआ था। इस संधि के तहत छह नदियों — सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज — का जल बंटवारा तय किया गया था। तीन पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास, सतलुज) भारत को मिलीं और तीन पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम, चिनाब) पाकिस्तान को।
हालांकि भारत को पश्चिमी नदियों पर ‘नॉन-कंजम्पटिव यूसेज’ जैसे कि जलविद्युत परियोजनाएं, सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण की अनुमति दी गई थी, लेकिन उसमें भी कई तकनीकी शर्तें थीं। भारत और पाकिस्तान के बीच अक्सर इन्हीं परियोजनाओं को लेकर विवाद होते रहे हैं, जैसे कि किशनगंगा और रटले बांध।
भारत ने अब यह दावा किया है कि जब पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को शह देता है, तो इस तरह के समझौतों का पालन करना उसके हित में नहीं है। भारत ने यह भी कहा है कि वह अपने संसाधनों का पूरा उपयोग करने का अधिकार रखता है।
पाकिस्तान की तीखी प्रतिक्रिया
पाकिस्तान सरकार ने भारत के इस कदम की कड़ी निंदा की है और इसे ‘जल आतंकवाद’ करार दिया है। पाकिस्तान का कहना है कि भारत जानबूझकर उसे जल संकट में धकेलने की कोशिश कर रहा है। वहां के विदेश मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि यदि भारत ने पाकिस्तान के हिस्से के जल को रोकने की कोशिश की, तो इसे युद्ध की कार्रवाई के तौर पर देखा जाएगा।
इसके अलावा, पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को उठाने की तैयारी कर रहा है। इस्लामाबाद ने विश्व बैंक से हस्तक्षेप की मांग की है और संयुक्त राष्ट्र में भी इस मुद्दे को उठाने की योजना बनाई है। हालांकि, भारत यह स्पष्ट कर चुका है कि वह अपने आंतरिक मामलों में किसी बाहरी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेगा।
जम्मू-कश्मीर को क्या लाभ मिलेगा?
भारत के इस फैसले से जम्मू-कश्मीर को कई लाभ हो सकते हैं। सबसे बड़ा लाभ सिंचाई के क्षेत्र में होगा। कठुआ और सांबा जिलों में करीब 32,000 हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई अब सुनिश्चित की जा सकेगी। शाहपुर कंडी परियोजना के पूरा होने के बाद इससे उत्पन्न होने वाली 206 मेगावाट बिजली का 20% हिस्सा जम्मू-कश्मीर को मिलेगा। इससे न केवल ऊर्जा आत्मनिर्भरता में मदद मिलेगी बल्कि क्षेत्र के आर्थिक विकास को भी बल मिलेगा।
इसके अलावा, जलाशयों की तलछट हटाने की प्रक्रिया से बांधों की आयु भी बढ़ेगी और बाढ़ नियंत्रण में भी सहायता मिलेगी। लंबे समय से जम्मू-कश्मीर में जल संसाधनों के समुचित उपयोग की मांग की जा रही थी, जो अब पूरी होती दिखाई दे रही है।
क्षेत्रीय शांति पर असर
भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र हैं। ऐसे में दोनों के बीच बढ़ता तनाव केवल सीमा तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसके क्षेत्रीय और वैश्विक परिणाम हो सकते हैं। जल जैसे संवेदनशील मुद्दे को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना अंतरराष्ट्रीय नियमों और मानकों के खिलाफ माना जाता है। यदि दोनों देशों के बीच संवाद का मार्ग नहीं खोला गया, तो आने वाले वर्षों में जल संकट एक गंभीर भू-राजनीतिक समस्या बन सकता है।
कुछ पर्यावरणविद् यह भी चेतावनी दे रहे हैं कि जल प्रवाह में भारी परिवर्तन से इकोसिस्टम पर भी असर पड़ेगा, खासकर चिनाब नदी के निचले क्षेत्रों में, जो पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से होकर गुजरती है। वहाँ की कृषि अर्थव्यवस्था इसी नदी पर निर्भर करती है।
आगे क्या?
भारत और पाकिस्तान के संबंधों में पहले से ही कई विवाद हैं — कश्मीर, आतंकवाद, व्यापार और सीमा रेखा जैसे मुद्दों पर। अब जल भी इस विवाद की सूची में शामिल हो गया है। यह स्थिति केवल टकराव को ही नहीं बढ़ाएगी, बल्कि दोनों देशों की आम जनता, किसानों और उद्योगों को भी प्रभावित करेगी।
विशेषज्ञ मानते हैं कि समाधान केवल शक्ति प्रदर्शन से नहीं, बल्कि संवाद और पारदर्शिता से ही संभव है। यदि दोनों देश जल को युद्ध का कारण नहीं बल्कि सहयोग का आधार बनाएं, तो यह पूरे क्षेत्र के लिए लाभदायक हो सकता है।
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