Israel-Iran conflict

Israel-Iran conflict: अस्पताल पर मिसाइल हमला, इज़राइल ने ख़ामनेई को ‘नॉन-एग्ज़िस्टेंट’ घोषित किया

Israel-Iran conflict: 19 जून 2025 को इज़राइल और ईरान के बीच पहले से ही तनावपूर्ण चल रहे संबंधों ने एक और खतरनाक मोड़ ले लिया। ईरान की तरफ से छोड़े गए मिसाइलों ने इज़राइल के दक्षिणी हिस्से में स्थित सोरोक़ा अस्पताल को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया। इस हमले में कम से कम 240 लोग घायल हो गए, जिनमें चार की हालत गंभीर बताई जा रही है। इसके अलावा तेल अवीव के आसपास के कई रिहायशी इलाकों पर भी मिसाइलें गिरीं जिससे कई मकानों को नुकसान पहुंचा और लोगों में भय का माहौल पैदा हो गया।

हमले के तुरंत बाद इज़राइल ने ईरान के अरेक शहर में स्थित एक भारी जल रिएक्टर को निशाना बनाकर जवाबी कार्रवाई की। यह रिएक्टर ईरान के परमाणु कार्यक्रम का एक प्रमुख हिस्सा माना जाता है। इस जवाबी कार्रवाई के ज़रिये इज़राइल ने स्पष्ट संकेत दिया कि वह ईरान की आक्रामकता को अब चुपचाप सहन नहीं करेगा।

इस हमले और जवाबी कार्रवाई के बीच इज़राइल के रक्षा मंत्री इस्राइल काट्ज़ ने एक बयान जारी करते हुए ईरान के सर्वोच्च नेता आयातुल्लाह अली ख़ामनेई को सीधे तौर पर निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि अब ईज़राइली सेना को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि अपने सभी सामरिक और रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए “इस व्यक्ति का अस्तित्व समाप्त होना चाहिए।” इस बयान को विश्व स्तर पर एक बेहद उग्र और खतरनाक बयान के रूप में देखा जा रहा है। कुछ विश्लेषकों ने इसे असाधारण राजनीतिक धमकी बताया है, जो किसी राष्ट्र के सर्वोच्च नेता को खुलेआम खत्म करने की बात करता है।

इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हालांकि आधिकारिक तौर पर “रेजिम चेंज” (शासन परिवर्तन) की बात नहीं कही, लेकिन यह स्पष्ट किया कि यदि ईरान की जनता खुद अपने शासन से छुटकारा पाना चाहती है तो इज़राइल उन्हें रोकने वाला नहीं होगा। इज़राइली नेतृत्व इस समय दो मोर्चों पर काम कर रहा है – पहला, ईरान के परमाणु एवं बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को समाप्त करना, और दूसरा, ईरान के शासन को रणनीतिक रूप से अस्थिर करना ताकि वह क्षेत्र में आतंकवाद को समर्थन न दे सके।

अमेरिका की भूमिका इस पूरे परिदृश्य में अब तक संतुलित दिखाई दे रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि अमेरिका फिलहाल इस संघर्ष में सीधा हस्तक्षेप नहीं करेगा, लेकिन आने वाले दो हफ्तों में कोई बड़ा फैसला लिया जा सकता है। ट्रंप ने स्पष्ट किया कि अमेरिका इज़राइल के आत्मरक्षा के अधिकार को पूरी तरह से मान्यता देता है लेकिन किसी व्यापक युद्ध में कूदने से पहले वह कूटनीतिक समाधान को प्राथमिकता देगा।

दूसरी ओर रूस और चीन जैसे देश इस क्षेत्रीय संकट को शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से हल करने की अपील कर रहे हैं। उनका मानना है कि सैन्य संघर्ष से पूरे मध्य-पूर्व में अस्थिरता फैल सकती है, जो वैश्विक व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति को भी प्रभावित करेगा। यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र ने भी इज़राइल और ईरान से संयम बरतने और बातचीत की मेज पर लौटने की अपील की है।

लेकिन तनाव को कम करना अब आसान नहीं दिखता। ईरान समर्थक इराक़ की शिया मिलिशिया हरकत-ए-नुजबा ने चेतावनी दी है कि यदि ईरान के सर्वोच्च नेता को नुकसान पहुँचाने की कोई भी कोशिश हुई, तो न सिर्फ इज़राइल, बल्कि अमेरिका के नागरिक भी पूरे पश्चिम एशिया में निशाने पर होंगे। ऐसे बयानों से यह साफ है कि इस संघर्ष की लपटें और अधिक क्षेत्रों को अपनी चपेट में ले सकती हैं।

एक और बड़ी चिंता यह है कि अस्पताल जैसे नागरिक ठिकानों पर हमला अंतरराष्ट्रीय युद्ध नियमों और मानवीय कानूनों का सीधा उल्लंघन है। यदि ऐसी कार्रवाइयां जारी रहीं, तो इससे आम नागरिकों की जान और स्वास्थ्य प्रणाली पर बड़ा खतरा उत्पन्न होगा। यह न केवल इज़राइल और ईरान के लिए बल्कि पूरे विश्व समुदाय के लिए एक चिंताजनक स्थिति है।

विश्लेषकों का मानना है कि इज़राइल अब केवल रक्षा नहीं बल्कि “प्री-एम्प्टिव स्ट्राइक” (पूर्व-आक्रामक हमला) की नीति अपना रहा है। वह पहले ही ईरान की कई मिसाइल निर्माण और यूरेनियम संवर्धन स्थलों को निशाना बना चुका है। अब अरेक का हैवी वाटर रिएक्टर उसका नया टारगेट बना, जो बताता है कि वह ईरान के परमाणु कार्यक्रम की रीढ़ को तोड़ने की रणनीति पर काम कर रहा है।

इस पूरे परिदृश्य में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यही उठता है – क्या यह संघर्ष केवल सामरिक ठिकानों और नेताओं तक सीमित रहेगा या यह एक बड़े क्षेत्रीय युद्ध का रूप ले लेगा? और क्या वैश्विक शक्तियाँ इस संघर्ष को रोकने में सफल हो पाएंगी, या यह एक ऐसी आग बनेगी जो पूरे मध्य-पूर्व को अपनी चपेट में ले लेगी?

सत्य यह है कि इस वक्त हालात बेहद संवेदनशील हैं। दोनों पक्षों के बीच विश्वास की भारी कमी है और सैन्य कार्रवाइयों ने किसी भी प्रकार के शांतिवार्ता के रास्ते को लगभग बंद कर दिया है। यदि वैश्विक समुदाय अब भी हस्तक्षेप नहीं करता, तो इस संघर्ष का परिणाम विनाशकारी हो सकता है।

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