Pakistan water crisis

Pakistan water crisis: सिंधु जल संधि के निलंबन से पाकिस्तान में जल संकट और फसलों की तबाही

Pakistan water crisis: पाकिस्तान एक अभूतपूर्व जल संकट का सामना कर रहा है। भारत द्वारा सिंधु जल संधि को आंशिक रूप से निलंबित किए जाने के बाद, पड़ोसी देश की हालत इतनी बिगड़ चुकी है कि खेत सूखने लगे हैं, बाँध खाली हो रहे हैं, और लोगों को पीने के पानी तक के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। यह एक ऐसा संकट है जिसने पाकिस्तान की नाजुक आर्थिक व्यवस्था को और अधिक कमजोर कर दिया है।

पाकिस्तान में पानी की गिरती उपलब्धता

सिंधु नदी प्रणाली, जो पाकिस्तान की कृषि और पीने के पानी की मुख्य जीवनरेखा है, उसका जल प्रवाह अचानक लगभग 20 प्रतिशत तक गिर चुका है। इसका असर देश के तीन प्रमुख प्रांतों — सिंध, पंजाब और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा — में बुरी तरह से पड़ा है। सिंध में जल प्रवाह 1.7 लाख क्यूसेक्स से घटकर 1.33 लाख क्यूसेक्स रह गया है। पंजाब में यह 1.3 लाख क्यूसेक्स से घटकर 1.1 लाख पर आ चुका है।

सबसे बुरी बात यह है कि इन दोनों क्षेत्रों में जल संकट के कारण लाखों किसानों को या तो अपनी फसलें छोड़नी पड़ी हैं या उन्हें अधूरी सिंचाई पर निर्भर रहकर उत्पादन करना पड़ रहा है। ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में भी जल आपूर्ति में गिरावट दर्ज की गई है, जिससे छोटे पैमाने पर सिंचाई प्रणाली प्रभावित हो रही है।

बाँधों की हालत: डेड स्टोरेज तक पहुँचा पानी

पाकिस्तान के दो सबसे बड़े बाँध — तर्बेला और मंगला — अब डेड स्टोरेज स्तर पर पहुँच चुके हैं। इसका अर्थ है कि इनमें अब इतना भी पानी नहीं बचा कि उसे पंप या प्रवाह के माध्यम से उपयोग में लाया जा सके। जब बाँध इस स्तर पर पहुँच जाते हैं, तो उनके जल संसाधनों का उपयोग केवल आपातकालीन स्थिति में या सीमित समय के लिए ही किया जा सकता है।

विशेषज्ञों के अनुसार, इन बाँधों की भंडारण क्षमता का 50 प्रतिशत से भी कम पानी शेष रह गया है। बिजली उत्पादन और सिंचाई परियोजनाओं पर इसका गहरा असर पड़ा है। पाकिस्तान का पावर सेक्टर पहले ही ऊर्जा संकट से जूझ रहा है और अब जलविद्युत उत्पादन की कमी से वह और गहराता जा रहा है।

कृषि पर आपदा जैसी स्थिति

सिंचाई में कमी के कारण पाकिस्तान की खारिफ फसलें बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं। कपास, मक्का, धान और गन्ने जैसी फसलें सिंधु जल पर ही निर्भर हैं।

• कपास की बुवाई में लगभग 30 प्रतिशत तक की गिरावट आई है।
• मक्का उत्पादन में करीब 15 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।
• धान (चावल) की खेती, जो मानसून पर निर्भर होती है, अब जल संकट के कारण अधर में है।
• गेहूं की उपज में भी लगभग 9 प्रतिशत की गिरावट अनुमानित है।

इन फसलों की पैदावार घटने से न केवल किसानों की आय पर असर पड़ेगा, बल्कि खाद्य आपूर्ति श्रृंखला भी चरमराने लगेगी। यह स्थिति खाद्य मुद्रास्फीति को भी भड़का सकती है, जो पहले से ही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को परेशान कर रही है।

अर्थव्यवस्था की कमर टूटती जा रही है

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले ही अत्यधिक कर्ज, राजनीतिक अस्थिरता और महंगाई के दबाव में है। अब जल संकट ने कृषि क्षेत्र को चौपट कर दिया है, जिससे कृषि आधारित अर्थव्यवस्था और भी ज्यादा चरमरा गई है।

कृषि पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 23 प्रतिशत योगदान देती है और यह देश की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रोजगार देती है। यदि यही स्थिति बनी रही, तो आने वाले महीनों में बेरोजगारी और महंगाई दोनों में जबरदस्त उछाल देखने को मिलेगा।

भारत का रुख और रणनीति

भारत ने अप्रैल में हुए पुलवामा जैसे आतंकवादी हमले और पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद के खिलाफ कोई ठोस कदम न उठाए जाने की स्थिति में सिंधु जल संधि को आंशिक रूप से निलंबित कर दिया। यह कदम भारत की ओर से कूटनीतिक और रणनीतिक रूप से प्रभावशाली रहा है।

भारत अब चिनाब, रावी और ब्यास नदियों पर जल परियोजनाएं पूरी करने में तेजी ला रहा है, जिससे पानी को पाकिस्तान की ओर न जाने दिया जाए और उसे भारत में ही सिंचाई, पीने के पानी और बिजली उत्पादन के लिए उपयोग में लाया जा सके।

इसके अलावा, भारत सरकार ने यह घोषणा की है कि अगले तीन वर्षों में सिंधु जल को राजस्थान के श्रीगंगानगर तक पहुँचाया जाएगा। इसका सीधा मतलब यह है कि पाकिस्तान को हर बूंद के लिए तरसना पड़ेगा।

पाकिस्तान की बेबसी और अंतरराष्ट्रीय अपील

पाकिस्तान ने अब तक भारत को चार बार औपचारिक रूप से पत्र भेजकर संधि को बहाल करने की अपील की है। उसने विश्व बैंक से भी इस मुद्दे पर मध्यस्थता करने का अनुरोध किया, क्योंकि यह संधि उसी के माध्यम से 1960 में लागू हुई थी। हालांकि, अभी तक विश्व बैंक ने इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया है।

यह पाकिस्तान के लिए एक राजनयिक और रणनीतिक हार की तरह है। एक ओर जल संकट है, दूसरी ओर दुनिया की चुप्पी, और तीसरी ओर भारत का बढ़ता जल नियंत्रण — यह सब मिलकर पाकिस्तान के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया है।

पानी से बनी राजनीतिक परछाई

भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि को लंबे समय तक “सफल” अंतरराष्ट्रीय समझौते के रूप में देखा गया था। लेकिन मौजूदा स्थिति ने दिखा दिया है कि जल भी एक रणनीतिक हथियार बन सकता है, खासकर तब जब पड़ोसी देश अपनी आंतरिक और बाह्य नीतियों में विफल हो रहा हो।

पाकिस्तान के लिए यह संकट केवल एक जल संकट नहीं है, यह एक राष्ट्रीय अस्तित्व का प्रश्न बन चुका है। यदि मानसून सामान्य नहीं रहा और भारत ने संधि को पूरी तरह निलंबित कर दिया, तो यह संकट अकाल, पलायन और राजनीतिक अस्थिरता की नई लहर ला सकता है।

भारत के लिए यह एक कूटनीतिक सफलता की स्थिति हो सकती है, लेकिन इसमें मानवीय पक्ष भी छिपा है – क्या जल को हथियार बनाया जाना चाहिए या इसे सहयोग और समझौते का माध्यम रहना चाहिए? यह प्रश्न आने वाले समय में पूरे दक्षिण एशिया के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाएगा।

और समाचारों के लिए पढ़ते रहिए जनविचार

Admin

Kiran Mankar - Admin & Editor, Jana Vichar.Kiran manages and curates content for Jana Vichar, a platform dedicated to delivering detailed, trending news from India and around the world. Passionate about journalism, technology, and the evolving landscape of human relationships, Kiran ensures that every story is engaging, insightful, and relevant. With a focus on accuracy and a human-centered approach, Kiran strives to keep readers informed with meaningful news coverage.

View all posts by Admin →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *