caste discrimination in Indigo

caste discrimination in Indigo: इंडिगो कर्मचारी का ‘जातिवादी अपमान’ का चौंकाने वाला आरोप

caste discrimination in Indigo: इंडिगो एयरलाइन, जो देश की सबसे बड़ी और प्रतिष्ठित निजी एयरलाइनों में से एक मानी जाती है, आजकल एक गंभीर आरोप के घेरे में है। बेंगलुरु के रहने वाले 35 वर्षीय प्रशिक्षु पायलट शरण ए. ने आरोप लगाया है कि उन्हें इंडिगो के तीन वरिष्ठ अधिकारियों ने जातिगत आधार पर अपमानित किया। यह मामला तब सामने आया जब शरण ने अपने ऊपर हो रहे अन्याय के खिलाफ चुप्पी तोड़ते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।

आरोपों की शुरुआत

यह घटना अप्रैल 2024 की बताई जा रही है, जब शरण को गुड़गाँव स्थित इंडिगो के कॉर्पोरेट ऑफिस में एक मीटिंग के लिए बुलाया गया था। इस मीटिंग में इंडिगो के तीन वरिष्ठ अधिकारी – तपस् डे (प्रशिक्षण प्रमुख), मनीष साहनी (सहायक उपाध्यक्ष, उड़ान प्रशिक्षण) और कप्तान राहुल पाटिल (चेफ़ पायलट) उपस्थित थे। शरण का आरोप है कि इन अधिकारियों ने उन्हें उनके सामाजिक पृष्ठभूमि के आधार पर अपमानित किया।

उनके अनुसार, उन्हें कहा गया कि “तुम हवाई जहाज़ उड़ाने लायक नहीं हो, जूते सिलने जाओ,” और यहां तक कि “तुम तो जूते चाटने के लायक भी नहीं हो।” इस तरह के शब्दों ने न सिर्फ उनके आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचाई, बल्कि मानसिक रूप से भी उन्हें गहरा आघात दिया। शरण ने यह भी आरोप लगाया कि उनके वेतन में भी कटौती की गई और बिना कारण उन्हें फिर से प्रशिक्षण लेने को मजबूर किया गया।

पुलिस में मामला दर्ज

शरण ने मई 2024 में बेंगलुरु में ज़ीरो एफआईआर दर्ज कराई, जिसे बाद में हरियाणा के गुरुग्राम स्थित डीएलएफ फेज-1 थाना स्थानांतरित किया गया। इसमें उन्होंने भारतीय दंड संहिता की धाराओं और अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज करवाया।

एफआईआर में जातिगत अपमान, मानसिक उत्पीड़न, धमकी और वेतन में कटौती जैसे कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। शरण ने यह भी कहा कि उन्होंने कंपनी के CEO और एथिक्स कमिटी को ईमेल के ज़रिए सारी स्थिति से अवगत कराया था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।

इंडिगो की प्रतिक्रिया

इंडिगो एयरलाइन ने इन आरोपों का कड़ा खंडन किया है। एयरलाइन की ओर से बयान जारी कर कहा गया कि यह आरोप पूरी तरह से निराधार और असत्य हैं। इंडिगो ने स्पष्ट किया कि वह “ज़ीरो टॉलरेंस” की नीति पर चलती है और कार्यस्थल पर किसी भी प्रकार के भेदभाव को बढ़ावा नहीं देती।

कंपनी ने यह भी कहा कि वह इस मामले में पुलिस और जांच एजेंसियों के साथ पूरी तरह सहयोग कर रही है। हालांकि, कंपनी ने अब तक आंतरिक जांच शुरू करने की पुष्टि नहीं की है, जिससे इस पूरे मामले में पारदर्शिता को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

क्या यह एकल मामला है या व्यवस्थागत समस्या?

इस घटना ने एक बार फिर कार्यस्थल में जातिगत भेदभाव के मुद्दे को उजागर कर दिया है। खासकर उन क्षेत्रों में, जहां योग्यता और कौशल को सबसे अहम माना जाता है, वहां सामाजिक पहचान के आधार पर भेदभाव करना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और चिंताजनक है।

यह मामला केवल एक व्यक्ति के साथ हुआ अन्याय नहीं है, बल्कि यह पूरे कॉर्पोरेट वातावरण के लिए चेतावनी है कि आज भी संस्थानों के भीतर जातिवाद की जड़ें गहरी हैं। शरण का कहना है कि वह मानसिक रूप से काफी तनाव में है और उसकी आत्मा को ठेस पहुंची है। एक प्रशिक्षु पायलट के रूप में जिस सपने को लेकर उसने करियर शुरू किया था, वह अब एक डरावने अनुभव में बदल गया है।

आगे की प्रक्रिया

इस मामले की जांच फिलहाल गुरुग्राम पुलिस कर रही है। पुलिस अधिकारी यह सुनिश्चित करने में लगे हैं कि साक्ष्य, गवाहों और मीटिंग के रिकॉर्ड्स की बारीकी से जांच हो। यदि आरोप सही पाए गए तो आरोपियों के खिलाफ अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम के तहत सख्त सजा हो सकती है।

इस मामले में एक और महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि क्या इंडिगो अब इस घटनाक्रम को गंभीरता से लेते हुए आंतरिक जांच समिति गठित करेगी, या फिर इसे एक “इमेज मैनेजमेंट” की प्रक्रिया में दबा दिया जाएगा।

संगठनात्मक जिम्मेदारी और सामाजिक चेतना

इंडिगो जैसे बड़े संगठन के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह इस मामले पर पारदर्शिता से कार्रवाई करे। यदि दोषी अधिकारियों को संरक्षण दिया गया, तो इससे न केवल पीड़ित को न्याय मिलने में रुकावट आएगी, बल्कि अन्य कर्मचारियों में भी असंतोष और भय पैदा होगा।

कॉर्पोरेट कंपनियों को केवल ‘डायवर्सिटी पॉलिसी’ बनाकर जिम्मेदारी से मुक्त नहीं होना चाहिए। यह आवश्यक है कि वे अपने कार्यस्थल को वास्तव में समावेशी, सुरक्षित और सम्मानजनक बनाएँ। कर्मचारियों को यह भरोसा मिलना चाहिए कि अगर उनके साथ अन्याय होता है तो उन्हें सुना जाएगा और न्याय मिलेगा।

एक गहरी चिंता

इस पूरे प्रकरण ने न केवल इंडिगो की छवि को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि भारत में कार्यस्थल की संस्कृति और जातिगत पूर्वग्रह को लेकर गंभीर सवाल भी खड़े किए हैं। यह मामला दर्शाता है कि आज भी हमारे समाज में जातिवाद एक छिपी हुई लेकिन सशक्त समस्या है, जिसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते।

शरण जैसे युवाओं की हिम्मत और जागरूकता ही वह कदम है जो इस प्रकार की संस्थागत बुराइयों को चुनौती देती है। यदि न्याय की प्रक्रिया सही दिशा में आगे बढ़ी, तो यह मामला भविष्य में आने वाले ऐसे कई पीड़ितों को प्रेरणा देगा।

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