Axiom-4 mission: भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला, जो Axiom Space द्वारा संचालित Axiom-4 मिशन का हिस्सा हैं, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर अपने अंतिम दिनों में भी ज़मीन से लाखों किलोमीटर दूर नए कीर्तिमान रच रहे हैं। NASA ने पुष्टि की है कि Axiom-4 मिशन की वापसी 14 जुलाई को भारतीय समयानुसार शाम 4:35 बजे के बाद निर्धारित है। इसी समय उनका और उनकी टीम का अंतरिक्ष स्टेशन से ‘अनडॉकिंग’ यानी वापसी के लिए प्रस्थान होगा। यह मिशन न केवल अंतरिक्ष विज्ञान के लिए बल्कि भारत की वैश्विक उपस्थिति के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण और गौरवशाली क्षण बन गया है।
#NASA confirms July 14 as the return window for Group Captain Shubhanshu Shukla and the Axiom-4 crew.
— Priyal Bhardwaj (@Ipriyalbhardwaj) July 11, 2025
From commanding the skies to conquering space — India’s astronaut is now part of orbital history.
Next stop: Earth. Next chapter: Legacy. pic.twitter.com/8VxXZBHHCs
शुभांशु शुक्ला भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन हैं और उन्हें इस ऐतिहासिक मिशन में शामिल कर भारत ने अंतरिक्ष जगत में एक बड़ी छलांग लगाई है। Axiom‑4 मिशन की कमान अनुभवी अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री पेगी व्हिटसन के पास रही, जबकि टीम के अन्य सदस्य पोलैंड के स्लावोस उज़नांस्की और हंगरी के टिबोर कपो थे। इस अंतरराष्ट्रीय टीम ने अंतरिक्ष में विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में ऐसे प्रयोग किए जो भविष्य की पीढ़ियों के लिए मील का पत्थर साबित हो सकते हैं।
शुभांशु शुक्ला ने अपने मिशन के दौरान जो मुख्य प्रयोग किए, उनमें ‘माइक्रोएल्गी’ यानी सूक्ष्म शैवाल पर केंद्रित अध्ययन सबसे उल्लेखनीय है। यह प्रयोग अंतरिक्ष में भोजन, ऑक्सीजन और बायोफ्यूल उत्पादन की संभावनाओं पर केंद्रित था। इस प्रयोग के ज़रिए वैज्ञानिक यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि दीर्घकालिक अंतरिक्ष अभियानों में मनुष्यों के लिए आवश्यक संसाधनों की आपूर्ति कैसे सुनिश्चित की जा सकती है। भविष्य में मंगल ग्रह और उससे भी आगे के मिशनों के लिए यह तकनीक बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
मिशन के दौरान उन्होंने अन्य प्रयोगों में भी योगदान दिया, जैसे मस्तिष्क में रक्त प्रवाह को लेकर अध्ययन, जो माइक्रोग्रैविटी में मानव शरीर के व्यवहार को समझने में मदद करता है। इसके अलावा ‘एक्वायर्ड इक्विवलेंस टेस्ट’ और ‘वोयाजर डिस्प्ले’ जैसी तकनीकी प्रणाली का परीक्षण किया गया। इन सभी प्रयोगों का उद्देश्य पृथ्वी पर चिकित्सा, तंत्रिका विज्ञान और अंतरिक्ष मिशनों की स्थिरता को बढ़ावा देना है।
सिर्फ वैज्ञानिक प्रयोग ही नहीं, अंतरिक्ष में भारतीय संस्कृति की झलक भी देखने को मिली। जब Axiom-4 क्रू ने एक विशेष डिनर पार्टी मनाई जिसमें भारतीय व्यंजन जैसे आमरस, गाजर का हलवा और झींगा को शामिल किया गया। यह न केवल भारतीय स्वाद की उपलब्धता का संकेत है, बल्कि यह दर्शाता है कि भारतीय तत्व अब अंतरिक्ष में भी अपनी पहचान बना रहे हैं। इस अनुभव ने न केवल मिशन को मानवीय रूप दिया, बल्कि भावनात्मक रूप से भी एक सकारात्मक ऊर्जा दी।
शुभांशु शुक्ला ने मिशन के दौरान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष वी. नारायणन से संवाद भी किया और उन्हें अपने वैज्ञानिक प्रयोगों के परिणामों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि किस तरह हड्डियों के स्वास्थ्य, विकिरण से सुरक्षा और जीवन-संभव बनाने वाले माइक्रोएल्गी जैसे तत्वों पर प्रयोग किए गए। यह संवाद दर्शाता है कि Axiom-4 मिशन भारत के Gaganyaan मानव मिशन की नींव को और मजबूत कर रहा है।
यह मिशन सिर्फ अंतरिक्ष तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके परिणाम पृथ्वी पर भी व्यापक प्रभाव डाल सकते हैं। जो डेटा और प्रयोगों की सामग्री शुभांशु और उनकी टीम पृथ्वी पर वापस ला रही है, उससे चिकित्सा विज्ञान, कृषि तकनीक, पर्यावरणीय संतुलन और विकिरण-सुरक्षा तकनीकों में क्रांतिकारी बदलाव आने की संभावना है। टीम लगभग 260 किलोग्राम वैज्ञानिक नमूनों और उपकरणों को लेकर लौटेगी, जो अमेरिका के कैलिफोर्निया तट पर उतारे जाएंगे।
Axiom Space ने इस मिशन को भविष्य की अंतरिक्ष खोज और धरती पर जीवन की गुणवत्ता सुधारने की दिशा में ‘रूपांतरकारी प्रयास’ करार दिया है। वहीं NASA ने भी इसकी पुष्टि कर दी है कि 14 जुलाई को Ax-4 मिशन की वापसी तय है — जो इस पूरे अभियान का औपचारिक समापन होगा। वास्तव में, यह मिशन एक प्रेरक उदाहरण बन गया है कि किस प्रकार अंतरराष्ट्रीय सहयोग, वैज्ञानिक सोच और तकनीकी क्षमता के माध्यम से मानव जाति सीमाओं से परे जा सकती है।
भारत के लिए यह क्षण गौरवपूर्ण होने के साथ-साथ रणनीतिक भी है। शुभांशु शुक्ला की यह ऐतिहासिक यात्रा देश के युवाओं में अंतरिक्ष विज्ञान के प्रति उत्साह बढ़ाएगी और नई पीढ़ी को प्रेरित करेगी कि वे भी अंतरिक्ष अन्वेषण का हिस्सा बन सकते हैं।
शुभांशु शुक्ला और उनकी टीम की वापसी न केवल एक सफल मिशन का समापन है, बल्कि यह एक ऐसे युग की शुरुआत है जिसमें भारत भी अंतरिक्ष यात्राओं में निर्णायक भूमिका निभाने के लिए तैयार है। जैसा कि यह मिशन दिखाता है, सीमाएं अब केवल भौगोलिक नहीं रहीं – वे वैज्ञानिक प्रयासों और नवाचार से टूट रही हैं।
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