Samay Raina’s comment on disability: स्टैंड-अप कॉमेडी की दुनिया में एक नया मोड़ तब आया जब सुप्रीम कोर्ट ने मशहूर कॉमेडियन समय रैना और चार अन्य सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को विकलांग लोगों और दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों पर किए गए मजाकों को लेकर कड़ी चेतावनी दी। देश की सबसे बड़ी अदालत ने इन चुटकुलों को “डिस्टर्बिंग” यानी परेशान करने वाला बताया और कहा कि वह “व्यक्तिगत आचरण की सूक्ष्मता से जांच” करेगी।
Supreme Court hears petition by Cure SMA India Foundation, accusing Samay Raina and four other stand-up comedians of mocking a person with disability and making dismissive comments about the challenges faced by individuals requiring high-cost treatment for Spinal Muscular Atrophy… pic.twitter.com/xgdMDAnS1e
— Bar and Bench (@barandbench) July 15, 2025
यह टिप्पणी कोर्ट ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए दी, जो ‘CURE SMA Foundation of India’ द्वारा दायर की गई थी। याचिका में आरोप लगाया गया है कि समय रैना और अन्य कॉमेडियनों ने सोशल मीडिया और स्टैंडअप शो में विकलांग व्यक्तियों और स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी जैसी दुर्लभ बीमारी से जूझ रहे बच्चों पर आपत्तिजनक और अपमानजनक चुटकुले किए हैं।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह सिर्फ ‘कॉमेडी’ नहीं बल्कि एक तरह की ‘हेट स्पीच’ है, जो विकलांग लोगों की गरिमा को ठेस पहुँचाती है। उन्होंने अदालत से ऐसे कंटेंट पर सख्त कार्यवाही की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त प्रतिक्रिया
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमलया बागची की पीठ ने कहा कि ऐसे मामले में सिर्फ माफी मांगने से बात नहीं बनेगी, क्योंकि ये चुटकुले उन लोगों के खिलाफ थे जो जीवनभर संघर्ष कर रहे हैं। कोर्ट ने पांचों नामित कॉमेडियनों को अगली सुनवाई तक लिखित जवाब दाखिल करने को कहा है, और यह भी निर्देश दिया कि वे स्वयं कोर्ट में उपस्थित हों।
समय रैना, डैनियल फर्नांडिस, आकाश मेहता, राहुल सुब्रमण्यम और सोनाली ठक्कर पर यह आरोप लगाया गया है कि उन्होंने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर दुर्लभ बीमारियों और शारीरिक अक्षमताओं पर कटाक्ष किया, जिससे अनेक परिवार आहत हुए हैं।
कोर्ट ने विशेष रूप से यह भी कहा कि सोशल मीडिया और स्टैंडअप कॉमेडी के नाम पर इस तरह की संवेदनहीन बातें करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत नहीं आता।
सोनाली ठक्कर को मिली राहत
सोनाली ठक्कर को उनकी शारीरिक स्थिति को देखते हुए अदालत ने अगली सुनवाई में वर्चुअली शामिल होने की अनुमति दी है। हालांकि कोर्ट ने साफ कर दिया कि शेष सभी को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना होगा और मामले को हल्के में लेने की कोई संभावना नहीं है।
संवैधानिक विमर्श: स्वतंत्रता बनाम गरिमा
इस केस ने एक महत्वपूर्ण संवैधानिक बहस को भी जन्म दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि संविधान का अनुच्छेद 19, जो बोलने की स्वतंत्रता देता है, वह अनुच्छेद 21 के ऊपर नहीं है, जो व्यक्ति की गरिमा और जीवन के अधिकार की रक्षा करता है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी की अभिव्यक्ति की आज़ादी का यह मतलब नहीं कि आप सार्वजनिक रूप से किसी के जीवन की पीड़ा का मजाक उड़ाएं। यह सीमाएं तय करने का समय है, खासकर डिजिटल युग में जब कंटेंट तुरंत लाखों लोगों तक पहुँचता है।
चुटकुले जो बन गए विवाद
समय रैना और अन्य कॉमेडियनों के खिलाफ शिकायतों में यह भी कहा गया है कि उन्होंने ₹16 करोड़ की लागत वाले Zolgensma इंजेक्शन को लेकर एक बच्चे और उसके परिवार का मजाक उड़ाया। यह इंजेक्शन SMA (स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी) नामक बीमारी के इलाज के लिए जरूरी होता है।
समय रैना ने इस मुद्दे पर कथित तौर पर ऐसा चुटकुला किया: “अगर मेरे खाते में ₹16 करोड़ आ जाएं तो मैं कहूंगा, इन्फ्लेशन बहुत बढ़ गया है।” इस बात को सुनकर ना सिर्फ SMA से पीड़ित बच्चों के परिवार, बल्कि पूरे देश में संवेदनशील लोगों में आक्रोश फैल गया।
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर निगरानी का सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी इस मुद्दे पर संज्ञान लेने का निर्देश दिया और पूछा कि सोशल मीडिया और OTT प्लेटफॉर्म्स पर इस तरह के कंटेंट को रोकने के लिए क्या दिशा-निर्देश हैं। क्या ऐसे कंटेंट की मॉनिटरिंग हो रही है? यदि नहीं, तो सरकार को अब इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
कॉर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह की बातें मनोरंजन के नाम पर बर्दाश्त नहीं की जा सकतीं। इंटरनेट एक खुला मंच है, लेकिन इसका उपयोग करने वालों की नैतिक जिम्मेदारी भी होती है।
स्टैंडअप कॉमेडी की आज़ादी या जवाबदेही?
इस पूरे मामले ने एक सवाल खड़ा कर दिया है — क्या स्टैंडअप कॉमेडी के नाम पर कोई भी विषय मजाक का पात्र हो सकता है? क्या सामाजिक संवेदनशीलता का कोई स्थान नहीं बचा? जब सार्वजनिक मंच से ऐसी बातें कही जाती हैं, तो उनके असर को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
जहां कुछ लोग इसे कला की स्वतंत्रता मानते हैं, वहीं बड़ी संख्या में लोग इस पक्ष में हैं कि मनोरंजन की भी सीमाएं होनी चाहिए। हँसी तब तक ठीक है जब तक वह किसी के दर्द को गहराने का माध्यम न बने।
अदालत का रुख और समाज का सवाल
समय रैना और अन्य कॉमेडियनों के लिए यह सिर्फ एक कानूनी मामला नहीं, बल्कि उनके करियर और सामाजिक छवि पर सीधा प्रभाव डालने वाला प्रकरण बन गया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह संकेत दे दिया है कि वह इस मामले को गंभीरता से देख रही है और यदि आवश्यक हुआ तो कड़ा निर्णय लिया जा सकता है।
यह मामला सिर्फ एक कॉमेडियन या एक मजाक तक सीमित नहीं है — यह हमारे समाज की उस संवेदनशील रेखा को परिभाषित करने का अवसर है जो बताती है कि ‘हँसी’ और ‘असंवेदनशीलता’ के बीच कितना बारीक फर्क होता है।
आगामी सुनवाई में यह देखना दिलचस्प होगा कि आरोपी कॉमेडियंस क्या सफाई देते हैं और सुप्रीम कोर्ट इस पर क्या फैसला सुनाती है। लेकिन एक बात साफ है — डिजिटल युग में शब्दों का वजन बढ़ चुका है और हर मंच पर जिम्मेदारी अब टालने की चीज नहीं रह गई।
शब्दों में ताकत होती है, और जब वे हँसी में लिपटे हों, तब और भी ज़्यादा।
अपमानजनक मजाक और शॉकिंग संवेदनहीनता अब कानून की कसौटी पर हैं।
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