Nimisha Priya case: भारत सरकार ने 17 जुलाई 2025 को स्पष्ट किया कि वह यमन में फांसी की सजा का सामना कर रहीं भारतीय नर्स नीमिषा प्रिया के मामले को लेकर लगातार सक्रिय बनी हुई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जैसवाल ने कहा कि यह मामला बेहद संवेदनशील है और भारत सरकार नीमिषा को न्याय दिलाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। इस प्रयास में यमन की स्थानीय सरकार, वहां के न्यायिक निकाय और भारत के मित्र देशों को भी जोड़ा गया है, ताकि इस मामले का एक सकारात्मक समाधान निकल सके।
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— All India Radio News (@airnewsalerts) July 17, 2025
In the case of an Indian nurse Nimisha Priya, jailed in Yemen, the spokesperson MEA, Randhir Jaiswal says- It is a sensitive matter and the Government of India has been offering all possible assistance in the case.
We have also arranged regular consular visits and… pic.twitter.com/rRK46rUtQq
नीमिषा प्रिया कौन हैं और मामला क्या है?
नीमिषा प्रिया केरल की निवासी हैं और एक प्रशिक्षित नर्स हैं। वह रोजगार के उद्देश्य से कई साल पहले यमन गई थीं, जहां उन्होंने एक स्थानीय नागरिक तलाल अब्दो महदी के साथ व्यवसाय शुरू किया। 2017 में नीमिषा पर महदी की हत्या का आरोप लगा। बताया जाता है कि यह हत्या आत्मरक्षा में की गई थी, क्योंकि महदी ने कथित रूप से नीमिषा का पासपोर्ट जब्त कर लिया था और उन्हें प्रताड़ित कर रहा था।
स्थानीय अदालत ने 2020 में नीमिषा को मौत की सजा सुनाई थी। इसके बाद से भारत सरकार इस सजा को टालने और उनकी रिहाई के प्रयास में जुटी हुई है। 2023 में अंतिम अपील भी खारिज हो गई, जिससे मामला और गंभीर हो गया।
भारत की कूटनीतिक सक्रियता
भारत सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कानूनी सहायता के साथ-साथ कूटनीतिक स्तर पर भी कोशिशें तेज कर दी हैं। विदेश मंत्रालय ने यमन की स्थानीय सरकार से संपर्क किया है, साथ ही सऊदी अरब, ओमान और कुछ अन्य पश्चिम एशियाई देशों के माध्यम से यमन सरकार तक पहुंचने की कोशिश की है, क्योंकि भारत का यमन में कोई दूतावास नहीं है।
रंधीर जैसवाल ने मीडिया को बताया कि सरकार ने नीमिषा को कांसुलर सुविधा, कानूनी परामर्श और मानवीय सहायता उपलब्ध करवाई है। उन्होंने यह भी बताया कि यह एक अत्यंत नाजुक स्थिति है और सरकार समाधान के लिए एक ऐसा रास्ता तलाश रही है जो सभी पक्षों को स्वीकार हो।
धार्मिक और सामाजिक हस्तक्षेप
इस मामले में धार्मिक हस्तक्षेप की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। केरल के प्रमुख मुस्लिम धर्मगुरु ग्रैंड मुफ्ती कांथपुरम ए. पी. अबूबकर मुसलियार ने यमन के विख्यात इस्लामी विद्वान हबीब उमर से संपर्क किया है ताकि मृतक महदी के परिवार को क्षमा के लिए मनाया जा सके।
इस्लामी कानून के तहत ‘क़िसास’ यानी प्रतिकार की सजा को पीड़ित के परिवार की अनुमति से ‘दिया’ यानी मुआवजा देकर टाला जा सकता है। नीमिषा के परिजनों और सामाजिक संगठनों ने ‘ब्लड मनी’ (रक्तद्रव्य) देने की पेशकश की है, लेकिन अभी तक महदी का परिवार क्षमा देने को तैयार नहीं है।
कोर्ट और सामाजिक संगठनों की भूमिका
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट तक याचिका पहुंची, जिसमें सरकार से नीमिषा की जान बचाने के लिए हस्तक्षेप की अपील की गई थी। अदालत में सरकार ने कहा कि उसने हर स्तर पर प्रयास किया है और आगे की राह अब यमन की कानून प्रणाली और मृतक के परिजनों के निर्णय पर निर्भर है।
वहीं ‘सेव नीमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ नामक संगठन लगातार जनचेतना बढ़ाने का काम कर रहा है। उन्होंने लोगों से संयम रखने और कूटनीतिक कोशिशों में विश्वास रखने की अपील की है। संगठन का कहना है कि किसी भी प्रकार का विरोध या भावनात्मक उबाल चल रही बातचीत को नुकसान पहुंचा सकता है।
फांसी पर फिलहाल रोक
16 जुलाई 2025 को नीमिषा की फांसी की तारीख तय थी, लेकिन भारत सरकार की सक्रियता और धार्मिक नेताओं की अपील के बाद यमन प्रशासन ने अंतिम समय में फांसी को टाल दिया। यह फैसला उन लाखों भारतीयों के लिए आशा की किरण बनकर सामने आया, जो नीमिषा की जिंदगी बचाने के लिए दुआ कर रहे थे।
केरल के मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन और विपक्षी नेता वी.डी. सतीशेन ने इस टालाव को भारत की कूटनीतिक जीत बताया और साथ ही कांथपुरम के प्रयासों की सराहना की। यह संकेत करता है कि जब राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक संस्थान मिलकर प्रयास करते हैं, तो असंभव भी संभव हो सकता है।
यमन की कानूनी व्यवस्था में चुनौती
यमन में शरीयत आधारित कानून लागू है, जिसमें हत्या जैसे मामलों में सजा का फैसला अक्सर पीड़ित परिवार पर छोड़ दिया जाता है। अगर परिवार ‘क़िसास’ पर अड़ा रहता है और ‘ब्लड मनी’ नहीं स्वीकारता, तो अदालत फांसी की सजा बरकरार रखती है। नीमिषा के मामले में भी यही स्थिति बनी हुई है, जिससे भारत सरकार के लिए राह आसान नहीं है।
इसके अलावा, भारत का यमन में कोई स्थायी राजनयिक प्रतिनिधित्व नहीं है। ऐसे में सऊदी अरब, ओमान जैसे देशों के माध्यम से यमन से बातचीत की जा रही है। यह कूटनीतिक दृष्टि से भी एक जटिल प्रक्रिया है।
आगे की राह
नीमिषा की जिंदगी अब उन मानवीय और धार्मिक प्रयासों पर टिकी है, जो यमन के स्थानीय समाज और भारत के संगठनों के बीच पुल का कार्य कर रहे हैं। अगर महदी का परिवार मुआवजे को स्वीकार कर लेता है, तो नीमिषा को माफ किया जा सकता है। लेकिन यह तभी संभव है जब उन्हें मनाने में सफलता मिले।
भारत सरकार और सामाजिक संगठनों को संयम, धैर्य और निरंतर प्रयास के साथ काम करना होगा। यह मामला न सिर्फ एक महिला की जिंदगी से जुड़ा है, बल्कि यह भारत की मानवीय दृष्टिकोण, कूटनीतिक प्रभाव और अंतरराष्ट्रीय संवेदनशीलता की परीक्षा भी है।
नीमिषा प्रिया का मामला भारत के लिए मानवीयता और न्याय के रास्ते पर एक कठिन लेकिन प्रेरणादायक परीक्षा बन चुका है। भारत सरकार, धार्मिक नेताओं और सामाजिक संस्थाओं के एकजुट प्रयासों ने फिलहाल एक महत्वपूर्ण सफलता दिलाई है—फांसी टल गई है। लेकिन अंतिम लक्ष्य अभी दूर है।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जब इरादे मजबूत हों और प्रयास एकजुट हों, तो किसी की जान भी बचाई जा सकती है—even in the most difficult circumstances.
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