12 crore as alimony: सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसे अजीबोगरीब मामले की सुनवाई हुई जिसने पूरे देश में चर्चा छेड़ दी। मामला एक महिला द्वारा अपने पति से भारी-भरकम गुज़ारा भत्ता (maintenance/alimony) की मांग का था, जिसमें उसने 18 महीने की शादी के बाद पति से मुंबई में एक घर, एक BMW कार और 12 करोड़ रुपये की मांग रखी। इस पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में बेंच ने तीखी टिप्पणी की – “आप इतनी पढ़ी-लिखी हैं, आपको खुद के लिए मांगना नहीं चाहिए बल्कि कमाकर खुद का भरण-पोषण करना चाहिए।”
"खुद कमाकर खाइए, आप भी पढ़ी-लिखी हैं"
— News24 (@news24tvchannel) July 22, 2025
◆ तलाक के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महिला से कहा
◆ महिला ने एलिमनी में 12 करोड़ रुपए, BMW कार मांगी थी #SupremeCourt | #Alimony | Supreme Court on Alimony pic.twitter.com/jv5ngE77Uv
इस बयान ने कानूनी हलकों से लेकर आम नागरिकों तक एक नई बहस को जन्म दे दिया है: क्या शिक्षित महिलाओं को भी भरण-पोषण का अधिकार मिलना चाहिए, या उनसे आत्मनिर्भरता की अपेक्षा की जानी चाहिए?
पूरा मामला क्या है?
इस मामले में याचिकाकर्ता महिला ने दावा किया कि विवाह के दौरान उसके पति ने एक शानदार जीवनशैली प्रदान की थी, जिसमें महंगे उपहार, विदेश यात्राएं और आलीशान जीवन शामिल था। अब जब वे अलग हो चुके हैं, महिला का तर्क है कि उसे वही जीवनशैली बनाए रखने के लिए अपने पति से आर्थिक सहायता चाहिए।
महिला ने कोर्ट से मांग की कि उसे मुंबई में एक घर दिया जाए ताकि वह स्वतंत्र रूप से रह सके, साथ ही एक BMW कार और 12 करोड़ रुपये की एकमुश्त या चरणबद्ध रूप से भरण-पोषण राशि दी जाए। यह मांग सुनते ही कोर्ट ने महिला की शिक्षा और योग्यता पर ध्यान केंद्रित किया और कहा कि वह इतनी पढ़ी-लिखी है कि खुद कमाकर आत्मनिर्भर बन सकती है।
सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी क्यों महत्वपूर्ण है?
यह पहली बार नहीं है जब किसी महिला ने पति से भारी-भरकम गुज़ारा भत्ते की मांग की हो, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह स्पष्ट और सख्त रुख इस बात को दर्शाता है कि न्यायालय अब शिक्षा और आत्मनिर्भरता को भरण-पोषण की मांग के सामने एक महत्वपूर्ण कसौटी मानता है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “आप शिक्षित हैं, सक्षम हैं, तो फिर खुद कमाने में क्या समस्या है? जब कोई महिला नौकरी कर सकती है, तो वह पति पर क्यों निर्भर रहना चाहती है?”
इस टिप्पणी का यह अर्थ नहीं कि हर महिला को अलिमनी नहीं मिलनी चाहिए, बल्कि यह इस ओर इशारा है कि जिन महिलाओं के पास संसाधन, योग्यता और अवसर हैं, उन्हें स्वयं आत्मनिर्भर बनने की ओर प्रेरित होना चाहिए।
महिलाओं की आत्मनिर्भरता और कानून
भारतीय कानून में भरण-पोषण की व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि तलाक या अलगाव के बाद महिला की बुनियादी जरूरतें पूरी हो सकें। खासकर उन मामलों में जहां महिला की कोई आय नहीं है, या वह शारीरिक, मानसिक या सामाजिक कारणों से काम नहीं कर सकती।
लेकिन जब महिला शिक्षित है, अच्छा करियर रखती है या कमा सकती है, तो ऐसी स्थिति में अदालत यह देखती है कि क्या वह वास्तव में भरण-पोषण की जरूरतमंद है या नहीं। यह दृष्टिकोण पिछले कुछ वर्षों में भारतीय अदालतों में तेजी से बढ़ा है।
यह मामला समाज में क्या संदेश देता है?
यह मामला कई सवाल खड़े करता है:
क्या भरण-पोषण केवल एक महिला का अधिकार है, भले ही वह सक्षम हो?
क्या पति की जिम्मेदारी अनंत काल तक चलती है, चाहे पत्नी आत्मनिर्भर बन सके या नहीं?
क्या शिक्षा और योग्यता को भरण-पोषण की मांग को खारिज करने के आधार पर इस्तेमाल किया जाना चाहिए?
इस पूरे मामले का सकारात्मक पक्ष यह है कि अदालत ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित किया है। कोर्ट की टिप्पणी महिलाओं को यह संदेश देती है कि यदि वे योग्य हैं, तो उन्हें अपनी पहचान और जीवन अपने दम पर खड़ा करना चाहिए।
कानूनी विशेषज्ञों की राय
कानून के जानकारों का मानना है कि यह निर्णय न केवल व्यावहारिक है बल्कि समाज में एक संतुलन भी स्थापित करता है। वरिष्ठ अधिवक्ता बताते हैं कि “भरण-पोषण का मतलब यह नहीं कि पत्नी को पति के स्तर का जीवन ही चाहिए। अदालत देखती है कि महिला की वास्तविक ज़रूरतें क्या हैं, और क्या वह खुद उन्हें पूरा कर सकती है।”
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कोर्ट की इस तरह की टिप्पणियां महिला सशक्तिकरण के पक्ष में हैं। यह सोच महिलाओं को केवल ‘पीड़िता’ मानने की प्रवृत्ति से बाहर लाने में सहायक हो सकती हैं।
आलोचना और समर्थन – दोनों का मिला-जुला स्वर
हालांकि कुछ सामाजिक संगठनों ने कोर्ट की टिप्पणी को कठोर बताया है। उनके अनुसार, एक महिला के लिए नौकरी करना हमेशा आसान नहीं होता, भले ही वह शिक्षित हो। बच्चों की परवरिश, मानसिक स्वास्थ्य, समाजिक दबाव और कार्यस्थल की असमानता जैसी कई चुनौतियां होती हैं।
वहीं दूसरी ओर, कई महिलाएं इस सोच का समर्थन कर रही हैं कि शिक्षित महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि शिक्षा केवल नौकरी के लिए नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता की भावना के लिए जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट का यह रुख सामाजिक बदलाव का संकेत है। यह केवल एक कानूनी निर्णय नहीं, बल्कि समाज को आत्मनिरीक्षण करने का अवसर है – क्या हम महिलाओं को सच में सशक्त बनाना चाहते हैं? यदि हां, तो हमें उन्हें केवल भरण-पोषण का अधिकार देने से आगे बढ़कर उन्हें आत्मनिर्भरता का साहस भी देना होगा।
यह निर्णय बताता है कि अब वक्त आ गया है जब महिलाओं को केवल अधिकार नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारी भी लेनी होगी – अपने भविष्य की, अपनी पहचान की और अपने आत्मसम्मान की।
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