October 6, 2025
Thailand-Cambodia conflict

Thailand-Cambodia conflict: थाईलैंड-कंबोडिया सीमा पर फिर भड़की हिंसा, 14 मौतें और लाखों की चिंता

Thailand-Cambodia conflict: थाईलैंड और कंबोडिया की सीमा पर वर्षों से चला आ रहा तनाव अब एक भयावह संघर्ष में तब्दील होता नजर आ रहा है। बीते दो दिनों में हालात अचानक बेकाबू हो गए हैं। थाई सेना और कंबोडियाई सेना के बीच सीमा पर हुए भीषण टकराव ने न केवल दोनों देशों के नागरिकों को दहशत में डाल दिया है, बल्कि पूरी अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को भी चिंता में डाल दिया है।

इस ताजा संघर्ष में अब तक 14 लोगों की मौत हो चुकी है और 100,000 से अधिक लोग अपने घरों से पलायन कर चुके हैं। हजारों लोगों को राहत शिविरों में रखा गया है, और तनाव की स्थिति बरकरार है। थाईलैंड के कई सीमावर्ती गांव खाली कराए गए हैं, वहीं कंबोडिया में भी नागरिकों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा जा रहा है।

सीमा विवाद की जड़ें – इतिहास से वर्तमान तक

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद कोई नया मामला नहीं है। यह विवाद 11वीं शताब्दी के मंदिरों के आसपास की भूमि को लेकर है। खासकर ‘प्रेह विहेयर’ और ‘ता मुअन थोम’ जैसे ऐतिहासिक मंदिरों की भूमि पर दोनों देशों ने समय-समय पर दावा जताया है। 1962 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने यह मंदिर कंबोडिया को सौंपा था, लेकिन इसके आसपास की भूमि पर आज भी विवाद बना हुआ है।

2008 से लेकर 2011 तक इन इलाकों में समय-समय पर सैन्य झड़पें होती रही हैं। हालांकि कुछ वर्षों से शांति बनी हुई थी, लेकिन जुलाई 2025 में अचानक शुरू हुई यह हिंसा इस पूरे इलाके को फिर से ज्वलंत मुद्दा बना चुकी है।

कैसे शुरू हुआ यह नया संघर्ष?

22 जुलाई को दोनों देशों के सीमा रक्षकों के बीच गश्त के दौरान कहासुनी हुई। रिपोर्ट्स के अनुसार, कंबोडियाई सैनिकों ने थाई गश्ती दल पर गोलियां चलाईं, जिसके जवाब में थाई सेना ने भी जवाबी कार्रवाई की। अगले 24 घंटों में स्थिति और बिगड़ गई। थाई सेना ने दावा किया कि कंबोडियाई पक्ष ने रॉकेट लॉन्चर, ड्रोन और तोप का इस्तेमाल किया, जबकि कंबोडिया का आरोप है कि थाईलैंड ने हवाई हमले शुरू किए।

24 और 25 जुलाई को हिंसा चरम पर पहुंच गई। थाई सेना ने ऑपरेशन ‘युधा बोदिन’ नाम से सैन्य कार्रवाई शुरू की। इस दौरान सीमा से लगे कम से कम सात गांवों में बमबारी हुई। एक अस्पताल भी हमले की चपेट में आया, जहां से तुरंत मरीजों को हटाया गया।

जान-माल का नुकसान – एक मानवीय त्रासदी

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस संघर्ष में अब तक कम से कम 14 लोग मारे जा चुके हैं। इनमें 9 नागरिक, 4 सैनिक और 1 मेडिकल स्टाफ शामिल हैं। इसके अलावा 46 लोग घायल बताए जा रहे हैं, जिनमें से कुछ की हालत गंभीर है।

सबसे बड़ी चिंता का विषय है पलायन। थाईलैंड की सरकार ने अब तक 100,000 से अधिक नागरिकों को सीमा क्षेत्र से हटाया है। लोगों को स्कूलों, सामुदायिक भवनों और अस्थायी कैंपों में शरण दी जा रही है। दूसरी ओर कंबोडिया ने भी 5,000 से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया है।

गांवों में घर खाली पड़े हैं, खेत-खलिहान उजड़ चुके हैं, और लोगों की आजीविका पर संकट गहरा गया है। बच्चों की पढ़ाई ठप हो गई है, स्कूल बंद हैं, और अधिकांश इलाकों में बिजली तथा इंटरनेट सेवाएं बाधित हैं।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं – बढ़ता कूटनीतिक दबाव

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इस संघर्ष को लेकर आपात बैठक बुलाई है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने दोनों देशों से संयम बरतने और वार्ता के माध्यम से समाधान निकालने की अपील की है। ASEAN देशों ने भी शांति बहाली के लिए पहल शुरू कर दी है।

मलेशिया ने मध्यस्थता की पेशकश की है, जबकि वियतनाम और लाओस जैसे पड़ोसी देश स्थिति पर कड़ी नजर रखे हुए हैं। यूरोपीय संघ और अमेरिका ने भी दोनों देशों से शांति स्थापित करने की अपील की है।

लेकिन थाईलैंड और कंबोडिया दोनों ही अपने रुख पर अड़े हैं। थाई प्रधानमंत्री ने विदेशी हस्तक्षेप को खारिज करते हुए कहा कि यह द्विपक्षीय मामला है और इसे दोनों देशों को ही सुलझाना चाहिए। वहीं कंबोडिया ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में एक बार फिर अपील करने की बात कही है।

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप – आग में घी

थाई रक्षा मंत्री फुमथम वेचयाचई ने कंबोडियाई सेना पर आरोप लगाया कि वह जानबूझकर नागरिक इलाकों को निशाना बना रही है। उन्होंने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय कानूनों का खुला उल्लंघन है और थाईलैंड इस पर चुप नहीं बैठेगा।

कंबोडिया की ओर से भी तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। प्रधानमंत्री हुन सेन ने थाईलैंड पर सीमा के भीतर अतिक्रमण करने का आरोप लगाया और कहा कि कंबोडिया अपने संप्रभु अधिकारों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाएगा।

यह बयानबाजी अब एक खतरनाक मोड़ ले चुकी है, क्योंकि दोनों देशों की सेना हाई अलर्ट पर है और सीमा पर और अधिक सैन्य बलों की तैनाती की जा रही है। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, थाईलैंड ने तीन और एयरबेस को एक्टिव कर दिया है और सीमावर्ती गांवों में सैन्य टैंक तैनात कर दिए गए हैं।

सामाजिक तनाव और राष्ट्रवाद की भूमिका

यह संघर्ष केवल भू-राजनीतिक नहीं है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी इसकी गूंज सुनाई दे रही है। दोनों देशों में राष्ट्रवाद का उभार देखा जा रहा है, जिससे सोशल मीडिया पर भी नफरत भरे संदेशों और अफवाहों की बाढ़ आ गई है।

विशेषज्ञों का कहना है कि सांस्कृतिक विरासत की भावना और ऐतिहासिक मंदिरों को लेकर आम लोगों में गहरी भावनाएं जुड़ी हैं। यह भावना अब राजनीतिक दलों और सोशल मीडिया द्वारा हवा दी जा रही है, जिससे स्थिति और तनावपूर्ण बनती जा रही है।

क्या समाधान है?

सबसे जरूरी है कि दोनों देश तत्काल युद्धविराम घोषित करें और एक निष्पक्ष तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार करें। युद्ध से न तो कोई देश जीतता है और न ही जनता को लाभ होता है। यह संघर्ष किसी भी पक्ष के लिए फायदे का सौदा नहीं है।

साथ ही, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को भी इस क्षेत्र में स्थायी समाधान के लिए गंभीर पहल करनी होगी। सीमा निर्धारण को लेकर वर्षों से लंबित संयुक्त आयोग की बैठकें फिर से शुरू होनी चाहिए। धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत सम्मानजनक तरीके से हल करना अनिवार्य हो गया है।

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच यह नया संघर्ष सिर्फ दो देशों के बीच नहीं है, बल्कि यह एक बड़े क्षेत्रीय असंतुलन का संकेत है। यदि इस पर जल्द नियंत्रण नहीं पाया गया तो यह पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया की स्थिरता को खतरे में डाल सकता है।

इस पूरे परिदृश्य में केवल एक आशा की किरण है – वह है अंतरराष्ट्रीय समुदाय की त्वरित सक्रियता और वार्ता के प्रयास। लेकिन समय निकलने से पहले सभी पक्षों को गंभीरता से शांति का मार्ग अपनाना होगा।

अंत में यही कहना सही होगा कि इस भयावह संकट से निपटने के लिए ताकत नहीं, बल्कि विवेक और संवाद की शक्ति ही काम आएगी।

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Kiran Mankar

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