राजस्थान के झालावाड़ जिले से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जिसने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। जिले के मनोहरथाना ब्लॉक स्थित पिपलोदी गांव में एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय की छत उस वक्त भरभराकर गिर पड़ी जब बच्चे प्रार्थना सभा में शामिल हो रहे थे। इस दर्दनाक हादसे में अब तक 6 मासूम बच्चों की मौत हो चुकी है जबकि 29 बच्चे घायल बताए जा रहे हैं। इनमें से दो की हालत गंभीर है और उन्हें कोटा मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया है।
#WATCH | Seven students have died in a school roof collapse in Rajasthan's Jhalawar
— ANI (@ANI) July 25, 2025
A student's father says, "My child is admitted to the ICU ward in the hospital." pic.twitter.com/Pe4JBVUGSv
यह हादसा शुक्रवार सुबह लगभग 8 बजे के आसपास हुआ, जब स्कूल में रोजाना की तरह बच्चों की प्रार्थना सभा हो रही थी। अचानक जर्जर छत का बड़ा हिस्सा गिर पड़ा और उसके मलबे में दर्जनों बच्चे दब गए। घटनास्थल पर चीख-पुकार मच गई। बच्चों की चीखें सुनकर स्कूल स्टाफ और आसपास के लोग मदद को दौड़े। कुछ ही देर में पुलिस और प्रशासन की टीमें भी मौके पर पहुंचीं और राहत व बचाव कार्य शुरू किया गया।
घटना की जानकारी मिलते ही राज्य आपदा मोचन बल (SDRF), फायर ब्रिगेड और मेडिकल टीमें मौके पर भेजी गईं। जेसीबी और अन्य भारी मशीनों की मदद से मलबा हटाया गया। कड़ी मशक्कत के बाद मलबे में दबे बच्चों को बाहर निकाला गया। घायलों को मनोहरथाना के सरकारी अस्पताल और झालावाड़ जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया है।
इस दर्दनाक हादसे ने एक बार फिर सरकारी स्कूलों की जर्जर हालत और प्रशासनिक लापरवाही को उजागर कर दिया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने कई बार स्कूल की खस्ता हालत के बारे में तहसीलदार और उपखंड अधिकारी को सूचना दी थी। शिकायतों में यह साफ तौर पर कहा गया था कि स्कूल की इमारत काफी पुरानी और कमजोर है, जिसमें बड़ी दरारें हैं और छत कई जगह से झुकी हुई है। परंतु इसके बावजूद किसी ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। न तो भवन की मरम्मत करवाई गई और न ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गई।
अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिर किसकी गलती से मासूमों की जानें गईं? क्या यह सिर्फ एक “दुर्घटना” है या प्रशासनिक लापरवाही की कहानी?
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इस घटना पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने मृत बच्चों के परिजनों के लिए 10 लाख रुपये और घायलों के लिए 2 लाख रुपये की सहायता राशि की घोषणा की है। साथ ही उन्होंने कहा कि दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। मुख्यमंत्री ने यह भी आदेश दिया कि राज्य के सभी सरकारी स्कूलों की इमारतों का अति शीघ्र सर्वेक्षण किया जाए और जिन भवनों की हालत खराब है, उन्हें तत्काल खाली करवा कर छात्रों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जाए।
वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी इस घटना पर गहरी संवेदना व्यक्त की है और पीड़ित परिवारों के प्रति सहानुभूति जताई है।
घटना के तुरंत बाद शिक्षा विभाग और लोक निर्माण विभाग (PWD) के अधिकारियों को मौके पर बुलाया गया। प्रारंभिक जांच में यह सामने आया है कि स्कूल भवन लगभग 40 साल पुराना था और इसकी मरम्मत पिछले 10 वर्षों से नहीं हुई थी। विद्यालय में लगभग 90 विद्यार्थी पढ़ते हैं, जिनमें से अधिकांश प्रार्थना सभा में शामिल थे।
गौरतलब है कि राजस्थान में ऐसे कई सरकारी स्कूल हैं जिनकी इमारतें जर्जर स्थिति में हैं। आए दिन शिकायतें मिलती हैं, लेकिन मरम्मत कार्य कागजों तक ही सीमित रह जाते हैं। पिपलोदी की यह घटना न सिर्फ प्रशासन की विफलता है, बल्कि यह संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है।
कुछ प्रमुख बिंदु जो सामने आए:
- स्कूल भवन में दरारें महीनों से थीं, लेकिन मरम्मत नहीं की गई
- स्थानीय लोगों ने अधिकारियों को कई बार जानकारी दी थी
- विभागीय निरीक्षण नियमित रूप से नहीं हुआ
- स्कूल प्रशासन को वैकल्पिक स्थान नहीं मिला
- मलबा हटाने में देरी के कारण कई घायल और भी गंभीर हो गए
एक पिता का बयान, जिसकी बेटी इस हादसे में घायल हुई है, रुला देने वाला है:
“मैंने कई बार कहा था कि स्कूल की छत बहुत कमजोर है। बेटी रोज उस स्कूल में जाती थी, लेकिन अब डर लगता है। मेरी बच्ची बच गई, लेकिन उसके दोस्त नहीं बचे। क्या यही व्यवस्था है हमारे बच्चों के लिए?”
अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकार सिर्फ मुआवज़ा देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेगी? क्या जो माता-पिता आज अपने मासूम बच्चों को खो चुके हैं, उन्हें सिर्फ सरकारी सांत्वना से संतोष मिलेगा? जवाबदेही किसकी है?
इस प्रकार की घटनाएं हमें बार-बार यह याद दिलाती हैं कि ‘आपदा प्रबंधन’ सिर्फ भूकंप या बाढ़ तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। सार्वजनिक भवनों की स्थिति, विशेष रूप से स्कूलों की सुरक्षा, एक स्थायी प्राथमिकता होनी चाहिए। ऐसी घटनाएं रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय तत्काल आवश्यक हैं:
- राज्यव्यापी भवन निरीक्षण अभियान शुरू किया जाए
- सभी सरकारी स्कूल भवनों की संरचनात्मक जांच हो
- हर जिले में एक सुरक्षा निगरानी समिति गठित की जाए
- स्थानीय लोगों की शिकायतों को प्राथमिकता के आधार पर लिया जाए
- शिक्षा बजट का पुन: मूल्यांकन कर मरम्मत व सुरक्षा उपायों के लिए धन आरक्षित किया जाए
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
भवन निर्माण विशेषज्ञों का कहना है कि जर्जर भवनों को नियमित रूप से जांचा जाना चाहिए। ऐसे भवनों में भले ही कोई मरम्मत कार्य न हो सके, लेकिन कम से कम उनमें कक्षाएं रोक देनी चाहिए। बच्चों को दूसरे सुरक्षित भवनों या मोबाइल क्लासरूम में स्थानांतरित करना ही एकमात्र विकल्प है।
यह घटना न सिर्फ एक भौतिक दुर्घटना है, बल्कि एक नैतिक विफलता भी है — सिस्टम की, प्रशासन की और समाज की, जिसने मासूमों की जान को नजरअंदाज किया।
अब क्या किया जाए?
जनता को भी जागरूक होना होगा। केवल शिकायत करना काफी नहीं, बल्कि उनकी फॉलो‑अप और सोशल मीडिया या प्रेस के ज़रिए दबाव बनाना ज़रूरी है। जब तक सिस्टम को यह महसूस नहीं होगा कि जनता अब जवाब मांग रही है, तब तक लापरवाही जारी रहेगी।
पिपलोदी की यह त्रासदी केवल एक गाँव या एक स्कूल की कहानी नहीं है — यह पूरे भारत के ग्रामीण शिक्षा तंत्र की एक भयावह सच्चाई है। बच्चों के लिए बनाई गईं इमारतें अगर उन्हीं की कब्रगाह बन जाएं, तो इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है? यह समय है आत्मनिरीक्षण का और सख्त कदम उठाने का
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