इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने की संवैधानिक प्रक्रिया की औपचारिक शुरुआत अब संसद से होने जा रही है। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने स्पष्ट किया कि यह प्रक्रिया लोकसभा से प्रारंभ की जाएगी।
जस्टिस वर्मा पर उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास में बड़ी मात्रा में नकदी मिलने के आरोप हैं। यह घटना तब उजागर हुई जब वह अपने परिवार के साथ छुट्टियों पर थे। इसी दौरान उनके सरकारी आवास के स्टोररूम में आग लगने की सूचना अग्निशमन विभाग को मिली। आग बुझाते समय दमकलकर्मियों को वहां हज़ारों की संख्या में नोटों की गड्डियां मिलीं। यह दृश्य कैमरे में कैद हुआ और पूरे देश में सनसनी फैल गई।
#MonsoonSession | संसद में आज ||
— आकाशवाणी समाचार (@AIRNewsHindi) July 21, 2025
सांसदों ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को एक ज्ञापन सौंपा।
संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर कुल 145 लोकसभा सदस्यों ने हस्ताक्षर किए हैं। pic.twitter.com/0XcJbvDvhk
महाभियोग प्रक्रिया की शुरुआत
इस मामले में 21 जुलाई 2025 को 145 लोकसभा सांसदों और 63 राज्यसभा सांसदों ने संविधान के अनुच्छेद 124(4), 217 और 218 के तहत न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। यह संख्या महाभियोग शुरू करने के लिए आवश्यक न्यूनतम संख्या—100 लोकसभा और 50 राज्यसभा सांसदों—से अधिक है।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिर्ला अब एक तीन सदस्यीय जाँच समिति के गठन की घोषणा कर सकते हैं। यह समिति निम्न सदस्यों से मिलकर बनेगी:
- एक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश (या मुख्य न्यायाधीश)
- एक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश
- एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता
इस समिति का गठन संसद के दोनों सदनों के अध्यक्षों द्वारा मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से किया जाएगा। समिति को तीन महीनों के भीतर जांच पूरी करनी होगी, जिसमें जस्टिस वर्मा को अपने बचाव में पक्ष रखने और गवाहों से जिरह करने का पूरा अवसर मिलेगा।
यदि दोषी पाए जाते हैं…
यदि जांच में उन्हें दोषी ठहराया जाता है, तो प्रस्ताव पर दोनों सदनों में बहस होगी। इसके पश्चात दोनों सदनों को इस प्रस्ताव को विशेष बहुमत से पारित करना होगा। यानी:
- सदन के कुल सदस्यों का बहुमत
- उपस्थित व मतदान कर रहे सदस्यों का दो‑तिहाई बहुमत
यदि दोनों सदनों से प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो यह राष्ट्रपति के समक्ष भेजा जाएगा। राष्ट्रपति अंतिम आदेश जारी करते हुए न्यायाधीश को पद से हटाते हैं।
भारत में पहले ऐसे महाभियोग प्रयास
भारत के इतिहास में उच्च न्यायपालिका के विरुद्ध महाभियोग अत्यंत दुर्लभ रहा है:
- जस्टिस वी. रमास्वामी (1993): सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रमास्वामी पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे थे। लोकसभा में प्रस्ताव लाया गया, परंतु कांग्रेस के तटस्थ रहने के कारण यह विफल हो गया।
- जस्टिस सौमित्र सेन (2011): कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायाधीश पर कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट के फंड का दुरुपयोग करने का आरोप लगा था। राज्यसभा में प्रस्ताव पारित हुआ, लेकिन लोकसभा में मतदान से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
- जस्टिस पी.डी. दिनाकरन: भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उनके खिलाफ प्रस्ताव तैयार हुआ, लेकिन उन्होंने न्यायिक पद से त्यागपत्र देकर प्रक्रिया को रोक दिया।
इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि भारत में न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया बहुत कठिन और संवेदनशील होती है, और अक्सर या तो सदनों में असफल रहती है या बीच में ही समाप्त हो जाती है।
जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला इस दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर हो सकता है। यदि यह प्रक्रिया पूर्ण होती है, तो यह भारत के न्यायिक इतिहास में पहला ऐसा मामला हो सकता है जहां एक उच्च न्यायाधीश को महाभियोग द्वारा हटाया गया हो।
यह मामला न केवल न्यायपालिका की जवाबदेही पर प्रकाश डालता है, बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की पारदर्शिता के लिए भी एक अहम उदाहरण बन सकता है।
इस ऐतिहासिक प्रक्रिया पर हमारी रिपोर्टिंग के लिए पढ़ते रहें — जनविचार।