PM Modi, Amit Shah & Rahul Gandhi meet

PM Modi, Amit Shah & Rahul Gandhi meet: नए मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया कैसे काम करती है, और इसमें क्या बदलाव आया?

PM Modi, Amit Shah & Rahul Gandhi meet: 17 फरवरी की शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने पूर्व आईएएस अधिकारी ग्यानेश कुमार को भारत का नया मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner) नियुक्त करने के लिए एक बैठक की। यह नियुक्ति राजीव कुमार के सेवानिवृत्त होने के बाद हुई, जिन्होंने 18 फरवरी को अपना कार्यकाल पूरा किया।

यह बैठक ऐतिहासिक थी क्योंकि यह पहली बार था जब संसद के एक अधिनियम के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की गई। हालांकि, इस प्रक्रिया में बदलाव को लेकर विवाद भी उठा, और राहुल गांधी ने इस नियुक्ति पर आपत्ति जताते हुए एक असहमति नोट दिया। उन्होंने सरकार से अनुरोध किया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस नई नियुक्ति प्रक्रिया पर चल रहे मामले का फैसला आने तक इस प्रक्रिया को स्थगित किया जाए।

नियुक्ति प्रक्रिया में क्या बदलाव आया?

पहले, मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और अन्य चुनाव आयुक्तों (Election Commissioners) की नियुक्ति सीधे राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी। हालांकि, यह नियुक्ति वास्तव में केंद्र सरकार की सिफारिश पर होती थी। इस प्रक्रिया को लेकर लंबे समय से यह आरोप लगते रहे हैं कि इसमें सरकार का प्रभाव अधिक होता है, जो चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है।

इसी चिंता को ध्यान में रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2023 में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक समिति द्वारा की जानी चाहिए, जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शामिल हों। कोर्ट ने कहा कि यह कदम चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है।

इस फैसले के बाद, संसद ने दिसंबर 2023 में चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यकाल) विधेयक, 2023 पारित किया। इस विधेयक के तहत, नियुक्ति समिति में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा नामित एक मंत्री शामिल होंगे। यहां, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को हटा दिया गया और उनकी जगह एक कैबिनेट मंत्री को शामिल किया गया। इस बदलाव को लेकर विपक्ष और कई विशेषज्ञों ने आलोचना की, जिनका मानना है कि यह कदम चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को कमजोर कर सकता है।

राहुल गांधी ने क्यों दी आपत्ति?

17 फरवरी की बैठक में राहुल गांधी ने इस नियुक्ति प्रक्रिया पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में इस नई प्रक्रिया को चुनौती दी गई है, और कोर्ट का फैसला आने तक इस नियुक्ति को स्थगित किया जाना चाहिए। गांधी का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को समिति से हटाने से चुनाव आयोग की स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है।

हालांकि, सरकार का तर्क है कि नई प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत दी गई शक्तियों के अनुरूप है, और इसमें विपक्ष के नेता को शामिल करके पारदर्शिता सुनिश्चित की गई है।

नई नियुक्ति प्रक्रिया कैसे काम करती है?

नई प्रक्रिया के तहत, मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक तीन सदस्यीय समिति बनाई गई है। इस समिति में शामिल हैं:

  1. प्रधानमंत्री (अध्यक्ष)
  2. विपक्ष के नेता (सदस्य)
  3. केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा नामित एक मंत्री (सदस्य)

इस समिति का गठन संसद द्वारा पारित कानून के तहत किया गया है। समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति की जाती है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य चुनाव आयोग की निष्पक्षता और स्वतंत्रता को बनाए रखना है।

क्यों उठे सवाल?

नई नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर सवाल इसलिए उठे क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को समिति से हटा दिया गया। विपक्ष और कई विशेषज्ञों का मानना है कि इससे सरकार का प्रभाव बढ़ सकता है और चुनाव आयोग की स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है। दूसरी ओर, सरकार का कहना है कि यह कदम संविधान के अनुरूप है और इसमें विपक्ष के नेता को शामिल करके पारदर्शिता सुनिश्चित की गई है।

आगे क्या होगा?

अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, और कोर्ट का फैसला इस प्रक्रिया के भविष्य को तय करेगा। अगर कोर्ट इस प्रक्रिया को चुनौतीपूर्ण पाता है, तो यह संभव है कि नियुक्ति प्रक्रिया में फिर से बदलाव किया जाए।

इस बीच, ग्यानेश कुमार ने मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभाल लिया है, और उनके सामने आगामी लोकसभा चुनावों की तैयारी जैसे महत्वपूर्ण कार्य होंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह नई नियुक्ति प्रक्रिया भविष्य में चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को कैसे प्रभावित करती है।

मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया में हुए बदलाव ने एक नई बहस छेड़ दी है। जहां सरकार इसे पारदर्शिता का कदम बता रही है, वहीं विपक्ष और कई विशेषज्ञ इसे चुनाव आयोग की स्वतंत्रता के लिए खतरा मान रहे हैं। अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही इस मामले में अंतिम मुहर लगाएगा।

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