Ahmedabad air crash

Ahmedabad air crash: एक महीने बाद भी ज़ख्म ताज़ा, टूटे परिवारों की आंखों में दर्द और उम्मीद दोनों बाकी

Ahmedabad air crash: 12 जून 2025 को भारत ने एक ऐसी त्रासदी का सामना किया जिसने केवल अहमदाबाद को नहीं, बल्कि पूरे देश और कई विदेशी परिवारों को गहरे शोक में डुबो दिया। एयर इंडिया की फ्लाइट AI 171 अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भरने के कुछ ही सेकंड बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इस हादसे में कुल 260 लोगों की मौत हुई, जिनमें 169 भारतीय नागरिक, 53 ब्रिटिश नागरिक, 7 पुर्तगाली नागरिक और 1 कनाडाई नागरिक शामिल थे। यह घटना भारत के विमानन इतिहास की सबसे भयावह घटनाओं में से एक बन गई।

अंतिम संस्कार और भावनाओं का सैलाब

एक महीने के भीतर ही घटनास्थल से प्राप्त मानव अवशेषों की डीएनए जांच पूरी होने के बाद 8 जुलाई को अहमदाबाद के सिविल अस्पताल परिसर में 19 और पीड़ितों के शवों का अंतिम संस्कार किया गया। इनमें से 18 पीड़ित हिंदू थे, जिनका विधिपूर्वक अंतिम संस्कार वडज श्मशान गृह में किया गया और राख को नर्मदा नदी में विसर्जित किया गया। एक मुस्लिम पीड़ित का दफन स्थानीय कब्रिस्तान में धार्मिक रीति-रिवाज़ों के अनुसार किया गया।

परिवारों के लिए यह समय दुगुनी पीड़ा लेकर आया। जिन परिजनों ने पहले ही अपने प्रियजनों को खो दिया था, अब उन्हें दोबारा उनके अवशेषों के साथ अंतिम संस्कार करने की पीड़ा सहनी पड़ी। कई परिवारों ने कहा कि यह मानसिक रूप से बहुत कठिन अनुभव था — भावनात्मक रूप से बिखर जाना स्वाभाविक था।

छात्रावास में तबाही और जीवन का ठहराव

इस हादसे ने केवल विमान में बैठे लोगों की जान नहीं ली, बल्कि ज़मीन पर मौजूद मासूम ज़िंदगियाँ भी उसकी चपेट में आ गईं। बीजे मेडिकल कॉलेज का छात्रावास उस दुर्घटनाग्रस्त विमान के मलबे की चपेट में आया, जिसमें 19 मेडिकल छात्रों और कर्मचारियों की जान चली गई। लगभग 150 छात्रों और डॉक्टरों को छात्रावास के अन्य सुरक्षित हिस्सों में स्थानांतरित किया गया। छात्रावास का मेस पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया, जिससे भोजन व्यवस्था प्रभावित हुई, लेकिन तत्काल राहत कार्यों ने अस्थायी समाधान उपलब्ध कराया।

विमान हादसे की जांच और शुरुआती निष्कर्ष

हादसे के एक महीने के भीतर ही भारतीय विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (AAIB) ने अपनी प्रारंभिक जांच रिपोर्ट नागरिक उड्डयन मंत्रालय को सौंप दी। रिपोर्ट के अनुसार, टेकऑफ़ के महज 30 सेकंड बाद विमान के दोनों इंजनों में शक्ति का अचानक ह्रास हुआ और विमान का लैंडिंग गियर भी नहीं खुल पाया। फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर के विश्लेषण से यह पता चला कि पायलटों ने अंतिम क्षणों तक विमान को बचाने की भरपूर कोशिश की। लेकिन तकनीकी खामियों और समय की कमी ने उन्हें कोई अवसर नहीं दिया।

AAIB की यह प्रारंभिक रिपोर्ट केवल तथ्यों को सामने लाने तक सीमित है और इसमें किसी पर सीधे दोषारोपण नहीं किया गया है। पूरी और अंतिम रिपोर्ट आने में अभी कुछ महीने लग सकते हैं, लेकिन प्रारंभिक निष्कर्षों ने यह तो स्पष्ट कर दिया है कि तकनीकी विफलता ही मुख्य कारण थी।

पीड़ित परिवारों को क्षतिपूर्ति और कानूनी विवाद

हादसे के बाद, विशेष रूप से ब्रिटेन और पुर्तगाल में रहने वाले पीड़ित परिवारों ने एयर इंडिया और भारतीय विमानन मंत्रालय पर सवाल उठाए। उनका आरोप था कि उन्हें आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए अत्यंत जटिल और अपारदर्शी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ रहा है, जो अंतरराष्ट्रीय नियमों के खिलाफ है। कुछ ने तो यह भी आरोप लगाया कि एयर इंडिया जानबूझकर देरी कर रही है और पारदर्शिता नहीं बरत रही।

इन आरोपों पर एयर इंडिया ने बयान जारी करते हुए कहा कि ये सभी आरोप निराधार हैं और कंपनी पीड़ितों के साथ खड़ी है। एयर इंडिया के अनुसार, वे प्रत्येक मृतक के परिवार को उचित मुआवज़ा दे रहे हैं और प्रक्रियाओं को सरल बनाने का प्रयास भी कर रहे हैं।

टाटा समूह का मानवीय प्रयास

हादसे के बाद टाटा संस, जो एयर इंडिया की मूल कंपनी है, ने मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए एक बड़ा राहत पैकेज घोषित किया। कंपनी ने ₹500 करोड़ की लागत से ‘AI 171 ट्रस्ट’ की स्थापना की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य पीड़ितों के परिवारों को सहायता देना और बीजे मेडिकल कॉलेज के प्रभावित हिस्सों का पुनर्निर्माण करना है। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक मृतक यात्री के परिवार को ₹1.25 करोड़ तक की सहायता राशि प्रदान की जा रही है।

टाटा ग्रुप ने यह भी आश्वासन दिया कि भविष्य में एयर इंडिया की तकनीकी गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों में बड़ा सुधार किया जाएगा ताकि ऐसी घटनाएँ दोहराई न जा सकें। यह कदम उन परिवारों के लिए थोड़ी राहत जरूर है, जिनका जीवन इस हादसे ने बदल कर रख दिया।

भविष्य की दिशा और शोक की परछाई

इस हादसे ने विमानन उद्योग और प्रशासनिक ढांचे दोनों पर गहन प्रश्न खड़े किए हैं। क्या नियमित निरीक्षण और तकनीकी जांच पर्याप्त थी? क्या आपातकालीन प्रशिक्षण में कोई कमी रह गई? क्या एयरलाइनों की जवाबदेही सुनिश्चित हो पाई?

इन सवालों के जवाब अभी अधूरे हैं। लेकिन एक बात तय है — पीड़ित परिवारों के लिए यह हादसा जीवनभर की पीड़ा बन गया है। किसी ने अपने माता-पिता खोए, किसी ने बच्चों को और किसी ने अपने जीवनसाथी को। उनकी रोज़मर्रा की जिंदगी अब पहले जैसी नहीं रही।

आशा की एक उजली किरण

ऐसे कठिन समय में भी कुछ बातें आशा जगाती हैं। जांच की पारदर्शिता, राहत कार्यों की तत्परता और नागरिकों का भावनात्मक समर्थन — यह सब इस बात का संकेत है कि भारत ने न केवल पीड़ा सही है, बल्कि उसमें भी एकता और मानवता की मिसाल पेश की है। अहमदाबाद की इस त्रासदी में कई चेहरों पर आंसू हैं, लेकिन उनमें साहस की चमक भी दिखाई देती है।

अहमदाबाद विमान हादसे के एक महीने बाद शहर ने पीड़ा, टूटन और एक नई शुरुआत का अनुभव किया है। यह त्रासदी केवल एक दुर्घटना नहीं थी, यह सैकड़ों परिवारों की जिंदगी में एक स्थायी परिवर्तन था। लेकिन इस अंधकार में भी आशा की लौ जल रही है। प्रशासन, सरकार, कंपनियाँ और आम नागरिक — सभी इस ज़ख्म को भरने की कोशिश कर रहे हैं।

यह दुर्घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हमारी व्यवस्था कितनी मजबूत है, और कहाँ सुधार की आवश्यकता है। जांच रिपोर्ट आने के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा कि क्या इस हादसे से हम कोई सबक ले पाएंगे या नहीं।

अंत में यही कहा जा सकता है कि ये घटना केवल एक विमान हादसा नहीं, बल्कि मानव संवेदनाओं, सिस्टम की जवाबदेही और सामूहिक पीड़ा का प्रतीक बन गई है।

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