Army clarifies no AD guns deployed in golden temple: भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर में वायु रक्षा बंदूकें तैनात करने के दावे को किया खारिज, भ्रम और वास्तविकता के बीच सच्चाई

Army clarifies no AD guns deployed in golden temple: हाल ही में एक सैन्य अधिकारी द्वारा दिए गए बयान ने देशभर में नई बहस को जन्म दिया है। यह मामला है भारतीय सेना और देश के सबसे पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक — श्री दरबार साहिब, जिसे आमतौर पर स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है — के बीच वायु रक्षा बंदूकों की कथित तैनाती को लेकर फैली अफवाहों और भ्रम का।

सेना अधिकारी का दावा जिसने विवाद खड़ा किया

भारतीय वायु रक्षा कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल सुमेर इवान डी’कुन्हा ने एक मीडिया साक्षात्कार के दौरान दावा किया कि ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के समय स्वर्ण मंदिर के प्रमुख ग्रंथी ने भारतीय सेना को मंदिर परिसर में वायु रक्षा बंदूकें तैनात करने की अनुमति दी थी। उन्होंने यह भी कहा कि, “स्वर्ण मंदिर में पहली बार ऐसा हुआ कि उन्होंने रात में लाइटें बंद कीं ताकि हमारी यूनिट्स ड्रोन हमलों का पता लगा सकें। यह पूरे देश के लिए गर्व का विषय था।”

डी’कुन्हा के इस बयान ने मीडिया और सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी। कई लोगों ने सवाल उठाए कि क्या वाकई में भारत की सेना ने धार्मिक स्थल की पवित्रता का उल्लंघन किया, या फिर यह किसी सैन्य ऑपरेशन का हिस्सा था जो पूरी पारदर्शिता से किया गया?

स्वर्ण मंदिर प्रबंधन और SGPC का सख्त खंडन

लेफ्टिनेंट जनरल डी’कुन्हा के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए, स्वर्ण मंदिर के प्रमुख ग्रंथी ज्ञानी रघबीर सिंह ने इसे “झूठा और भ्रामक” करार दिया। उन्होंने साफ कहा कि “भारतीय सेना को स्वर्ण मंदिर परिसर में किसी भी प्रकार की सैन्य तैनाती की अनुमति नहीं दी गई थी, और ना ही हमने ऐसा कोई अनुरोध स्वीकार किया।”

इस बयान को और स्पष्ट करते हुए, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने भी कहा कि “सेना ने हमसे कोई पूर्व अनुमति नहीं ली थी, और इस प्रकार के बयान से धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं।”

SGPC ने यहां तक कहा कि वे इस बयान को लेकर कानूनी विकल्पों पर भी विचार कर रहे हैं, क्योंकि इससे धर्मस्थल की गरिमा पर आंच आई है।

सेना का आधिकारिक बयान: स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश

बढ़ते विवाद को देखते हुए भारतीय सेना ने एक औपचारिक बयान जारी कर साफ किया कि, “श्री दरबार साहिब (स्वर्ण मंदिर) परिसर में वायु रक्षा बंदूकें या उनसे संबंधित कोई भी संसाधन तैनात नहीं किए गए थे। जो भी मीडिया रिपोर्ट्स या बयान आए हैं, वे भ्रामक हैं और सच्चाई से दूर हैं।”

सेना ने यह भी जोड़ा कि वह धार्मिक स्थलों की गरिमा का पूरा सम्मान करती है और देश की सुरक्षा के साथ-साथ धार्मिक भावनाओं की भी पूरी तरह से कद्र करती है।

ऑपरेशन सिंदूर क्या था? और क्यों बना यह केंद्रबिंदु?

इस पूरे विवाद की जड़ ऑपरेशन ‘सिंदूर’ है। यह सैन्य अभ्यास भारत की वायु रक्षा क्षमता का एक प्रमुख हिस्सा था, जिसमें देश के कई संवेदनशील क्षेत्रों — खासकर भारत-पाकिस्तान सीमा के पास स्थित इलाकों — में ड्रोन और मिसाइल हमलों से निपटने की रणनीति पर काम किया गया।

अमृतसर, जो कि सीमा के काफी पास है, विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है। हाल के वर्षों में पाकिस्तान की ओर से ड्रोन गतिविधियों में वृद्धि देखी गई है, जिनका मकसद हथियार, ड्रग्स या खुफिया जानकारी भेजना हो सकता है। ऐसे में भारतीय सेना और वायु रक्षा प्रणाली की तैयारियों की समीक्षा इस ऑपरेशन के तहत की गई।

हालांकि, सेना ने इस बात को स्पष्ट किया कि ये सभी गतिविधियां मंदिर परिसर के बाहर और नागरिक क्षेत्रों से दूर हुईं, और धार्मिक स्थलों को इसमें शामिल नहीं किया गया।

सैन्य तैयारियां बनाम धार्मिक भावनाएं

भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, जहां हजारों धार्मिक स्थल हैं और जहां देश की सीमाएं कई बार संवेदनशील क्षेत्रों से होकर गुजरती हैं, वहां सुरक्षा और धार्मिक भावनाओं के बीच संतुलन बनाए रखना हमेशा से चुनौती रहा है।

सेना की जिम्मेदारी है देश को हर खतरे से बचाना, वहीं धार्मिक संस्थानों की जिम्मेदारी है अपने स्थलों की गरिमा बनाए रखना। जब इन दोनों के रास्ते टकराते हैं, तो संवाद और पारदर्शिता ही एकमात्र समाधान बन जाते हैं।

मीडिया की भूमिका और जिम्मेदारी

यह विवाद एक बार फिर मीडिया की भूमिका पर सवाल खड़े करता है। क्या मीडिया ने इस बयान को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया? क्या तथ्यों की जांच किए बिना सनसनीखेज खबर बना दी गई?

यह जरूरी है कि मीडिया खबरों को प्रस्तुत करते समय संयम बरते, खासकर जब मामला धर्म और सेना जैसे संवेदनशील विषयों से जुड़ा हो। एक गैर-जिम्मेदार रिपोर्ट न केवल भ्रम फैलाती है, बल्कि देश की एकता और सामाजिक सौहार्द पर भी खतरा पैदा कर सकती है।

संवाद से सुलझेगा हर विवाद

भारतीय सेना और स्वर्ण मंदिर प्रबंधन के बीच उत्पन्न इस हालिया विवाद से एक बात तो साफ है — पारदर्शिता और संवाद की कमी से गलतफहमियां पैदा होती हैं। सेना और धार्मिक संस्थानों को चाहिए कि वे भविष्य में ऐसी किसी भी स्थिति में आपसी विश्वास और सम्मान के साथ बातचीत करें, ताकि कोई भी पक्ष आहत न हो और देश की अखंडता बनी रहे।

साथ ही, जनता और मीडिया को भी चाहिए कि वे किसी भी दावे को आँख मूँदकर स्वीकार न करें, बल्कि तथ्यों की जांच कर ही राय बनाएं।

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