Axiom‑4 mission

Axiom‑4 mission: इतिहास रच दिया! शुभांशु शुक्ला पहले भारतीय बनकर पहुंचे ISS – Axiom‑4 के “Grace” ड्रैगन कैप्सूल ने की सफल डॉकिंग

Axiom‑4 mission: भारतीय अंतरिक्ष इतिहास में एक और स्वर्णिम अध्याय जुड़ गया है। भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर पहुंचकर एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया, जिसका सपना भारत दशकों से देख रहा था। Axiom-4 मिशन के तहत शुभांशु शुक्ला अमेरिकी कंपनी Axiom Space द्वारा भेजे गए चार अंतरिक्ष यात्रियों के दल का हिस्सा हैं, जिन्होंने SpaceX के Crew Dragon “Grace” कैप्सूल के ज़रिए सफलतापूर्वक ISS से डॉकिंग की। यह उपलब्धि न केवल भारत के लिए, बल्कि वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

शुभांशु शुक्ला की ऐतिहासिक उड़ान

यह मिशन 25 जून को अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित Kennedy Space Center से शुरू हुआ, जब SpaceX का Falcon 9 रॉकेट रात 12:01 बजे IST पर लॉन्च हुआ। इस उड़ान ने लगभग 28 घंटे का अंतरिक्ष सफर तय कर 26 जून को ISS से सफलतापूर्वक डॉकिंग की। भारतीय समयानुसार शाम 4:03 बजे ‘सॉफ्ट कैप्चर’ की पुष्टि हुई और कुछ मिनट बाद ‘हार्ड कैप्चर’ के जरिए कैप्सूल पूरी तरह से स्टेशन से जुड़ गया।

डॉकिंग के बाद जब Dragon कैप्सूल का दरवाज़ा खुला और शुभांशु शुक्ला ने पहली बार अंतरिक्ष स्टेशन में कदम रखा, तो वह पल करोड़ों भारतीयों के लिए गर्व और भावुकता से भरा हुआ था। यह भारत के अंतरिक्ष मिशन की दिशा में एक बड़ा और साहसी कदम था।

कौन हैं शुभांशु शुक्ला?

ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से हैं। उन्होंने NDA (National Defence Academy) और बाद में वायुसेना अकादमी से अपनी सैन्य शिक्षा प्राप्त की। वे भारतीय वायुसेना के एक अनुभवी पायलट हैं, जिन्हें 2,000 घंटे से अधिक की उड़ान का अनुभव है। उन्होंने मिग-21, सुखोई-30MKI और तेजस जैसे फाइटर जेट्स उड़ाए हैं। 2019 में ISRO और रक्षा अनुसंधान एजेंसियों द्वारा अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण के लिए चयनित चार पायलटों में उनका नाम शामिल था।

इसके बाद उन्होंने रूस के यूरी गागरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया और फिर Axiom Space के सहयोग से उन्हें इस अंतरराष्ट्रीय मिशन के लिए नामित किया गया।

Axiom-4 मिशन: उद्देश्य और महत्त्व

Axiom-4 मिशन केवल अंतरिक्ष यात्रा नहीं, बल्कि विज्ञान, चिकित्सा और मानव अंतरिक्ष अन्वेषण की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। इस मिशन में 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोग किए जाएंगे, जिनमें माइक्रोग्रैविटी में इंसुलिन प्रतिक्रिया, मानव कोशिकाओं पर प्रभाव, और अंतरिक्ष में बायोलॉजिकल प्रोटीन संरचनाओं पर अध्ययन शामिल है। ये सभी प्रयोग आने वाले समय में दीर्घकालिक अंतरिक्ष अभियानों, जैसे मंगल यात्रा, के लिए आधार बन सकते हैं।

इस मिशन में भारत के अलावा पोलैंड और हंगरी के अंतरिक्ष यात्री भी शामिल हैं, जो पहली बार अपने-अपने देशों की तरफ से ISS पहुंचे हैं। यह एक सकारात्मक संकेत है कि अंतरिक्ष विज्ञान अब केवल महाशक्तियों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि विकासशील देश भी अपनी भागीदारी निभा रहे हैं।

भारत का अंतरिक्ष भविष्य

शुभांशु शुक्ला का यह मिशन आने वाले समय में भारत के स्वदेशी मानव मिशन ‘गगनयान’ के लिए एक बुनियादी नींव साबित होगा। ISRO वर्ष 2026-27 तक गगनयान-4 मिशन की योजना बना रहा है, जिसमें भारतीय अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी की कक्षा में भेजे जाएंगे। शुभांशु शुक्ला का अंतरिक्ष अनुभव, उनके द्वारा ISS पर किया गया शोध और व्यवहारिक ज्ञान भविष्य की उस ऐतिहासिक उड़ान को और अधिक सुरक्षित और सफल बना सकता है।

पूरे देश में गर्व की लहर

जैसे ही शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष स्टेशन में सफल एंट्री की खबर आई, पूरे देश में उत्साह की लहर दौड़ गई। प्रधानमंत्री कार्यालय, रक्षामंत्री, ISRO प्रमुख, वायुसेना प्रमुख और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस ऐतिहासिक सफलता पर शुभकामनाएं दीं। लोगों ने सोशल मीडिया पर उन्हें “भारत के रियल हीरो”, “देश की शान” और “आकाश का राजा” जैसे भावुक संबोधन दिए।

वहीं, भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा ने भी इस उपलब्धि पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि “यह एक ऐतिहासिक क्षण है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देगा”।

अंतरिक्ष में मानवीय संवेदना

इस मिशन के दौरान एक खास पल तब देखने को मिला जब शुभांशु शुक्ला ने अपने साथी अंतरिक्ष यात्री तिबोर कापू को गले लगाया। यह भावुक पल दर्शाता है कि अंतरिक्ष केवल तकनीकी उपलब्धियों का माध्यम नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, मानवीय एकता और भावनाओं की अभिव्यक्ति का भी मंच है।

एक गौरवशाली उपलब्धि

शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष में भारत की मौजूदगी दर्ज करवा कर सिर्फ तकनीकी सफलता हासिल नहीं की, बल्कि करोड़ों भारतीयों को यह विश्वास भी दिलाया कि “हम कर सकते हैं”। यह सकारात्मक ऊर्जा, यह आत्मविश्वास और यह प्रेरणा आने वाले वर्षों में भारत को विज्ञान, प्रौद्योगिकी और वैश्विक नेतृत्व के नए आयामों तक पहुंचाएगी।

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