Budget 2025-26: बजट की पृष्ठभूमि
1 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत केंद्रीय बजट 2025-26 ने भारत की आर्थिक दिशा में महत्वपूर्ण संकेत दिए हैं। यह नरेंद्र मोदी सरकार का बारहवां बजट है, जो ऐसे समय में पेश किया गया जब देश की आर्थिक स्थिति चिंताजनक रूप से कमजोर हो चुकी थी।

हालांकि, पिछले वर्षों में जीएसटी लागू करने, दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC) जैसे सुधारों और 2019 के ऐतिहासिक कॉर्पोरेट टैक्स कट जैसे कदम उठाए गए, फिर भी भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती बनी रही।

आर्थिक गिरावट के संकेत
इस आर्थिक मंदी का सबसे बड़ा संकेत था आम भारतीय के व्यक्तिगत खर्च में गिरावट। यह गिरावट कमजोर रोजगार सृजन का प्रतिबिंब थी। नए रोजगार मुख्य रूप से महिलाओं के स्वरोजगार के रूप में उत्पन्न हुए, जो अक्सर गुजारे लायक आय ही प्रदान कर सके। आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी सामने आया कि स्वरोजगार करने वालों की वास्तविक आय अभी भी 2017-18 के स्तर से नीचे है।

रोजगार सृजन में कमी का मुख्य कारण पूंजी-गहन उत्पादन पर अधिक ध्यान देना और श्रम-प्रधान क्षेत्रों जैसे वस्त्र, चमड़ा उद्योग और एमएसएमई को नजरअंदाज करना था। सरकार ने उत्पादन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजनाओं के जरिए बड़े कॉर्पोरेट्स को सब्सिडी दी, लेकिन इसका रोजगार सृजन पर सीमित प्रभाव पड़ा।

सरकारी नीतियों के सीमित परिणाम
हालांकि सरकार ने सड़क, बंदरगाह जैसे बुनियादी ढांचे के विकास और कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती के जरिए निवेश को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया, लेकिन अर्थव्यवस्था स्थिरता हासिल नहीं कर पाई। 2019 से भारत की जीडीपी औसतन 5% से कम की दर से बढ़ी है, और 2014 से यह आंकड़ा 6% से भी कम है।

वित्त मंत्री और सरकार इस बात से परेशान रहे कि निजी क्षेत्र सरकार की विकास रणनीति के साथ आगे क्यों नहीं बढ़ रहा है। एक बार तो वित्त मंत्री ने यह सवाल भी उठाया था कि “क्या भारत का निजी क्षेत्र हनुमान की तरह है, जिसे अपनी शक्ति का एहसास नहीं है?”

बदलाव की ओर पहला बड़ा कदम
इस बार के बजट में बड़े पैमाने पर आयकर में कटौती की घोषणा यह स्वीकारोक्ति है कि आर्थिक विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण है मजबूत उपभोक्ता मांग। सरकार ने आखिरकार यह स्वीकार किया कि 2019 का कॉर्पोरेट टैक्स कट अपेक्षित परिणाम नहीं दे सका। अगर पहले आयकर में कटौती और बाद में कॉर्पोरेट टैक्स कट किया गया होता, तो नतीजे शायद बेहतर होते।

अब सरकार को उम्मीद है कि अतिरिक्त आय के चलते उपभोक्ता अधिक खर्च करेंगे, जिससे कंपनियों को नए निवेश और रोजगार सृजन के लिए प्रोत्साहन मिलेगा, और अंततः आर्थिक विकास को नई गति मिलेगी।

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