Chamoli Avalanche: उत्तराखंड के चमोली जिले में शुक्रवार को हुए हिमस्खलन ने एक बार फिर हिमालयी क्षेत्रों की संवेदनशीलता और वहां कार्यरत श्रमिकों की सुरक्षा पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के 55 कर्मियों में से 33 को बचा लिया गया है, जबकि 22 अभी भी लापता हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लगातार बचाव कार्यों की समीक्षा कर रहे हैं और अधिकारियों के संपर्क में हैं।
VIDEO | Chamoli Avalanche: Rescue operation underway at Jyotirmath, Uttarakhand.
A labourer died and 49 were pulled out alive from the snow that engulfed a BRO camp in the high-altitude Mana village in Chamoli district as rescuers raced against time to find survivors on… pic.twitter.com/YNzydA55Gy
— Press Trust of India (@PTI_News) March 1, 2025
राज्य आपदा प्रबंधन सचिव, विनोद कुमार सुमन के अनुसार, “33 श्रमिकों को बचा लिया गया है। 55 में से 2 श्रमिक छुट्टी पर थे, इसलिए वहां केवल 55 श्रमिक मौजूद थे।” बचाव दल शेष 22 श्रमिकों की खोज में जुटे हैं। मुख्यमंत्री धामी अपने आवास से बचाव कार्यों की निगरानी कर रहे हैं और मौके पर मौजूद अधिकारियों के साथ निरंतर संपर्क में हैं।
उत्तराखंड सरकार ने हिमस्खलन से संबंधित जानकारी या सहायता के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं: मोबाइल नंबर: 8218867005, 9058441404; टेलीफोन नंबर: 0135 2664315; टोल फ्री नंबर: 1070। लोगों से आग्रह है कि वे इन नंबरों पर संपर्क करें।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मुख्यमंत्री धामी से बात की और सरकार की प्राथमिकता फंसे हुए लोगों को सुरक्षित निकालना बताया। उन्होंने कहा, “चमोली, उत्तराखंड में ग्लेशियर टूटने के संबंध में मुख्यमंत्री श्री पुष्कर धामी जी, डीजी आईटीबीपी, और डीजी एनडीआरएफ से बात की। हमारी प्राथमिकता दुर्घटना में फंसे लोगों को सुरक्षित निकालना है।”
यह घटना उत्तराखंड के चमोली जिले में भारत-चीन सीमा के पास माणा गांव के निकट हुई, जहां बीआरओ के श्रमिक एक राजमार्ग परियोजना पर काम कर रहे थे। हिमस्खलन के समय, श्रमिक सड़क चौड़ीकरण और ब्लैकटॉपिंग परियोजना में लगे थे, जो माणा, भारत के अंतिम गांव, से माणा पास तक 50 किलोमीटर की दूरी पर है। यह क्षेत्र पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील और हिमस्खलन-प्रवण है। पिछले वर्षों में भी इस क्षेत्र में आपदाएं हुई हैं, जिनमें 2022 में 27 प्रशिक्षु पर्वतारोहियों की हिमस्खलन में मृत्यु और 2021 में ग्लेशियर फटने से आई बाढ़ में 200 से अधिक लोगों की जान गई थी।
बचाव कार्यों में भारी बर्फबारी और खराब दृश्यता के कारण कठिनाइयां आ रही हैं। इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) के प्रवक्ता कमलेश कमल ने कहा, “भारी बर्फबारी के कारण बचाव कार्य धीमा हो गया, और क्षेत्र दुर्गम बना रहा।” बचाव दल को कई फीट बर्फ, बर्फीले तूफान और खराब दृश्यता के बीच काम करना पड़ रहा है।
इस घटना ने एक बार फिर हिमालयी क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं की सुरक्षा और पर्यावरणीय प्रभाव पर बहस छेड़ दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इन क्षेत्रों में अवसंरचना परियोजनाओं के दौरान पर्यावरणीय संतुलन का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है, ताकि प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को कम किया जा सके।
स्थानीय समुदायों और पर्यावरणविदों ने भी इस घटना पर चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि विकास कार्यों के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण और सुरक्षा मानकों का पालन अनिवार्य होना चाहिए। इसके अलावा, श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित प्रशिक्षण और उपकरणों की उपलब्धता भी महत्वपूर्ण है।
सरकार और संबंधित एजेंसियों को चाहिए कि वे इस घटना से सीख लेकर भविष्य में ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए बेहतर तैयारी करें। इसके लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग, नियमित प्रशिक्षण, और आपदा प्रबंधन योजनाओं का सख्ती से पालन आवश्यक है।
अंत में, यह घटना हमें याद दिलाती है कि प्राकृतिक आपदाओं के प्रति सतर्कता और तैयारी कितनी महत्वपूर्ण है। हिमालयी क्षेत्रों में विकास कार्यों के दौरान पर्यावरणीय संतुलन और सुरक्षा मानकों का पालन सुनिश्चित करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि मानव जीवन की सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण दोनों संभव हो सकें।