Chhattisgarh Naxal encounter: छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में चल रहे एक सुनियोजित और बहुस्तरीय ऑपरेशन में 21 मई 2025 को भारत सरकार को नक्सलवाद के खिलाफ़ एक ऐतिहासिक सफलता मिली। देश के सबसे कुख्यात और वांछित माओवादी नेता नंबाला केशव राव उर्फ़ बसवराजु को सुरक्षा बलों ने एक भीषण मुठभेड़ में ढेर कर दिया। उनके साथ 26 अन्य माओवादी भी मारे गए। यह ऑपरेशन बस्तर के अबूझमाड़ क्षेत्र में चला, जिसे माओवादियों का ‘अघोषित मुख्यालय’ माना जाता है।
Red Terror: Nambala Keshav Rao alias Basavaraju gunned down in encounter — know all about the notorious Maoist leader.
— Organiser Weekly (@eOrganiser) May 21, 2025
As head of the Maoists’ Central Military Commission and later as General Secretary, Basavaraju was long considered the mastermind behind several deadly attacks… pic.twitter.com/oJ6fRWAPmO
कौन था नंबाला केशव राव उर्फ़ बसवराजु?
नंबाला केशव राव, जिन्हें बसवराजु के नाम से जाना जाता था, माओवादी संगठन के सबसे ऊंचे पद, महासचिव के रूप में कार्यरत थे। 2018 में उन्होंने मुप्पला लक्ष्मण राव उर्फ़ गणपति की जगह ली थी, जो स्वास्थ्य कारणों से पद से हटे थे। बसवराजु मूल रूप से आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के रहने वाले थे और उन्होंने वारंगल के एक क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की पढ़ाई की थी।
हालांकि एक पढ़े-लिखे व्यक्ति होने के बावजूद, उन्होंने जीवन का रास्ता क्रांति और सशस्त्र संघर्ष की ओर मोड़ा। 1980 के दशक में वे जनशक्ति समूह से जुड़े और धीरे-धीरे संगठन के भीतर उनकी पहचान एक कुशल रणनीतिकार और सख्त नेतृत्वकर्ता के रूप में बनी। उन्हें विस्फोटकों और गुरिल्ला युद्ध की तकनीकों में महारत हासिल थी। वे लंबे समय तक माओवादी संगठन की मिलिट्री विंग के प्रमुख रहे और बाद में महासचिव बने।
बसवराजु के खिलाफ़ दर्ज हैं कई खतरनाक हमलों की साजिशें
नक्सली हिंसा के इतिहास में अगर सबसे घातक हमलों की बात की जाए, तो उनमें से अधिकांश के पीछे बसवराजु का दिमाग रहा है। उनकी रणनीति आमतौर पर अत्यंत योजनाबद्ध, अचानक और घातक होती थी। कुछ हमले जो उनकी पहचान बन गए:
1. चिंतलनार हमला (2010)
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के चिंतलनार क्षेत्र में हुए इस हमले में माओवादियों ने घात लगाकर 76 सीआरपीएफ जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। यह भारतीय सुरक्षा बलों पर अब तक का सबसे बड़ा हमला माना जाता है। यह बसवराजु की ही योजना थी, जिसमें उन्होंने जंगल की भौगोलिक स्थिति और सीआरपीएफ के मूवमेंट का गहन अध्ययन कर ऐसा जाल बिछाया था।
2. बलिमेला हमला (2008)
आंध्र-ओडिशा सीमा पर स्थित बलिमेला झील के पास माओवादियों ने ग्रेहाउंड्स के जवानों पर हमला कर 37 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी। इस हमले ने आंध्र प्रदेश में माओवादियों की मौजूदगी को फिर से ज़ोरदार तरीके से सामने ला दिया।
3. झीरम घाटी हमला (2013)
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र की झीरम घाटी में माओवादियों ने एक राजनीतिक काफिले पर हमला कर राज्य के कांग्रेस नेताओं की हत्या कर दी थी। इस हमले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके बेटे और पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल सहित कई वरिष्ठ नेता मारे गए थे।
4. अलीपिरी हमला (2003)
इस हमले में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू पर माओवादियों ने जानलेवा हमला किया था। हालांकि वे बच गए, लेकिन यह घटना राष्ट्रीय स्तर पर माओवादियों की ताकत और दुस्साहस का प्रतीक बन गई।
इन हमलों की भयावहता ने बसवराजु को सुरक्षा एजेंसियों की सूची में सबसे ऊपर ला दिया था। उनके सिर पर केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से कुल ₹1.5 करोड़ का इनाम घोषित था।
बस्तर ऑपरेशन: कैसे मारा गया बसवराजु?
सुरक्षा एजेंसियों को काफी समय से यह इनपुट मिल रहा था कि माओवादी केंद्रीय कमेटी के कई सदस्य अबूझमाड़ के इलाके में एक रणनीतिक बैठक के लिए एकत्र हो रहे हैं। खुफिया एजेंसियों ने इस पर गहराई से निगरानी शुरू की और एक सटीक योजना बनाई गई। ऑपरेशन में छत्तीसगढ़ पुलिस, सीआरपीएफ, कोबरा बटालियन और जिला रिजर्व गार्ड (DRG) के जवानों ने संयुक्त रूप से भाग लिया।
यह मुठभेड़ 72 घंटे तक चली और जंगल के भीतर एक पहाड़ी इलाके में तेज गोलीबारी हुई। अंतिम पुष्टि के अनुसार, बसवराजु समेत कुल 27 माओवादी मारे गए। ऑपरेशन के दौरान एक डीआरजी जवान शहीद हुआ और कई अन्य घायल हुए।
बसवराजु के शव की पहचान उसके पुराने फोटो, शरीर पर मौजूद निशानों और खुफिया जानकारी के आधार पर की गई। सुरक्षा बलों को मौके से अत्याधुनिक हथियार, विस्फोटक, दस्तावेज़ और डिजिटल डिवाइस भी मिले हैं, जिससे संगठन के आगामी मंसूबों को समझा जा सकेगा।
राजनीतिक और सुरक्षा तंत्र की प्रतिक्रिया
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस ऑपरेशन की सफलता को “नक्सलवाद के खात्मे की दिशा में एक निर्णायक क्षण” बताया। उन्होंने कहा कि बसवराजु जैसे शीर्ष नेता की मौत से माओवादी संगठन “सिरविहीन” हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सुरक्षा बलों की बहादुरी की सराहना करते हुए कहा कि “अब नक्सलवाद का अंतिम अध्याय शुरू हो चुका है।”
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार शांति और विकास को प्राथमिकता दे रही है, और अब बस्तर जैसे क्षेत्रों को भय और हिंसा से मुक्त कराकर वहां विकास की धारा बहाई जाएगी।
नक्सल आंदोलन का भविष्य: एक चिंतन
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या बसवराजु की मौत से माओवादी आंदोलन का अंत निकट है? विशेषज्ञों की मानें तो संगठन की रीढ़ अब टूट चुकी है। बसवराजु के नेतृत्व में माओवादी काफी संगठित और आक्रामक थे। उनकी रणनीति और नेतृत्व क्षमता संगठन के लिए संबल थीं। उनकी अनुपस्थिति में माओवादी कैंपों में भ्रम, असमंजस और बिखराव की स्थिति पैदा हो सकती है।
हालांकि, यह कहना भी जल्दबाज़ी होगी कि माओवादी आंदोलन पूरी तरह समाप्त हो गया है। इतिहास बताता है कि विचारधाराओं का अंत गोलियों से नहीं होता, बल्कि समाज में बदलाव और विकास के ज़रिये होता है। इसलिए सरकार के लिए यह ज़रूरी है कि वह इस सैन्य सफलता को सामाजिक बदलाव से जोड़े।
नंबाला केशव राव उर्फ़ बसवराजु की मौत माओवादी आंदोलन के इतिहास में एक बड़ा मोड़ है। यह ऑपरेशन सुरक्षा बलों की सूझबूझ, साहस और समर्पण का प्रमाण है। अब जरूरत है कि सरकार इस सफलता को बस्तर और अन्य प्रभावित क्षेत्रों में शांति और विकास की स्थायी नींव में बदल दे।
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