October 6, 2025
Israel attacks Syria

Israel attacks Syria: इज़राइल का दमिश्क में सीरियाई सेना पर ‘निर्णायक हमला’, द्रूज़ों पर अत्याचार का बदला?

Israel attacks Syria: 16 जुलाई 2025 को मध्य-पूर्व में तनाव की एक नई लहर उठी, जब इज़राइल की सेना ने सीरिया की राजधानी दमिश्क में एक “महत्वपूर्ण सैन्य लक्ष्य” पर हमला किया। यह हमला राष्ट्रपति भवन के निकट स्थित सीरियाई सेना के मुख्यालय को निशाना बनाकर किया गया। इज़राइल का यह कदम उस चेतावनी के बाद आया जिसमें उसने सीरियाई सरकार को दक्षिणी सीरिया के स्वेदा क्षेत्र में द्रूज़ अल्पसंख्यक समुदाय पर अत्याचार बंद करने को कहा था।

इज़राइली सेना ने इस हमले को ‘रक्षात्मक कार्रवाई’ बताया है और कहा है कि यह सीरिया की ओर से द्रूज़ों के खिलाफ हो रही हिंसा को रोकने के लिए उठाया गया जरूरी कदम था। सीरिया की सरकारी मीडिया ने हमले की पुष्टि करते हुए कहा कि इसमें कई नागरिक और सैन्यकर्मी घायल हुए हैं, जबकि इज़राइल ने अभी तक हमले के सटीक प्रभाव पर आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है।

द्रूज़ समुदाय का संघर्ष और इज़राइल की चिंता

द्रूज़ समुदाय सीरिया के स्वेदा प्रांत में बहुसंख्यक है, लेकिन वे पिछले कुछ वर्षों से लगातार सीरियाई सरकार और सरकार समर्थक मिलिशियाओं के निशाने पर रहे हैं। हाल ही में स्वेदा में हुई झड़पों में लगभग 250 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और कई लोग घायल हुए हैं।

इन्हीं घटनाओं के जवाब में इज़राइल ने सीरिया को चेतावनी दी थी कि यदि द्रूज़ों को निशाना बनाना बंद नहीं किया गया, तो वह कड़ा सैन्य जवाब देगा। इज़राइल के लिए यह मामला न सिर्फ मानवाधिकारों का है, बल्कि उसके अपने देश में बसे द्रूज़ समुदाय के साथ भावनात्मक और सामाजिक संबंधों का भी है।

प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और रक्षा मंत्री इस्राएल कैट्स ने एक संयुक्त बयान में कहा था कि द्रूज़ समुदाय की सुरक्षा इज़राइल की प्राथमिकता है, और यदि सीरिया ने अपनी कार्रवाइयाँ नहीं रोकीं, तो “दर्दनाक और निर्णायक” जवाब मिलेगा।

इज़राइली हमला: निशाने पर कौन-कौन?

इज़राइली वायुसेना द्वारा किए गए इस हमले में दमिश्क के मध्य स्थित सीरियाई रक्षा मंत्रालय के मुख्यालय को सीधे निशाना बनाया गया। सूत्रों के अनुसार, इस हमले में राष्ट्रपति भवन के आसपास की कई सैन्य इमारतों और कंट्रोल सेंटर्स को भी नुकसान पहुंचा है।

हमले के दौरान दमिश्क में जोरदार धमाके सुने गए और स्थानीय लोगों ने बताया कि कई जगहों पर आग लग गई। घटनास्थल पर पहुंचे आपातकालीन दलों ने घायलों को अस्पतालों में भर्ती कराया। स्थानीय स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि अब तक कम से कम 5 लोगों की मौत हो चुकी है और 30 से अधिक घायल हुए हैं।

सीरिया ने इस हमले को देश की संप्रभुता पर सीधा हमला बताया है और इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन कहा है।

क्या यह सैन्य रणनीति है या मानवीय दखल?

इस घटना ने दुनिया भर में बहस छेड़ दी है कि क्या इज़राइल की कार्रवाई सैन्य रणनीति थी या मानवीय हस्तक्षेप?

एक तरफ इज़राइल का दावा है कि उसने यह हमला द्रूज़ समुदाय की सुरक्षा के लिए किया, जो लगातार सरकारी हिंसा का शिकार हो रहे हैं। दूसरी ओर, कई विशेषज्ञ मानते हैं कि इस तरह की कार्रवाई क्षेत्रीय अस्थिरता को और बढ़ा सकती है।

इज़राइल का यह भी कहना है कि यदि सीरियाई सरकार स्वेदा से अपनी सेना नहीं हटाती है, तो हमलों की श्रृंखला आगे भी जारी रह सकती है। इससे यह संकेत मिलता है कि यह केवल एक बार की कार्रवाई नहीं थी, बल्कि आने वाले दिनों में तनाव और गहराने की आशंका है।

क्षेत्रीय और वैश्विक प्रतिक्रिया

इस हमले के बाद अमेरिका ने चिंता जताई है और दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है। अमेरिका ने यह भी स्पष्ट किया कि वह इज़राइल के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन करता है, लेकिन तनाव को और बढ़ने से रोकने के लिए कूटनीतिक रास्ता अपनाने की सलाह दी।

संयुक्त राष्ट्र ने भी इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि क्षेत्र में तनाव बढ़ाना किसी के भी हित में नहीं है और मानवीय संकट को बढ़ावा देने वाली किसी भी कार्रवाई की निंदा की जाएगी।

इस बीच, तुर्की, ईरान और रूस ने इज़राइल के हमले की निंदा की है और कहा है कि यह एक “आक्रामक और गैर-जिम्मेदाराना” हरकत थी।

क्या आगे और टकराव होगा?

फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि यह हमला एक बड़ी सैन्य रणनीति की शुरुआत है या एक सीमित कार्रवाई। लेकिन जिस तरह से इज़राइल ने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी है कि द्रूज़ों पर अत्याचार की स्थिति में वह “फिर हमला करेगा”, उससे स्थिति और गंभीर हो सकती है।

सीरिया की स्थिति पहले से ही गृहयुद्ध, आतंकवाद और आर्थिक संकट से जूझ रही है, ऐसे में यह हमला देश को और अधिक अस्थिर कर सकता है।

दमिश्क में राष्ट्रपति भवन के पास हुआ यह इज़राइली हमला केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं था, बल्कि यह एक रणनीतिक और राजनीतिक संदेश था। यह घटना दर्शाती है कि इज़राइल अपने पड़ोसी देशों की गतिविधियों को लेकर कितना संवेदनशील है, खासकर तब जब उसमें उसके अपने समुदाय से जुड़े लोग शामिल हों।

जहां एक ओर इज़राइल इस हमले को “मानवीय हस्तक्षेप” बताता है, वहीं सीरिया इसे अपनी संप्रभुता पर हमला मानता है। सवाल यह है कि क्या इस तरह की कार्रवाइयाँ वास्तव में समाधान की ओर ले जाएँगी, या फिर यह पूरे क्षेत्र को एक और युद्ध की आग में झोंक देंगी।

स्थिति अभी भी तनावपूर्ण बनी हुई है और दुनिया की निगाहें अब सीरिया और इज़राइल के अगले कदम पर टिकी हुई हैं।

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Kiran Mankar

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