Madhabi Buch: बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की पूर्व अध्यक्ष माधबी पुरी बुच और अन्य पांच व्यक्तियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के मुंबई की एक विशेष अदालत के आदेश पर रोक लगा दी है। यह आदेश सेबी के पूर्व प्रमुख और अन्य पर कथित शेयर बाजार धोखाधड़ी और नियामक उल्लंघनों के आरोपों के संबंध में था।
Bombay High Court stays special court FIR order against ex-SEBI chief Madhabi Puri Buch for financial frauds. Don’t be surprised if she joins BJP tomorrow and becomes the Finance Minister of India day after tomorrow. #SEBIChief #MadhabiPuriBuch #BombayHighCourt pic.twitter.com/eesu11o41T
— Saradsree Ghosh (@TheSavvySapien) March 4, 2025
मामला तब शुरू हुआ जब एक विशेष भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) अदालत ने बुच और अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया। हालांकि, इस आदेश को चुनौती देते हुए बुच और अन्य ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने मामले को रद्द करने की मांग की। हाई कोर्ट ने पाया कि विशेष अदालत ने बिना प्रतिवादियों को सुने ‘यांत्रिक रूप से’ आदेश पारित किया था, जो न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
यह मामला सेबी की पूर्व अध्यक्ष माधबी पुरी बुच के लिए एक राहत के रूप में देखा जा रहा है, जिनका कार्यकाल मार्च 2025 में समाप्त होने वाला है। बुच ने अपने कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण सुधार लागू किए हैं, लेकिन हाल के महीनों में वे विवादों में भी रही हैं।
अगस्त 2024 में, अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने बुच और उनके पति पर अडानी समूह से जुड़े अपतटीय फंडों में हिस्सेदारी रखने का आरोप लगाया था। इन आरोपों के अनुसार, बुच दंपति का अडानी समूह की कथित धनशोधन योजना में शामिल अपतटीय फंडों में निवेश था। हालांकि, बुच और उनके पति ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए खारिज किया और कहा कि उनका वित्तीय जीवन एक खुली किताब है।
इन आरोपों के बाद, विपक्षी दलों ने सेबी की निष्पक्षता पर सवाल उठाए और संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) या सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की। कांग्रेस पार्टी ने बुच पर लगे आरोपों के संदर्भ में 13 सवाल उठाए और सेबी की जांच में सुस्ती पर चिंता व्यक्त की।
इसके अलावा, अक्टूबर 2024 में, लोकपाल ने बुच से हिंडनबर्ग के आरोपों पर स्पष्टीकरण मांगा, जिससे उनके खिलाफ जांच का दबाव बढ़ा। हालांकि, वित्त मंत्रालय ने सेबी अध्यक्ष पद के लिए नए आवेदन आमंत्रित किए, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि बुच का कार्यकाल मार्च 2025 में समाप्त होगा और उनका कार्यकाल नहीं बढ़ाया जाएगा।
बॉम्बे हाई कोर्ट का ताजा आदेश बुच के लिए एक महत्वपूर्ण राहत है, क्योंकि यह उनके खिलाफ चल रहे कानूनी मामलों में से एक को रोकता है। यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में प्रतिवादियों को सुनने के महत्व को भी रेखांकित करता है, विशेष रूप से जब ऐसे गंभीर आरोप लगाए जाते हैं।
सेबी के पूर्व प्रमुख के रूप में, बुच ने भारतीय पूंजी बाजार में सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं। उनकी नेतृत्व क्षमता और निर्णय लेने की क्षमता के लिए उन्हें व्यापक रूप से सराहा गया है। हालांकि, हाल के विवादों ने उनकी प्रतिष्ठा पर सवाल उठाए हैं, और यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले महीनों में ये मामले कैसे विकसित होते हैं।
अंत में, बॉम्बे हाई कोर्ट का यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता के महत्व को दर्शाता है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए और सभी पक्षों को सुनने के बाद ही की जाए, ताकि न्याय के सिद्धांतों का पालन हो सके।