Monsoon arrives in India: भारत में मानसून केवल एक मौसमीय घटना नहीं है, बल्कि यह देश की जीवन रेखा है। यह वर्ष भर की कृषि, जल आपूर्ति और अर्थव्यवस्था को सीधा प्रभावित करता है। इस वर्ष, 2025 में, दक्षिण-पश्चिम मानसून ने 24 मई को केरल में दस्तक दी, जो सामान्य रूप से इसके आने की तिथि 1 जून से आठ दिन पहले है। यह 2009 के बाद से मानसून की सबसे जल्दी शुरुआत है, जब यह 23 मई को केरल पहुंचा था।
Welcome #Monsoon2025 to #Bharat's mainland 🤩🙏🏾
— Athreya Shetty 🇮🇳 (@shetty_athreya) May 23, 2025
As been forecasting for last 2 months, Monsoon makes a historic early onset over #Kerala today 23rd May, making it the earliest arrival in the last 16 years (since 2009)!!😲 Look at those beefy shower clouds driven in by strong… https://t.co/uhv9SwdlCW pic.twitter.com/VZ4Yfd1uSA
मानसून की भूमिका भारत के जीवन में
भारत का लगभग 55 प्रतिशत क्षेत्र कृषि पर निर्भर है और उस कृषि का एक बड़ा हिस्सा मानसून पर आधारित है। भारतीय किसान खरीफ फसलों की बुवाई मानसून की शुरुआत के साथ ही करते हैं। समय पर मानसून की वर्षा जहां खेतों को पानी से भर देती है, वहीं यदि इसमें देरी या अनिश्चितता हो, तो फसलें प्रभावित हो जाती हैं। ऐसे में 2025 में मानसून का जल्दी आना किसानों के लिए एक शुभ संकेत माना जा सकता है।
क्या जल्दी मानसून का मतलब ज़्यादा बारिश है?
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि मानसून के जल्दी आने और कुल वर्षा के बीच कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता। ऐसा कई बार देखा गया है कि मानसून ने जल्दी दस्तक दी, लेकिन पूरे सीजन में सामान्य या कम वर्षा हुई। इसके विपरीत, कुछ वर्षों में मानसून ने देर से शुरुआत की लेकिन बाद में प्रचुर वर्षा हुई। इसलिए, समय से पहले मानसून के आगमन को सीधे तौर पर वर्षा की अधिकता से जोड़ना वैज्ञानिक रूप से उचित नहीं है।
2025 के लिए मौसम विभाग की भविष्यवाणी
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने इस वर्ष सामान्य से अधिक वर्षा की संभावना जताई है। उन्होंने बताया है कि देश भर में 87 सेंटीमीटर की दीर्घकालिक औसत वर्षा के मुकाबले 96% से 104% वर्षा हो सकती है। यदि यह भविष्यवाणी सटीक साबित होती है, तो लगातार दूसरे वर्ष भारत में सामान्य से अधिक मानसून वर्षा दर्ज की जाएगी।
IMD का यह भी कहना है कि अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में समुद्र सतह का तापमान मानसून की दिशा और शक्ति को प्रभावित करता है। इस वर्ष, अरब सागर के ऊपर हवा के दबाव और तापमान में बदलाव के कारण मानसून पहले ही सक्रिय हो गया, और इसने केरल तट को जल्दी पार कर लिया।
केरल में असर और प्रशासनिक तैयारियां
केरल में मानसून की जल्दी शुरुआत ने राज्य प्रशासन को अलर्ट कर दिया है। भारी वर्षा के कारण राज्य सरकार ने संभावित बाढ़ और भूस्खलन की आशंका को देखते हुए सतर्कता बरती है। कुछ जिलों में स्कूलों को बंद कर दिया गया और आपदा प्रबंधन टीमों को तैनात किया गया है।
राज्य में बिजली आपूर्ति बाधित होने, सड़कों के टूटने और जलजमाव की स्थिति भी देखी गई। मछुआरों को समुद्र में न जाने की सलाह दी गई है। यह स्थिति इस बात की याद दिलाती है कि मानसून एक वरदान के साथ-साथ चुनौती भी हो सकता है।
जल्दी मानसून का किसानों पर प्रभाव
किसानों के लिए समय से पहले बारिश का मतलब है कि वे बुवाई पहले शुरू कर सकते हैं। धान, मक्का, कपास, सोयाबीन जैसी खरीफ फसलें पहले बोई जा सकती हैं, जिससे उनकी उत्पादकता पर सकारात्मक असर पड़ने की संभावना है। हालांकि, यह भी जरूरी है कि बारिश की निरंतरता बनी रहे और मानसून का वितरण संतुलित हो। असंतुलित या अत्यधिक वर्षा फसलों के लिए हानिकारक भी हो सकती है।
जल्दी बारिश से भूमिगत जलस्तर बढ़ने की भी उम्मीद की जा सकती है। यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए फायदेमंद है जहाँ सूखा पड़ने की संभावना रहती है। इसके साथ ही, बिजली उत्पादन के लिए जलाशयों में पानी की भरपूर उपलब्धता भी सुनिश्चित हो सकती है।
शहरी भारत के लिए क्या संकेत हैं?
जहाँ ग्रामीण भारत मानसून की बारिश से कृषि के लिए राहत पाता है, वहीं शहरी भारत में बारिश एक बड़ी चुनौती बन जाती है। बारिश के साथ जलजमाव, ट्रैफिक जाम, स्वास्थ्य समस्याएँ और सार्वजनिक सेवाओं में बाधा आम समस्याएं हैं।
2025 में मानसून के जल्दी आगमन के कारण कई शहरों में प्रशासन को आपदा प्रबंधन योजनाओं को पहले ही सक्रिय करना पड़ा। नालों की सफाई, जल निकासी व्यवस्था को बेहतर बनाना, और ट्रैफिक प्रबंधन जैसे कदम समय रहते उठाए गए, फिर भी कुछ जगहों पर जलभराव की खबरें सामने आईं।
मानसून और भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण योगदान है और मानसून उसका इंजन है। एक अच्छा मानसून फसलों की पैदावार बढ़ाता है, जिससे ग्रामीण आय में वृद्धि होती है। इसका सीधा असर उपभोग पर पड़ता है, जो अर्थव्यवस्था को गति देता है।
इसके अलावा, जलविद्युत उत्पादन, पेयजल आपूर्ति और उद्योगों के लिए भी मानसून आवश्यक होता है। जलाशयों में पानी की मात्रा बढ़ने से न केवल सिंचाई बल्कि बिजली उत्पादन में भी स्थिरता आती है।
हालांकि, अत्यधिक वर्षा या अनियमित मानसून से बाढ़, फसल नुकसान, सड़कें और रेल पटरियों को नुकसान, और उद्योगों में उत्पादन ठप होने जैसी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए मानसून के बेहतर प्रबंधन के लिए आधुनिक मौसम पूर्वानुमान, कृषि सलाह और जल संरक्षण योजनाओं की भूमिका अत्यंत आवश्यक हो जाती है।
क्या मानसून का पैटर्न बदल रहा है?
पिछले कुछ दशकों में वैज्ञानिकों ने मानसून के पैटर्न में बदलाव देखा है। जलवायु परिवर्तन के चलते मानसून अब पहले की तुलना में अधिक अनिश्चित हो गया है। कभी एक क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा होती है, तो कहीं सूखा पड़ जाता है। 2025 में मानसून का जल्दी आना भी इस बदलते पैटर्न का हिस्सा हो सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन मानसून की गति, समय और तीव्रता को प्रभावित कर रहा है। इसलिए भारत को न केवल बेहतर मौसम पूर्वानुमान प्रणालियाँ अपनाने की आवश्यकता है, बल्कि पर्यावरणीय संरक्षण और टिकाऊ विकास की ओर भी कदम बढ़ाना होगा।
2025 में भारत में मानसून का समय से पहले आगमन एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक घटना है। इससे किसानों को राहत मिल सकती है, जल स्रोतों को पुनर्जीवित होने का मौका मिलेगा और अर्थव्यवस्था को गति मिल सकती है। हालांकि, इसके साथ जोखिम भी जुड़े हैं जिन्हें समझदारी और योजना से ही संभाला जा सकता है।
समय से पहले मानसून को केवल एक सकारात्मक संकेत मानना पर्याप्त नहीं होगा। इसकी तीव्रता, वितरण और निरंतरता पर भी बराबर ध्यान देना होगा। देश को चाहिए कि वह विज्ञान, नीति और जागरूकता के माध्यम से मानसून के हर रूप के लिए तैयार रहे।
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