Radhika Yadav murder: हरियाणा की उभरती हुई टेनिस खिलाड़ी राधिका यादव की मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। एक होनहार और मेहनती खिलाड़ी, जो राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहरा चुकी थीं, उन्हें उसी व्यक्ति ने गोली मार दी जिस पर उन्होंने सबसे ज़्यादा भरोसा किया — उनके अपने पिता ने।
💔 National level tennis player Radhika shot dead by her own father in Gurugram
— Nabila Jamal (@nabilajamal_) July 11, 2025
He's confessed to the police. Said he was taunted by villagers, accused of living off his daughter's success, even told she was "characterless". He asked her to shut down her tennis academy which she… pic.twitter.com/NH8ig7XnnJ
10 जुलाई को गुरुग्राम के सेक्टर 57 स्थित उनके आवास पर राधिका को उनके पिता दीपक यादव ने लाइसेंसी रिवॉल्वर से गोली मार दी। गोली राधिका की पीठ और कमर में लगी और उन्हें मौके पर ही मौत हो गई। अगले दिन शुक्रवार को उनका अंतिम संस्कार भारी मातम और पुलिस सुरक्षा के बीच संपन्न हुआ।
हत्या का कारण: आत्मसम्मान की दरार या सामाजिक ताने?
इस हत्याकांड के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर दीपक यादव जैसे पिता, जो खुद रिटायर्ड सरकारी अधिकारी थे और अपनी बेटी की टेनिस अकादमी में सक्रिय भूमिका निभाते थे, उन्होंने ऐसा खौफनाक कदम क्यों उठाया?
शुरुआती अफवाहों में कहा गया कि सोशल मीडिया पर रील्स बनाने को लेकर पिता-पुत्री में अनबन थी, लेकिन पुलिस ने बाद में खुलासा किया कि हत्या का कारण कहीं ज्यादा गंभीर और समाज के गहरे मुद्दों से जुड़ा था।
दीपक यादव ने पुलिस को बताया कि उन्होंने लगभग दो करोड़ रुपये लगाकर राधिका की टेनिस अकादमी खड़ी की थी। वह चाहते थे कि राधिका शादी कर लें और स्थिर जीवन जीएं, लेकिन राधिका का ध्यान पूरी तरह अपने करियर और अकादमी पर था।
गांव में रहने वाले कुछ लोगों ने दीपक को यह कहकर ताना मारा कि “तू बेटी की कमाई खा रहा है” और “अब तेरी बेटी तुझसे बड़ी बन गई है”। इन तानों ने उन्हें मानसिक रूप से झकझोर दिया। पुलिस के अनुसार, वह इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर पाए और गुस्से में आकर यह खौफनाक कदम उठा लिया।
राधिका यादव: एक प्रेरणादायक यात्रा
राधिका यादव सिर्फ एक टेनिस खिलाड़ी नहीं थीं, वह आज की पीढ़ी की उन युवतियों में थीं जिन्होंने पुरुष प्रधान समाज में अपनी पहचान मेहनत से बनाई थी। उन्होंने ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन (AITA) की अंडर-18 कैटेगरी में 75वीं रैंक और महिला एकल वर्ग में 35वीं रैंक हासिल की थी।
उनका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नाम था। ITF महिला डबल्स में वह 113वें स्थान तक पहुंचीं और भारत के लिए कई टूर्नामेंटों में हिस्सा लिया। हाल के वर्षों में उन्होंने एक निजी टेनिस अकादमी खोली थी, जहां वह बच्चों को प्रशिक्षित कर रही थीं। वह खुद को पूरी तरह से खेल को समर्पित कर चुकी थीं और उनका सपना था कि भारत को एक ओलंपिक पदक विजेता महिला टेनिस खिलाड़ी दें।
हत्या से एक दिन पहले की तस्वीर
पड़ोसियों और कर्मचारियों ने बताया कि हत्या से एक दिन पहले राधिका और उनके पिता में किसी बात को लेकर कहासुनी हुई थी। वह अकादमी बंद करने की जिद कर रहे थे, जबकि राधिका इसका विरोध कर रही थीं।
इसका कारण यह था कि दीपक यादव को यह महसूस होने लगा था कि राधिका उनकी बात नहीं मानतीं, और वह समाज के सामने एक “गिरा हुआ बाप” बनते जा रहे हैं। यह भावना उन्हें भीतर ही भीतर खा रही थी। आखिरकार, उन्होंने वही किया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी।
मां की बेबसी और समाज की चुप्पी
घटना के समय घर में राधिका की मां मन्जू यादव भी मौजूद थीं, लेकिन वह कुछ भी नहीं कर सकीं। उनकी आंखों के सामने बेटी की जिंदगी खत्म हो गई। मां की बेबसी और परिवार की चुप्पी ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है।
पड़ोसियों के अनुसार, राधिका एक शांत, अनुशासित और मेहनती लड़की थीं, जिनसे कोई भी नाराज नहीं हो सकता था। उन्हें देखकर यह कभी नहीं लगा कि परिवार के भीतर इतनी बड़ी उथल-पुथल चल रही है।
समाज के लिए एक गहरी चेतावनी
राधिका यादव की मौत केवल एक बेटी की हत्या नहीं है, यह हमारे समाज के उस हिस्से की गवाही है, जहां पिता अब भी बेटियों को अपनी संपत्ति समझते हैं। जहां एक बेटी की आत्मनिर्भरता पिता के लिए अपमान बन जाती है। जहां बेटियों की सफलता पिता के ‘सम्मान’ के खिलाफ खड़ी हो जाती है।
हमें यह समझने की जरूरत है कि बेटियां भी सपने देखती हैं, मेहनत करती हैं, और उन्हें अपने जीवन के फैसले लेने का पूरा अधिकार है। अगर एक पिता अपनी बेटी की सफलता को सहन नहीं कर सकता, तो यह केवल पारिवारिक समस्या नहीं बल्कि सामाजिक विकृति है।
एक सपना जो अधूरा रह गया
राधिका यादव की मौत ने भारतीय खेल जगत को एक गहरा झटका दिया है। उनकी मेहनत, उनका जुनून और उनका समर्पण आज लाखों लड़कियों के लिए प्रेरणा है। उनकी हत्या ने एक बार फिर हमें यह सोचने पर मजबूर किया है कि क्या हमारे समाज ने बेटियों की स्वतंत्रता को वास्तव में स्वीकार किया है?
यह एक भावनात्मक, असहनीय और बेहद दर्दनाक घटना है, लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि राधिका जैसी बेटियों की आत्मा को सच्ची श्रद्धांजलि तभी मिलेगी जब हम उन्हें सम्मान, सुरक्षा और बराबरी देंगे।
राधिका अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कहानी, उनकी मुस्कान और उनका संघर्ष हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे।
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