Rafale jet: भारत सरकार ने एक और बड़ा रक्षा सौदा करते हुए फ्रांस से 26 राफेल-मेरिन लड़ाकू विमानों की खरीद को हरी झंडी दे दी है। करीब ₹63,887 करोड़ की यह डील प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) ने पास की है। यह फैसला चीन की बढ़ती समुद्री गतिविधियों और भारतीय नौसेना की बढ़ती ज़रूरतों को देखते हुए लिया गया है। ये विमान विशेष रूप से स्वदेशी विमानवाहक पोत INS विक्रांत से संचालन के लिए खरीदे जा रहे हैं।
Mega Rs 64,000 crore deal for 26 Rafale Marine jets cleared by governmenthttps://t.co/snHgNvdi4P via NaMo App pic.twitter.com/rzbBIFD1BH
— Pijush Hazarika (@Pijush_hazarika) April 10, 2025
क्या है इस सौदे में?
इस डील के तहत भारत को 22 सिंगल-सीटर राफेल-मेरिन जेट्स और 4 ट्विन-सीटर ट्रेनर विमान मिलेंगे। इसमें सिर्फ विमान ही नहीं, बल्कि अत्याधुनिक हथियार प्रणाली, सिमुलेटर, नौसैनिक पायलटों के लिए प्रशिक्षण और पांच साल तक का परफॉर्मेंस-बेस्ड लॉजिस्टिक्स सपोर्ट भी शामिल है। यह एक सरकार-से-सरकार (G2G) समझौता होगा और उम्मीद है कि इस महीने के भीतर इस पर आधिकारिक हस्ताक्षर कर दिए जाएंगे।
रणनीतिक दृष्टिकोण से क्यों है यह सौदा अहम?
भारतीय नौसेना के पास फिलहाल विमानवाहक पोतों पर तैनात करने योग्य पर्याप्त लड़ाकू विमान नहीं हैं। मिग-29K विमानों की विश्वसनीयता को लेकर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं। ऐसे में INS विक्रांत जैसे आधुनिक युद्धपोत को प्रभावी रूप से उपयोग में लाने के लिए नौसेना को नए पीढ़ी के विमान की आवश्यकता थी।
राफेल-मेरिन की खासियत यह है कि इसे विशेष रूप से नौसेना के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह विमान समुद्र की परिस्थितियों में आसानी से उड़ान भर सकता है, कम जगह में टेकऑफ और लैंडिंग कर सकता है, और दुश्मन की पनडुब्बियों, युद्धपोतों तथा विमानन इकाइयों पर सटीक हमला करने में सक्षम है।
चीन की चुनौती और हिंद महासागर की सुरक्षा
बीते कुछ वर्षों में चीन ने हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी गतिविधियाँ तेज़ की हैं। उसके युद्धपोत और पनडुब्बियाँ भारत के रणनीतिक हितों के पास देखी गई हैं। ऐसे में भारत के लिए यह ज़रूरी हो गया था कि वह समुद्री क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति और मारक क्षमता को बढ़ाए। राफेल-मेरिन जैसे आधुनिक विमान इस दिशा में एक बड़ा कदम हैं।
फ्रांस से मजबूत होते रक्षा संबंध
यह पहली बार नहीं है जब भारत और फ्रांस के बीच रक्षा सौदा हुआ है। इससे पहले 2016 में भारतीय वायुसेना ने 36 राफेल विमान खरीदे थे, जिनमें से 18-18 विमान अंबाला और हासीमारा एयरबेस पर पाकिस्तान और चीन की सीमाओं के नज़दीक तैनात हैं। नए सौदे में कुछ स्पेयर पार्ट्स और उपकरण भी शामिल होंगे जो वायुसेना के मौजूदा राफेल विमानों के साथ लॉजिस्टिक तालमेल बनाएंगे।
क्या होगा भविष्य में?
यह डील भले ही फ्रांसीसी विमानों की हो, लेकिन भारत अपनी रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में भी तेजी से बढ़ रहा है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा स्वदेशी ट्विन इंजन डेक बेस्ड फाइटर (TEDBF) का विकास जारी है, लेकिन इसे ऑपरेशनल होने में अभी कुछ साल लगेंगे।
जब तक भारत का अपना TEDBF तैयार नहीं हो जाता, तब तक राफेल-मेरिन विमान नौसेना की जरूरतों को पूरा करने में मदद करेंगे। इससे भारतीय नौसेना को एक “ब्रिजिंग कैपेबिलिटी” मिलेगी जो भविष्य में स्वदेशी विकल्पों के रास्ते को साफ करेगी।
26 राफेल-मेरिन लड़ाकू विमानों की यह खरीद भारतीय नौसेना की सामरिक शक्ति में ऐतिहासिक इज़ाफा है। इससे न सिर्फ समुद्री सीमाओं की रक्षा सशक्त होगी, बल्कि यह भारत की “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” पहल के साथ संतुलन बनाए रखते हुए विदेशी तकनीक के माध्यम से समय रहते अपनी रक्षा ज़रूरतों को पूरा करने की रणनीति को भी दर्शाता है।
इस डील से भारत-फ्रांस रक्षा संबंध भी और मजबूत होंगे और आने वाले समय में दोनों देशों के बीच तकनीकी सहयोग और रक्षा उत्पादन की साझेदारी के और रास्ते खुल सकते हैं।
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Source: Times of India