Russia-Ukraine war: एक घंटे में खत्म हुई वार्ता, गहराता संकट
2 जून 2025 को इस्तांबुल में रूस और यूक्रेन के बीच आयोजित शांति वार्ता की दूसरी सीधी बैठक महज एक घंटे में बिना किसी ठोस परिणाम के समाप्त हो गई। यह वार्ता लगभग दो घंटे की देरी से शुरू हुई और तुरंत ही बिना संयुक्त बयान के खत्म हो गई। यह दर्शाता है कि दोनों देशों के बीच गहरे मतभेद अब भी बने हुए हैं, जो युद्धविराम की दिशा में किसी सार्थक कदम को रोक रहे हैं।
वार्ता के दौरान, तुर्की के अधिकारियों ने मध्यस्थता की भूमिका निभाई, लेकिन बातचीत का रुख पहले से ही निराशाजनक माना जा रहा था, खासकर हाल ही में हुई यूक्रेनी ड्रोन हमलों के बाद। इस वार्ता से पहले के घटनाक्रमों ने शांति प्रक्रिया को और जटिल बना दिया है।
A second round of #peace #talks between #Russia and #Ukraine ended barely an hour after they began in #Istanbul on Monday, #Turkish officials said, a day after a massive Ukrainian drone attack on Russia's nuclear-capable strategic bombers #Turkey @Communications… pic.twitter.com/JguzyKkTO9
— MENA TODAY (@MenaToday1) June 2, 2025
ड्रोन हमला: वार्ता से पहले तनाव का विस्फोट
इस वार्ता से ठीक एक दिन पहले, यूक्रेन ने रूस के कई एयरबेसों पर एक अभूतपूर्व ड्रोन हमला किया। रिपोर्ट्स के अनुसार, यूक्रेन की ओर से कुल 70 से अधिक ड्रोन लॉन्च किए गए, जिनमें से अधिकांश रूस के पांच प्रमुख सैन्य अड्डों पर गिरे। इस हमले में लगभग 40 सैन्य विमानों को गंभीर क्षति पहुंची, जिनमें कुछ परमाणु बमवर्षक विमान भी शामिल थे। यह हमला अब तक के सबसे साहसी और रणनीतिक रूप से सटीक माने जा रहे यूक्रेनी अभियानों में से एक था।
रूस ने इस हमले को “खुले युद्ध की कार्रवाई” बताया और अगले ही दिन जवाबी कार्रवाई करते हुए यूक्रेन पर 479 ड्रोन और मिसाइलें दागीं। रूस के अनुसार, इन हमलों का लक्ष्य यूक्रेनी सैन्य ढांचा था, लेकिन यूक्रेनी अधिकारियों का कहना है कि इनमें से कई मिसाइलें रिहायशी इलाकों में गिरीं, जिससे 12 लोगों की मौत हुई और 60 से अधिक घायल हुए।
शांति वार्ता: कुछ मानवीय मुद्दों पर सहमति, बाकी विवाद जस का तस
हालांकि, बैठक में पूरी तरह विफलता नहीं रही। कुछ मानवीय मुद्दों पर दोनों पक्षों ने सहमति जताई। इनमें युद्धबंदियों की अदला-बदली और मृत सैनिकों के शवों की वापसी जैसी संवेदनशील बातें शामिल थीं। यूक्रेन की ओर से यह जानकारी दी गई कि उन्होंने रूस को 6,000 मृत सैनिकों की सूची सौंपी, जबकि रूस ने यूक्रेनी कैदियों की संख्या और उनके स्वास्थ्य पर सीमित जानकारी साझा की।
एक अहम मुद्दा यूक्रेनी बच्चों का था। यूक्रेन का दावा है कि रूस द्वारा 400 से अधिक बच्चों को युद्ध के दौरान अपहरण कर लिया गया है, लेकिन रूस ने इस सूची में से केवल 10 बच्चों को लौटाने पर सहमति जताई, जिससे यूक्रेन में गुस्से की लहर दौड़ गई। यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की ने इसे ‘नैतिक अपराध’ करार दिया और कहा कि यह बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।
विवादास्पद मांगें: दोनों पक्षों की जिद से बनी रही दूरी
रूस ने वार्ता में अपनी पुरानी मांगों को दोहराया — कि यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं होना चाहिए, पश्चिमी देशों से सैन्य सहायता बंद करनी चाहिए, और रूसी कब्जे वाले इलाकों से अपनी सेना पूरी तरह हटा लेनी चाहिए। इसके जवाब में यूक्रेन ने दो टूक शब्दों में कहा कि वह अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता से कोई समझौता नहीं करेगा।
यूक्रेन ने यह भी स्पष्ट किया कि वह पश्चिमी देशों की मदद के बिना अपनी रक्षा नहीं कर सकता, और रूस की मांगें तर्कहीन हैं। इसके साथ ही, ज़ेलेंस्की सरकार ने एक बार फिर दोहराया कि वह केवल ‘सम्मानजनक और न्यायसंगत’ शांति का पक्षधर है।
राजनयिक विकल्प: एक और बैठक की संभावना
वार्ता के अंत में, यूक्रेनी प्रतिनिधिमंडल ने जून के अंतिम सप्ताह में एक और उच्च स्तरीय बैठक की संभावनाएं जताई हैं, जिसमें अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोआन, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की शामिल हो सकते हैं। इस प्रस्तावित बैठक को ‘फोर नेशन लीडर समिट’ कहा जा रहा है, जिसका उद्देश्य युद्ध पर विराम लगाने के लिए शीर्ष स्तर पर सीधी बातचीत करना है।
हालांकि, ज़ेलेंस्की ने आगाह किया है कि यदि रूस अपनी शर्तों में कोई लचीलापन नहीं दिखाता, तो यह बैठक भी औपचारिकता भर रह जाएगी। उनका बयान था, “शांति केवल हथियारों के साए में नहीं, बल्कि सच्चे संवाद और पारदर्शी मंशा से हासिल की जा सकती है।”
जनता की प्रतिक्रिया: बढ़ती थकावट और डर
यूक्रेन और रूस, दोनों ही देशों की आम जनता अब इस युद्ध से थक चुकी है। यूक्रेन में लगातार हवाई हमले और बिजली की कटौती से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है। रूस में भी युद्ध के चलते अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ा है और युवाओं में जबरन सैन्य भर्ती को लेकर असंतोष बढ़ रहा है।
कई जानकार मानते हैं कि अगर अगली वार्ता भी विफल रही, तो यह युद्ध लंबे समय तक चल सकता है, जो केवल मानवता के लिए विनाशकारी होगा। दोनों देशों के लाखों नागरिक अब इस भीषण संघर्ष के मानसिक और आर्थिक बोझ को सहन कर रहे हैं।
आशा की किरण अब भी बाकी है
हालांकि इस्तांबुल वार्ता का अंत निराशाजनक रहा, लेकिन मानवीय मुद्दों पर हुई सीमित सहमति यह संकेत देती है कि बातचीत के लिए द्वार पूरी तरह बंद नहीं हुए हैं। वैश्विक समुदाय की जिम्मेदारी है कि वह दोनों देशों पर दबाव बनाए रखे और मध्यस्थता को गंभीरता से आगे बढ़ाए। इतिहास गवाह है कि सबसे कठोर युद्ध भी अंततः मेज़ पर बैठकर ही खत्म होते हैं।
इसलिए, चाहे यह प्रक्रिया धीमी हो या अस्थिर, लेकिन उम्मीद कायम रखनी चाहिए — शायद अगली बैठक एक नई शुरुआत बन सके।
अधिक समाचारों के लिए पढ़ते रहें जनविचार।