Supreme Court hearing on Waqf Amendment Act: भारत के सर्वोच्च न्यायालय में 16 अप्रैल 2025 को एक महत्वपूर्ण सुनवाई होने जा रही है, जिसमें वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार किया जाएगा। इस मामले की सुनवाई देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ करेगी। इस पीठ में जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन भी शामिल होंगे। कुल दस याचिकाएं इस मामले में दायर की गई हैं, जिनमें से प्रमुख याचिका ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने दायर की है। यह मामला कोर्ट में आइटम नंबर 13 के रूप में सूचीबद्ध है। आइए, इस मुद्दे को विस्तार से समझते हैं कि आखिर यह विवाद क्यों और कैसे उठा।
#BREAKING #SupremeCourt to hear the petitions challenging the Waqf Amendment Act 2025 on April 16.
— Live Law (@LiveLawIndia) April 9, 2025
A bench of CJI Sanjiv Khanna, Justice Sanjay Kumar and Justice KV Viswanathan will hear the matters.
10 petitions listed. pic.twitter.com/dHD33DuV9E
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 क्या है?
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को हाल ही में संसद में पारित किया गया था और इसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल 2025 को इसे मंजूरी दी। इस कानून का उद्देश्य वक्फ बोर्डों के प्रशासन और प्रबंधन को बेहतर करना, वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण को आसान बनाना और तकनीक के इस्तेमाल से रिकॉर्ड्स को व्यवस्थित करना बताया गया है। सरकार का दावा है कि यह संशोधन 1995 के वक्फ अधिनियम की कमियों को दूर करेगा और पारदर्शिता को बढ़ावा देगा। लेकिन इस कानून के कई प्रावधानों पर विवाद खड़ा हो गया है, जिसके चलते इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
क्यों हो रहा है विरोध?
वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ कई संगठनों और नेताओं ने आवाज उठाई है। असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, आप विधायक अमानतुल्लाह खान, जमीयत उलेमा-ए-हिंद और अन्य याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून संविधान के मूल ढांचे पर हमला करता है। इनका आरोप है कि यह अधिनियम मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों को कमजोर करता है। ओवैसी ने अपनी याचिका में कहा है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों को मिलने वाली सुरक्षा को कम करता है, जबकि हिंदू, जैन और सिख धार्मिक संस्थाओं को दी गई सुरक्षा बरकरार रखी गई है। उनके अनुसार, यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 15 (धर्म के आधार पर भेदभाव पर रोक) का उल्लंघन है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इसे “खतरनाक साजिश” करार देते हुए कहा कि यह कानून मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है। संगठन के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने एक अंतरिम याचिका भी दायर की है, जिसमें इस कानून को लागू करने से रोकने की मांग की गई है। दूसरी ओर, समस्त केरल जमीयतुल उलेमा ने दावा किया कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक मामलों को प्रबंधित करने के अधिकार में हस्तक्षेप करता है।
प्रमुख विवादास्पद प्रावधान
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 में कई बदलावों पर सवाल उठाए गए हैं। इसमें सेंट्रल वक्फ काउंसिल और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान है, जिसे धार्मिक स्वायत्तता पर हमला माना जा रहा है। इसके अलावा, वक्फ-बाय-यूजर की अवधारणा को हटाने और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित स्मारकों पर वक्फ घोषणाओं को अमान्य करने जैसे प्रावधानों पर भी आपत्ति जताई गई है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ये बदलाव वक्फ प्रबंधन को दशकों पीछे ले जाएंगे और मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाएंगे।
सरकार का पक्ष
केंद्र सरकार ने इस कानून का बचाव करते हुए कहा है कि इसका मकसद वक्फ प्रणाली में सुधार लाना और इसे और पारदर्शी बनाना है। सरकार का तर्क है कि पुराने कानून में कई खामियां थीं, जिनके कारण वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग हो रहा था। इस संशोधन के जरिए संपत्तियों का डिजिटलीकरण और बेहतर प्रबंधन सुनिश्चित किया जाएगा। हालांकि, सरकार ने अभी तक सुप्रीम कोर्ट में इन याचिकाओं पर औपचारिक जवाब दाखिल नहीं किया है, लेकिन उसने एक कैविएट दायर किया है, जिसका मतलब है कि वह कोर्ट से कोई भी अंतरिम आदेश जारी होने से पहले सुनी जानी चाहती है।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
16 अप्रैल को होने वाली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट इस मामले की गंभीरता को देखते हुए त्वरित सुनवाई पर सहमत हुआ है। सीजेआई संजीव खन्ना ने वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल की ओर से तत्काल सुनवाई की मांग को स्वीकार करते हुए कहा था कि वह इसकी व्यवस्था करेंगे। कोर्ट सबसे पहले केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर उसका जवाब मांगेगा। इसके बाद याचिकाकर्ताओं को अपने पक्ष रखने का मौका मिलेगा। अगर कोर्ट इस कानून को असंवैधानिक पाता है, तो इसे रद्द किया जा सकता है, और अगर यह वैध पाया जाता है, तो इसे लागू करने का रास्ता साफ हो जाएगा।
आगे क्या?
यह मामला न केवल कानूनी बल्कि राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी बेहद संवेदनशील है। विपक्षी दलों ने इसे धार्मिक आधार पर देश को बांटने की कोशिश करार दिया है, जबकि सरकार इसे सुधार की दिशा में कदम बता रही है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला न सिर्फ वक्फ संपत्तियों के भविष्य को तय करेगा, बल्कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के सवालों पर भी बड़ा असर डालेगा।
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