Tamil Nadu’s Rupee symbol change row: तमिलनाडु की राजनीति में हाल ही में एक नया विवाद उभरकर सामने आया है, जहां राज्य सरकार ने अपने बजट के लोगो में देवनागरी लिपि में लिखे गए आधिकारिक रुपये के प्रतीक को हटाकर तमिल लिपि में ‘ரு’ (रु) का उपयोग किया है। इस कदम ने केंद्र और राज्य सरकार के बीच भाषा और सांस्कृतिक पहचान को लेकर एक नई बहस को जन्म दिया है।
FM Nirmala Sitharaman tweets, “The DMK government has reportedly removed the official Rupee symbol ‘₹’ from the Tamil Nadu Budget 2025-26 documents, which will be presented tomorrow. If the DMK has a problem with ‘₹’, why didn’t it protest back in 2010 when it was officially… pic.twitter.com/84e3LcBq0b
— ANI (@ANI) March 13, 2025
डीएमके सरकार का निर्णय और उसकी पृष्ठभूमि
तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके), लंबे समय से हिंदी थोपने के विरोध में रही है। पार्टी का मानना है कि केंद्र सरकार की नीतियां, विशेष रूप से नई शिक्षा नीति में त्रिभाषा सूत्र, हिंदी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हैं, जो राज्य की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान के लिए खतरा है। इसी संदर्भ में, डीएमके सरकार ने राज्य के बजट के लोगो में रुपये के प्रतीक को तमिल लिपि में बदलने का निर्णय लिया, जिसे राज्य की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने के कदम के रूप में देखा जा रहा है।
निर्मला सीतारमण की प्रतिक्रिया: छह प्रमुख बिंदु
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने डीएमके के इस कदम की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने एक विस्तृत पोस्ट में छह प्रमुख तर्क प्रस्तुत किए हैं:
2010 में चुप्पी: सीतारमण ने उल्लेख किया कि जब 2010 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने देवनागरी लिपि में रुपये के प्रतीक को अपनाया था, तब डीएमके, जो उस समय सरकार का हिस्सा थी, ने कोई विरोध नहीं किया था।
संवैधानिकता का प्रश्न: उन्होंने सवाल उठाया कि क्या राज्य सरकार का यह कदम संवैधानिक मानदंडों के अनुरूप है, क्योंकि राष्ट्रीय प्रतीकों में बदलाव करने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता है।
राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव: सीतारमण के अनुसार, इस प्रकार के क्षेत्रीय प्रतीक अपनाने से राष्ट्रीय एकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और यह संघीय ढांचे को कमजोर कर सकता है।
क्षेत्रीयता का बढ़ावा: उन्होंने आरोप लगाया कि इस कदम से क्षेत्रीयता और भाषाई विभाजन को बढ़ावा मिलेगा, जो देश की अखंडता के लिए हानिकारक हो सकता है।
आर्थिक प्रभाव: सीतारमण ने चिंता व्यक्त की कि इस प्रकार के प्रतीक परिवर्तन से आर्थिक लेन-देन में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिससे व्यापार और वाणिज्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
राजनीतिक उद्देश्य: उन्होंने आरोप लगाया कि यह कदम केवल राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया है, जिससे राज्य की वास्तविक समस्याओं से ध्यान भटकाया जा सके।
तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलन: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलन का एक लंबा इतिहास रहा है। 1960 के दशक में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के प्रयासों के खिलाफ राज्य में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिनमें कई लोगों की जान भी गई थी। इस पृष्ठभूमि में, डीएमके और अन्य क्षेत्रीय पार्टियां हिंदी थोपने के किसी भी प्रयास का विरोध करती रही हैं। हाल ही में, नई शिक्षा नीति में त्रिभाषा सूत्र को लेकर भी राज्य और केंद्र के बीच तनाव देखा गया है।
भाषाई पहचान बनाम राष्ट्रीय प्रतीक
डीएमके सरकार का तर्क है कि तमिल लिपि में रुपये के प्रतीक का उपयोग राज्य की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को प्रकट करता है। उनके अनुसार, यह कदम तमिल भाषा और संस्कृति के महत्व को रेखांकित करता है। वहीं, आलोचकों का मानना है कि राष्ट्रीय प्रतीकों में इस प्रकार के परिवर्तन से देश की एकता और अखंडता पर असर पड़ सकता है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और संभावित प्रभाव
इस विवाद ने राज्य और केंद्र के बीच राजनीतिक तनाव को और बढ़ा दिया है। जहां डीएमके अपने निर्णय को राज्य की सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के रूप में प्रस्तुत कर रही है, वहीं भाजपा और अन्य विपक्षी दल इसे क्षेत्रीयता और विभाजनकारी राजनीति के रूप में देख रहे हैं। आने वाले दिनों में यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर भाषा और सांस्कृतिक पहचान के सवालों पर एक व्यापक बहस को जन्म दे सकता है।
तमिलनाडु सरकार द्वारा रुपये के प्रतीक में किया गया परिवर्तन भाषा और सांस्कृतिक पहचान के मुद्दों को उजागर करता है। यह विवाद इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पहचान के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। भविष्य में, इस प्रकार के मुद्दों पर संवेदनशीलता और समझदारी से निपटना महत्वपूर्ण होगा ताकि देश की एकता और विविधता दोनों का सम्मान हो सके।