Trump on Harvard University: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को अपने निशाने पर लिया है। उन्होंने हार्वर्ड पर आरोप लगाया है कि यह संस्थान “राजनीतिक, वैचारिक और आतंकवादी प्रेरित बीमारियों” को बढ़ावा दे रहा है। ट्रंप ने कहा कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो विश्वविद्यालय को टैक्स छूट नहीं मिलनी चाहिए और इसे एक राजनीतिक संस्था के तौर पर टैक्स देना चाहिए।
US President Donald Trump calls for Harvard to lose its tax-exempt status and be taxed as a 'political entity' after the university refuses his demands to crack down on anti-Semitism pic.twitter.com/l6x6S7oCnA
— TRT World Now (@TRTWorldNow) April 15, 2025
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर लिखा:
“शायद हार्वर्ड को अपना टैक्स-छूट दर्जा खो देना चाहिए और इसे एक राजनीतिक संस्था के रूप में टैक्स लगाया जाना चाहिए, अगर यह राजनीतिक, वैचारिक और आतंकवादी प्रेरित/समर्थित ‘बीमारी’ को बढ़ावा देता है? याद रखो, टैक्स छूट का दर्जा पूरी तरह सार्वजनिक हित में कार्य करने पर निर्भर है!”
हार्वर्ड बनाम ट्रंप प्रशासन: क्या है विवाद?
यह विवाद नया नहीं है। ट्रंप प्रशासन लगातार हार्वर्ड पर दबाव बना रहा है कि वह अपने परिसर में राजनीतिक गतिविधियों और वैचारिक अभियानों पर रोक लगाए। विशेष रूप से ‘डाइवर्सिटी, इक्विटी एंड इंक्लूज़न’ (DEI) कार्यक्रमों को लेकर प्रशासन ने आपत्ति जताई है, जिनका उद्देश्य विविधता और समावेशिता को बढ़ावा देना है।
प्रशासन का दावा है कि ये कार्यक्रम यहूदी विरोध और पक्षपात को बढ़ावा देते हैं, जबकि हार्वर्ड का कहना है कि ये आरोप निराधार हैं और यह उनकी अकादमिक स्वतंत्रता पर हमला है।
फंडिंग और टैक्स का बड़ा खेल
ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड की लगभग $2.26 बिलियन की संघीय फंडिंग रोक दी है। यदि टैक्स छूट समाप्त होती है, तो हार्वर्ड को हर साल लगभग $500 मिलियन से अधिक का नुकसान हो सकता है। यह विश्वविद्यालय के लिए बड़ा झटका होगा, भले ही उसकी एंडोमेंट फंडिंग $50 बिलियन से अधिक हो।
इसके अलावा, टैक्स दर्जा खत्म होने से विश्वविद्यालय को अपनी सेवाओं और स्कॉलरशिप कार्यक्रमों में कटौती करनी पड़ सकती है, जिससे हजारों छात्रों पर असर पड़ेगा।
अकादमिक जगत में हलचल
ट्रंप के बयान के बाद कई विश्वविद्यालयों और शिक्षाविदों ने इस पर प्रतिक्रिया दी है। कुछ ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला कहा है, जबकि अन्य ने हार्वर्ड का समर्थन करते हुए इसे अकादमिक संस्थानों की स्वतंत्रता बचाने की लड़ाई बताया है।
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी हार्वर्ड के समर्थन में बयान दिया है और कहा है कि विश्वविद्यालयों को राजनीतिक दबाव से बचाने की जरूरत है। दूसरी ओर, कोलंबिया, ब्राउन और MIT जैसे प्रतिष्ठित संस्थान भी इसी तरह के दबाव का सामना कर रहे हैं।
क्या आगे होगा?
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि हार्वर्ड इस कानूनी और राजनीतिक हमले का कैसे जवाब देता है। क्या यह मामला कोर्ट तक जाएगा? क्या अन्य विश्वविद्यालय भी इसी राह पर चलेंगे? और सबसे अहम सवाल – क्या यह विवाद अमेरिका की उच्च शिक्षा प्रणाली को एक नई दिशा देगा?
ट्रंप की टिप्पणी ने न सिर्फ हार्वर्ड बल्कि पूरे अकादमिक जगत को हिला दिया है। यह बहस अब सिर्फ एक विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह सवाल बन गई है – क्या शैक्षणिक संस्थाएं अपनी वैचारिक आज़ादी बरकरार रख पाएंगी या उन्हें भी राजनीतिक खांचे में ढाला जाएगा?
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