Trump Tariffs

Trump Tariffs: ट्रंप ने 90 दिनों के लिए सभी देशों पर टैरिफ क्यों रोका, सिवाय चीन के?

Trump Tariffs: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक बड़ा ऐलान किया, जिसने वैश्विक व्यापार जगत में हलचल मचा दी। बुधवार को उन्होंने सभी देशों पर लगाए गए व्यापक टैरिफ को 90 दिनों के लिए स्थगित करने की घोषणा की, लेकिन इसमें चीन को शामिल नहीं किया गया। इसके विपरीत, चीन पर टैरिफ को तत्काल प्रभाव से 125 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया। यह फैसला चौंकाने वाला था, क्योंकि महज 24 घंटे पहले तक ऐसा कुछ होने की संभावना नजर नहीं आ रही थी। ट्रंप ने अपने इस कदम के पीछे कारण बताया कि 75 से अधिक देशों ने उनके साथ बातचीत की और अमेरिका के खिलाफ जवाबी कार्रवाई (रिटालिएशन) से परहेज किया, जिसके चलते यह राहत दी गई। अगले 90 दिनों तक इन देशों पर केवल 10 प्रतिशत का कम किया हुआ टैरिफ लागू रहेगा। आइए, इस फैसले के पीछे की वजहों को गहराई से समझते हैं।

टैरिफ नीति का मकसद और बदलाव

ट्रंप लंबे समय से अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करने के लिए आक्रामक टैरिफ नीति की वकालत करते रहे हैं। उनका मानना है कि कई देश अमेरिका के साथ व्यापार में अनुचित लाभ उठाते हैं, जिसे वह “रेसिप्रोकल ट्रेड” (पारस्परिक व्यापार) के जरिए संतुलित करना चाहते हैं। इसी के तहत उन्होंने पिछले हफ्ते सभी देशों पर 10 प्रतिशत का आधारभूत टैरिफ और कुछ देशों पर 11 से 50 प्रतिशत तक के ऊंचे टैरिफ लागू किए थे। लेकिन इस नीति के लागू होने के कुछ ही घंटों बाद बाजारों में भारी उथल-पुथल देखने को मिली। शेयर बाजारों में गिरावट, बॉन्ड मार्केट में अस्थिरता और वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंका ने ट्रंप प्रशासन पर दबाव बढ़ा दिया।

इसके जवाब में ट्रंप ने रणनीति बदली। उन्होंने कहा कि जिन देशों ने उनके टैरिफ का जवाब नहीं दिया और बातचीत के लिए आगे आए, उन्हें राहत दी जाएगी। यह 90 दिनों का ठहराव उन देशों के लिए एक मौका है जो अमेरिका के साथ व्यापारिक समझौते करना चाहते हैं। लेकिन चीन के खिलाफ सख्ती बरकरार रखते हुए उन्होंने टैरिफ को 125 प्रतिशत तक बढ़ाने का फैसला किया, क्योंकि चीन ने 84 प्रतिशत के जवाबी टैरिफ के साथ पलटवार किया था। ट्रंप का कहना है कि चीन ने “विश्व बाजारों के प्रति सम्मान की कमी” दिखाई, जिसके चलते यह कदम जरूरी था।

बाजार और सहयोगियों का दबाव

इस फैसले के पीछे सबसे बड़ी वजह बाजारों की अस्थिरता और ट्रंप के सहयोगियों की चिंताएं थीं। टैरिफ लागू होने के बाद अमेरिकी शेयर बाजार में भारी गिरावट आई थी, जिससे निवेशकों में डर फैल गया। डाउ जोन्स इंडेक्स में करीब 3000 अंकों की तेजी तब देखी गई, जब ट्रंप ने इस ठहराव की घोषणा की। इससे साफ है कि बाजार इस राहत का इंतजार कर रहे थे। इसके अलावा, ट्रंप के करीबी सलाहकारों और रिपब्लिकन नेताओं ने भी चेतावनी दी थी कि यह नीति अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकती है। ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट ने कथित तौर पर ट्रंप को बॉन्ड मार्केट में बढ़ते संकट के बारे में बताया, जिसने उन्हें यह कदम उठाने के लिए प्रेरित किया।

ट्रंप ने खुद संवाददाताओं से कहा, “मैंने देखा कि लोग थोड़ा परेशान हो रहे थे। बॉन्ड मार्केट में हलचल थी, और मैं नहीं चाहता था कि स्थिति बेकाबू हो।” यह बयान दर्शाता है कि उनका फैसला सोच-समझकर लिया गया था, न कि पहले से तय रणनीति का हिस्सा था।

चीन पर निशाना क्यों?

चीन के खिलाफ ट्रंप की सख्ती कोई नई बात नहीं है। वह इसे अमेरिका के व्यापार घाटे का सबसे बड़ा कारण मानते हैं और लंबे समय से बीजिंग पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। 125 प्रतिशत टैरिफ का ऐलान इस बात का संकेत है कि ट्रंप चीन को बातचीत की मेज पर लाने के लिए तैयार हैं, लेकिन अपनी शर्तों पर। उनका कहना है कि चीन को यह समझना होगा कि “अमेरिका और अन्य देशों को ठगने के दिन अब खत्म हो गए हैं।” इस बीच, अन्य देशों को 90 दिनों का समय देकर ट्रंप ने एक रणनीतिक संतुलन बनाया है—चीन को अलग-थलग करना और बाकी दुनिया को अपने पक्ष में लाना।

वैश्विक प्रभाव और भविष्य

इस फैसले का असर वैश्विक व्यापार पर साफ दिख रहा है। यूरोपीय संघ, जिसने जवाबी टैरिफ की तैयारी शुरू कर दी थी, अब राहत की सांस ले सकता है। भारत जैसे देश, जो पहले से 10 प्रतिशत टैरिफ के दायरे में थे, अब अमेरिका के साथ बेहतर व्यापारिक सौदे की उम्मीद कर सकते हैं। लेकिन चीन और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ने से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर असर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह ठहराव एक अस्थायी राहत है, और 90 दिनों के बाद स्थिति फिर बदल सकती है।

ट्रंप ने कहा, “यह अभी खत्म नहीं हुआ है, लेकिन मुझे लगता है कि सब कुछ शानदार तरीके से काम करेगा।” उनके इस आत्मविश्वास के पीछे शायद यह उम्मीद है कि चीन भी जल्द बातचीत के लिए तैयार होगा।

ट्रंप का 90 दिनों का टैरिफ ठहराव एक रणनीतिक कदम है, जो बाजार के दबाव, सहयोगियों की सलाह और चीन के खिलाफ उनकी सख्त नीति का नतीजा है। यह फैसला न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था को स्थिर करने की कोशिश है, बल्कि वैश्विक व्यापार में अमेरिका की स्थिति को मजबूत करने का भी प्रयास है। अगले तीन महीने इस बात का फैसला करेंगे कि क्या ट्रंप की यह रणनीति कामयाब होती है या नहीं।

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