October 10, 2025
उपराष्ट्रपति चुनाव

उपराष्ट्रपति चुनाव 2025: चुनाव आयोग की निर्णायक तैयारी, संसद में नए नेतृत्व की ओर बढ़ता भारत

नई दिल्ली, 23 जुलाई 2025 – भारत के संविधान के अनुसार देश के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद, उपराष्ट्रपति, के चुनाव की प्रक्रिया एक बार फिर से आरंभ हो गई है। चुनाव आयोग (Election Commission of India – ECI) ने इस महत्वपूर्ण चुनाव की पूरी तैयारी शुरू कर दी है। मौजूदा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में अपने स्वास्थ्य कारणों के चलते इस्तीफा दे दिया, जिससे यह पद रिक्त हो गया है।

धनखड़ के इस्तीफे ने राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। विपक्षी और सत्ताधारी दलों दोनों की नजरें अब नए उम्मीदवार और संभावित समीकरणों पर टिकी हुई हैं। चुनाव आयोग की सक्रियता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यह प्रक्रिया एक सकारात्मक दिशा में अग्रसर है।

चुनाव प्रक्रिया: कौन बनाता है उपराष्ट्रपति को?

भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव एक विशेष निर्वाचक मंडल (Electoral College) द्वारा किया जाता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों – लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित और मनोनीत सदस्य शामिल होते हैं। इसमें राज्यों की विधानसभाओं की कोई भूमिका नहीं होती, जो राष्ट्रपति चुनाव में भाग लेते हैं।

हर सांसद का मत समान होता है, यानी हर वोट की कीमत एक होती है। यह चुनाव गुप्त मतदान के माध्यम से होता है, जिसमें किसी भी दल का whip लागू नहीं होता, अर्थात सांसद अपनी पसंद के अनुसार स्वतंत्र रूप से मतदान कर सकते हैं।

नामांकन की शर्तें क्या हैं?

उपराष्ट्रपति पद के लिए नामांकन भरने वाले उम्मीदवार को कम-से-कम 20 सांसदों का प्रस्तावक और 20 सांसदों का अनुमोदनकर्ता होना अनिवार्य है। उम्मीदवार की आयु कम-से-कम 35 वर्ष होनी चाहिए, और वह भारत का नागरिक होना चाहिए। इसके साथ ही, उसे राज्यसभा का सदस्य बनने के योग्य होना चाहिए।

इसके अतिरिक्त, उम्मीदवार किसी लाभ के पद (Office of Profit) पर नहीं होना चाहिए, अर्थात कोई भी ऐसा पद जो उसे सरकारी वेतन या लाभ देता हो, उसे धारित नहीं किया जा सकता।

चुनाव आयोग की तैयारियाँ

चुनाव आयोग ने प्रक्रिया की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। सबसे पहले मुख्य निर्वाचन अधिकारी (Returning Officers) और सहायक निर्वाचन अधिकारियों की नियुक्ति का कार्य शुरू कर दिया गया है। इन अधिकारियों को पूरी प्रक्रिया की निगरानी करनी होती है, जिसमें नामांकन पत्रों की जांच, मतदान की व्यवस्था, मतगणना और अंतिम परिणाम की घोषणा शामिल है।

चुनाव की तारीखों की घोषणा जल्द ही की जाएगी। आमतौर पर अधिसूचना जारी होने के 30 दिनों के भीतर यह चुनाव संपन्न होता है। इस बार आयोग की कोशिश है कि प्रक्रिया पारदर्शी, निष्पक्ष और समयबद्ध हो।

संभावित उम्मीदवारों की चर्चा

राजनीतिक गलियारों में कई नाम चर्चा में हैं। ऐसा माना जा रहा है कि सत्ताधारी गठबंधन NDA किसी सामाजिक रूप से प्रतिनिधित्वशील चेहरे को मैदान में उतार सकता है। इसमें पिछड़े वर्ग या अनुसूचित जाति से आने वाले नेताओं के नाम सबसे आगे हैं। कुछ संभावित नामों में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह, जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे चर्चित नेता शामिल हैं।

विपक्ष की ओर से भी एक साझा उम्मीदवार उतारने की संभावना जताई जा रही है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आप और अन्य क्षेत्रीय दलों के बीच बातचीत जारी है। पिछली बार की तरह यदि विपक्ष एकजुट होता है, तो यह मुकाबला दिलचस्प हो सकता है। लेकिन संसद में मौजूदा संख्या बल को देखते हुए NDA को स्पष्ट बढ़त हासिल है।

संवैधानिक और राजनीतिक महत्व

भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति भी होता है। वह न केवल सदन की कार्यवाही को संचालित करता है, बल्कि संवैधानिक संकट की स्थिति में कार्यवाहक राष्ट्रपति की भूमिका भी निभा सकता है। ऐसे में यह चुनाव सिर्फ एक पद की नियुक्ति नहीं, बल्कि संसद की गरिमा और निष्पक्षता की स्थापना का भी प्रश्न होता है।

उपराष्ट्रपति पद की गरिमा बनाए रखना लोकतंत्र की बुनियाद का हिस्सा है। इस चुनाव में मतदाताओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां उनका वोट केवल पार्टी की राजनीति नहीं, बल्कि राष्ट्रहित को सामने रखकर देना होता है।

आगे की दिशा

चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि वह जल्द ही अधिसूचना जारी करेगा, जिसके बाद नामांकन, नामांकन पत्रों की जांच, नाम वापसी की अंतिम तारीख, मतदान और मतगणना की समय-सारणी सामने आएगी।

एक अनुमान के अनुसार अगस्त के मध्य तक मतदान और परिणाम की घोषणा संभव है। यह देखना रोचक होगा कि क्या चुनाव निर्विरोध होता है या फिर गहन मुकाबला देखने को मिलेगा।

उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया भले ही सीमित संख्या में मतदाताओं द्वारा संपन्न होती हो, लेकिन इसका लोकतंत्र और संविधान की व्याख्या में गहरा महत्व है। चुनाव आयोग की त्वरित और सक्रिय तैयारियाँ यह दर्शाती हैं कि संस्थाएं अपने कर्तव्यों को लेकर सजग हैं। अब देश की निगाहें उस चेहरे पर टिक गई हैं जो आने वाले वर्षों में संसद की गरिमा को नई दिशा देगा।

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