US Tariffs

US Tariffs: एशिया पर ट्रंप टैरिफ का तगड़ा असर, क्या अब ब्याज दरों में कटौती ही विकल्प है?

US Tariffs: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर चर्चा में हैं — इस बार अपने नए टैरिफ (शुल्क) फैसलों को लेकर, जिनका सबसे ज्यादा असर एशियाई अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ रहा है। व्यापारिक तनाव, पहले से धीमी विकास दर और महंगाई के दबाव के बीच ये टैरिफ एशिया के लिए तगड़ा झटका साबित हो रहे हैं। कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगर ये रुझान जारी रहे, तो एशियाई देशों को ब्याज दरों में कटौती जैसे सख्त फैसले लेने पड़ सकते हैं।

ASEAN देशों की मुश्किलें बढ़ीं

दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों (ASEAN) को इस बार सबसे ज्यादा झटका लगा है। वियतनाम और थाईलैंड जैसे देश, जो पहले चीन से होने वाले निर्यात का वैकल्पिक रास्ता बन गए थे, अब खुद अमेरिका के निशाने पर हैं।

OCBC बैंक की प्रमुख अर्थशास्त्री सेलेना लिंग का कहना है, “चीन पहले अपने उत्पाद ASEAN देशों के जरिए अमेरिका भेजता था ताकि टैरिफ से बचा जा सके। अब जब अमेरिका ने इन देशों पर भी टैरिफ लागू कर दिए हैं, तो वो रणनीति भी कमजोर हो गई है।”

इसका सीधा असर व्यापार निवेश और कारोबारी भावना पर पड़ा है। ASEAN देशों की GDP में गिरावट और रोजगार संकट की आशंका अब ज़्यादा प्रबल होती दिख रही है।

चीन की रणनीति पर भी असर

चीन, जो अब तक दुनिया की फैक्ट्री कहा जाता था, इस टैरिफ वॉर में सीधे निशाने पर है। ट्रंप द्वारा लगाए गए नए टैरिफ चीन के कुछ प्रमुख उत्पादों पर 70% तक पहुँच चुके हैं। इससे न सिर्फ चीन की GDP पर असर पड़ा है, बल्कि उसकी क्षेत्रीय पकड़ भी कमजोर हुई है।

विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की GDP में इससे लगभग 1% तक की गिरावट हो सकती है, जो उसकी वैश्विक स्थिति को झटका देने वाली बात है।

भारत के लिए चुनौती और अवसर दोनों

भारत की स्थिति तुलनात्मक रूप से थोड़ी बेहतर मानी जा रही है। उसे फिलहाल अमेरिका द्वारा कम टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है (लगभग 27%), जिससे वह वियतनाम और चीन के मुकाबले एक प्रतिस्पर्धी विकल्प बन सकता है।

लेकिन इस मौके के साथ कुछ खतरे भी हैं। अगर अमेरिका भारत के कृषि या औद्योगिक उत्पादों को लेकर सख्त रुख अपनाता है, तो भारत को भी प्रतिशोधी टैरिफ का सामना करना पड़ सकता है।

दक्षिण कोरिया, ताइवान और मलेशिया की चुनौती

इन देशों का अमेरिका के साथ इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात पर बड़ा निर्भर होना, अब उनके लिए सिरदर्द बन गया है। अमेरिकी टैरिफ के कारण स्मार्टफोन, चिप्स और मशीनरी जैसे उत्पादों की मांग में गिरावट देखी जा रही है।

केंद्रीय बैंकों की बढ़ती चिंता

इस संकट से निपटने के लिए कई एशियाई देशों के केंद्रीय बैंक अब ब्याज दरों में कटौती पर विचार कर रहे हैं। लेकिन इस राह में भी रोड़े हैं—महंगाई अब भी ऊँचे स्तर पर है और मुद्रा मूल्यह्रास (currency depreciation) का खतरा मंडरा रहा है।

हालांकि, कई अर्थशास्त्री मानते हैं कि अगर विकास दर को बनाए रखना है, तो दरों में कटौती के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता। लेकिन ये कदम तब और ज्यादा असरदार होगा जब इसे संरचनात्मक सुधारों के साथ जोड़ा जाए।

आगे की राह क्या हो सकती है?

  1. नीति निर्धारण में एकरूपता: एशियाई देशों को मिलकर व्यापार और वित्तीय नीति पर काम करना होगा, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता बनी रहे।
  2. आंतरिक मांग को बढ़ावा देना: निर्यात पर अत्यधिक निर्भरता से बाहर निकलने का वक्त आ गया है। घरेलू मांग और उपभोग को प्रोत्साहित करना जरूरी होगा।
  3. नई बाजारों की तलाश: अमेरिकी बाजार की बजाय अफ्रीका, यूरोप और लैटिन अमेरिका जैसे बाजारों पर ध्यान केंद्रित करना लाभकारी हो सकता है।

डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफों ने सिर्फ चीन ही नहीं, पूरे एशिया के व्यापारिक ढांचे को झकझोर कर रख दिया है। जहां एक ओर यह देशों को नए रास्ते तलाशने के लिए मजबूर कर रहा है, वहीं दूसरी ओर यह अवसर भी है कि वे अपनी आर्थिक संरचना को और मजबूत करें।

भारत जैसे देशों के पास इस संकट को अवसर में बदलने का मौका है — लेकिन इसके लिए स्मार्ट नीति, तेज़ निर्णय और वैश्विक राजनीतिक संतुलन की ज़रूरत होगी।

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