X sues Indian Government: एलोन मस्क की कंपनी X (पूर्व में ट्विटर) ने हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है, जिसमें भारतीय सरकार द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79(3)(b) और सहयोग पोर्टल के उपयोग को ‘अवैध और अनियमित सेंसरशिप तंत्र’ के रूप में चुनौती दी गई है। कंपनी का तर्क है कि इस प्रक्रिया से कानूनी सुरक्षा उपायों को दरकिनार किया जा रहा है।
🚨 Elon Musk’s X sues the Indian Government over unlawful censorship via the Shahyog portal and the IT act. pic.twitter.com/23hMBDTrn9
— Indian Tech & Infra (@IndianTechGuide) March 20, 2025
मामले की पृष्ठभूमि
X का दावा है कि भारतीय अधिकारी धारा 79(3)(b) का उपयोग सामग्री हटाने के लिए कर रहे हैं, जबकि इस धारा का उद्देश्य इंटरमीडियरी को कुछ परिस्थितियों में दायित्व से छूट प्रदान करना है। कंपनी का कहना है कि सामग्री हटाने के लिए धारा 69A के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए, जो उचित प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करती है।
धारा 79(3)(b) और 69A: एक तुलना
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69A सरकार को कुछ शर्तों के तहत ऑनलाइन सामग्री को अवरुद्ध करने की शक्ति देती है, लेकिन इसके लिए एक निर्धारित प्रक्रिया और सुरक्षा उपायों का पालन आवश्यक है। दूसरी ओर, धारा 79(3)(b) इंटरमीडियरी को कुछ परिस्थितियों में दायित्व से छूट प्रदान करती है, लेकिन इसे सामग्री हटाने के लिए उपयोग करना उचित नहीं माना जा सकता।
सहयोग पोर्टल का उपयोग
X का आरोप है कि भारतीय अधिकारी सहयोग पोर्टल का उपयोग करके सामग्री हटाने के आदेश जारी कर रहे हैं, जो कानूनी प्रक्रिया और न्यायिक निरीक्षण के बिना है। कंपनी का कहना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है।
अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ
यह मामला केवल भारत तक सीमित नहीं है। हाल ही में, यूरोपीय संघ ने भी X के खिलाफ डिजिटल सेवा अधिनियम के तहत जांच शुरू की है, जिसमें हानिकारक ऑनलाइन सामग्री से संबंधित चिंताओं को उठाया गया है।
यह दिखाता है कि विभिन्न देशों में ऑनलाइन सामग्री विनियमन के तरीकों पर बहस जारी है।
X का तर्क
X का तर्क है कि सामग्री हटाने के लिए धारा 69A के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए, जो उचित प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करती है। कंपनी का कहना है कि धारा 79(3)(b) का उपयोग सामग्री हटाने के लिए करना कानूनी रूप से अनुचित है।
न्यायालय की प्रतिक्रिया
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इस मामले में अभी तक अंतिम निर्णय नहीं दिया है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि न्यायालय इस मामले में क्या रुख अपनाता है और यह निर्णय भारत में ऑनलाइन सामग्री विनियमन के भविष्य को कैसे प्रभावित करेगा।
X द्वारा दायर की गई यह याचिका भारत में ऑनलाइन सामग्री विनियमन और सेंसरशिप के मुद्दों पर महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती है। यह मामला कानूनी प्रक्रियाओं, पारदर्शिता, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। आने वाले समय में न्यायालय का निर्णय इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।