X’s Global Affairs account withheld: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (जिसे पहले ट्विटर के नाम से जाना जाता था) एक बार फिर भारत में विवादों के केंद्र में है। हाल ही में भारत सरकार द्वारा X से 8,000 से अधिक अकाउंट्स और पोस्ट्स को हटाने के लिए कहे जाने के कुछ ही घंटों बाद, X के ‘ग्लोबल अफेयर्स’ नामक आधिकारिक अकाउंट को भी भारत में रोक दिया गया। यह घटनाक्रम इंटरनेट स्वतंत्रता, सेंसरशिप और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे ज्वलंत मुद्दों को एक बार फिर राष्ट्रीय चर्चा में ले आया है।
Global Affairs who had tweeted yesterday saying that they have been asked to block over 8000 accounts in India, got itself withheld in India😭 pic.twitter.com/qpl6hrz4hz
— Diksha Kandpal🇮🇳 (@DikshaKandpal8) May 9, 2025
यह सिर्फ एक अकाउंट रोके जाने की बात नहीं है, बल्कि एक बड़े डिजिटल विवाद की शुरुआत है, जिसमें सरकार की निगरानी नीति, अभिव्यक्ति की सीमाएं और तकनीकी कंपनियों की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं।
सरकार का आदेश और X की प्रतिक्रिया
X के आधिकारिक बयान के अनुसार, भारत सरकार ने उन्हें कार्यकारी आदेश जारी कर 8,000 से अधिक अकाउंट्स और पोस्ट्स को हटाने का निर्देश दिया था। यदि कंपनी इन आदेशों का पालन नहीं करती, तो उन पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती थी, जिसमें भारी जुर्माना और जेल की सजा भी शामिल है। X ने यह स्पष्ट किया कि उन्होंने इन आदेशों का पालन मजबूरी में किया है, लेकिन वे इससे सहमत नहीं हैं।
X की तरफ से कहा गया कि वे मानते हैं कि जिन पोस्ट्स और अकाउंट्स को हटाने का आदेश दिया गया, वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आते हैं। कंपनी का यह रुख इस ओर इशारा करता है कि वे सरकार के इस कदम को अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अंकुश मानते हैं।
कानूनी चुनौती और पारदर्शिता की मांग
X ने बताया कि उन्होंने भारत सरकार के आदेशों के खिलाफ एक रिट याचिका दायर की है जो फिलहाल न्यायालय में लंबित है। कंपनी ने कहा कि वे चाहकर भी इन सरकारी आदेशों को सार्वजनिक नहीं कर सकते, क्योंकि स्थानीय कानून उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं। लेकिन कंपनी का मानना है कि इन आदेशों को पारदर्शिता के लिए सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
यह बात ध्यान देने योग्य है कि भारत में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69A के अंतर्गत सरकार को अधिकार है कि वह किसी भी ऑनलाइन कंटेंट को सार्वजनिक हित, राष्ट्रीय सुरक्षा या कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए हटाने का निर्देश दे सकती है। हालांकि, इन आदेशों की गोपनीयता और समीक्षा की प्रक्रिया हमेशा सवालों के घेरे में रही है।
किसान आंदोलन और सोशल मीडिया की सेंसरशिप
X द्वारा जिन अकाउंट्स और पोस्ट्स को ब्लॉक किया गया, उनमें से कई किसान आंदोलन से जुड़े थे। सरकार का मानना है कि कुछ पोस्ट्स और अकाउंट्स समाज में अस्थिरता फैला सकते थे या हिंसा भड़का सकते थे, इसलिए उन्हें हटाना जरूरी था।
किसान संगठनों का यह भी कहना है कि सोशल मीडिया ही एकमात्र ऐसा मंच है जहाँ उनकी आवाज़ को बिना किसी मध्यस्थता के सुना जाता है। ऐसे में, इस तरह की सेंसरशिप को वे सीधी लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति पर हमला मानते हैं।
यह पहली बार नहीं है जब किसान आंदोलन और सोशल मीडिया पर सरकार का हस्तक्षेप देखने को मिला है। 2021 में भी कई ट्विटर अकाउंट्स को हटाया गया था, जिनमें कुछ मीडिया संस्थान और स्वतंत्र पत्रकार भी शामिल थे।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि एक लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए।
एक तरफ सरकार का तर्क है कि कुछ ऑनलाइन सामग्री समाज के लिए हानिकारक हो सकती है और इसलिए उन्हें हटाना जरूरी है। वहीं दूसरी तरफ, सोशल मीडिया कंपनियां और नागरिक समाज संगठन यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या सभी प्रतिबंध उचित हैं या यह सरकार द्वारा अपनी आलोचना को दबाने का एक तरीका है?
तकनीकी कंपनियों की दुविधा यह है कि वे स्थानीय कानूनों का पालन करें या फिर वैश्विक मानकों के अनुरूप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करें। भारत जैसे बड़े बाजार में व्यापार करने के लिए स्थानीय कानूनों को मानना अनिवार्य है, लेकिन इससे उनकी विश्वसनीयता और स्वतंत्रता पर भी सवाल खड़े होते हैं।
एलन मस्क की रणनीति और पुराने विवाद
X के मालिक एलन मस्क ने पहले भी कहा है कि “किसी भी देश में काम करने के लिए वहां के कानूनों का पालन करना आवश्यक है, भले ही वह कानून हमें पसंद हो या नहीं।”
2023 में ट्विटर के पूर्व सीईओ जैक डोर्सी ने आरोप लगाया था कि भारत सरकार ने किसान आंदोलन के दौरान कंपनी पर दबाव डालकर कई अकाउंट्स को हटाने के लिए कहा था। हालांकि सरकार ने इन आरोपों को निराधार बताया था।
मस्क की सोच व्यावसायिक रूप से व्यावहारिक जरूर है, लेकिन इससे यह सवाल भी उठता है कि क्या बड़ी टेक कंपनियां अब सिर्फ व्यापारिक हितों को देखते हुए काम करेंगी, भले ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खतरा हो?
डिजिटल अधिकारों की दिशा में आगे क्या?
भारत जैसे देश में जहाँ लोकतंत्र मजबूत है और इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या करोड़ों में है, वहाँ सोशल मीडिया का उपयोग केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं है। यह एक सशक्त माध्यम है जहाँ लोग सरकार की नीतियों पर सवाल करते हैं, सामाजिक मुद्दों को उजागर करते हैं और आंदोलन खड़े करते हैं।
ऐसे में यदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सरकारी नियंत्रण बढ़ता है और अकाउंट्स बिना पारदर्शी प्रक्रिया के हटाए जाते हैं, तो यह देश के लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी हो सकती है।
इस मुद्दे ने डिजिटल स्वतंत्रता से जुड़े कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और आम नागरिकों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हमें एक संतुलित, पारदर्शी और लोकतांत्रिक डिजिटल शासन व्यवस्था की ज़रूरत है।
X के ग्लोबल अफेयर्स अकाउंट को भारत में रोके जाने और 8,000 से अधिक अकाउंट्स को ब्लॉक किए जाने का मामला केवल तकनीकी नहीं है — यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, पारदर्शिता और डिजिटल लोकतंत्र का मामला है।
यह जरूरी है कि सोशल मीडिया कंपनियाँ, सरकारें और नागरिक समाज मिलकर एक ऐसा ढांचा तैयार करें जहाँ न तो स्वतंत्रता का दुरुपयोग हो और न ही सरकारें अपनी आलोचना को दबाने के लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग करें।
अभी यह देखना बाकी है कि न्यायालय X की याचिका पर क्या निर्णय देता है और सरकार किस तरह से सोशल मीडिया पर संतुलन बनाए रखती है। लेकिन इतना तय है कि यह मामला आने वाले समय में भारत के डिजिटल भविष्य की दिशा को तय करेगा।
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